गिरीश्वर मिश्र का ब्लाग: विविधता भरे देश की निरंतर उन्नति कोई छोटी उपलब्धि नहीं

By गिरीश्वर मिश्र | Updated: January 26, 2021 14:37 IST2021-01-26T14:36:01+5:302021-01-26T14:37:07+5:30

कोरोना की महामारी के लंबे विकट काल में विश्व के इस विशालतम गणतंत्न ने सीमा पर टकराव के साथ-साथ स्वास्थ्य, चुनाव, शिक्षा और अर्थव्यवस्था के आंतरिक क्षेत्नों में चुनौतियों का डट कर सामना किया और अपनी राह खुद बनाई। यह उसकी आंतरिक शक्ति और जिजीविषा का प्रमाण है।

The continuous progress of a diverse country is no small achievement | गिरीश्वर मिश्र का ब्लाग: विविधता भरे देश की निरंतर उन्नति कोई छोटी उपलब्धि नहीं

(फोटो सोर्स- सोशल मीडिया)

भारत एक विविधवर्णी संकल्पना है जिसमें धर्म, जाति, भाषा, क्षेत्न, रूप-रंग, वेश-भूषा, नाक-नक्श और रीति-रिवाज आदि की दृष्टि से व्यापक विस्तार मिलता है। यह विविधता यहीं नहीं खत्म होती बल्कि पर्वत, घाटी, मैदान, पठार, समुद्र, नद-नदी, झील आदि की भू-रचनाओं, जलस्नेतों और फल-फूल, अन्न-जल सहित वनस्पति और प्रकृति के सभी नैसर्गिक पक्षों में भी प्रचुर मात्ना में अभिव्यक्त है। विविध कलाओं, स्थापत्य, साहित्य, दर्शन, विज्ञान यानी सृजनात्मकता और विचारों की दुनिया में भी यहां तरह-तरह की उपलब्धियां उल्लेखनीय हैं।

एक तरह से भारत विशिष्टताओं का एक अनोखा पुंज है जिसका विश्व में अन्यत्न कोई साम्य ढूंढ़ना मुश्किल है। यह अद्भुत भारत विविधता के एक महान उत्सव सरीखा है जहां आर्य, द्रविड़ और बाहर से कभी आक्रांत होकर आए शक, हूण, तुर्क, मुगल आदि अनेक संस्कृतियों का संगम होता रहा है। कालक्र म में यह देश अंग्रेजों के अधीन उपनिवेश हो गया था और तीन सदियों की अंग्रेजी गुलामी से 1947 में स्वतंत्न हुआ। 

एक राष्ट्र राज्य (नेशन स्टेट) के रूप में देश ने सर्वानुमति से सन् 1950 में संविधान स्वीकार किया जिसके अधीन देश के लिए शासन-प्रशासन की व्यवस्था की गई। वैधानिक रूप में ‘स्वराज’ के कार्यान्वयन का यह दस्तावेज देश को एक गणतंत्न (रिपब्लिक) के रूप में स्थापित करता है। एक गणतंत्न के रूप में इसकी नियति इस पर निर्भर करती है कि हम इसकी समग्र रचना को किस तरह ग्रहण करते हैं और संचालित करते हैं। 

यह संविधान भारत को एक संघ के रूप में स्थापित करता है और इसके अंग राज्यों को भी विभिन्न प्रकार की स्वतंत्नताएं देता है। इसमें केंद्र और राज्य के रिश्ते को अनुशासित करने के लिए अनेक तरह की व्यवस्थाएं की गई हैं और उनमें आवश्यकतानुसार बदलाव भी किया गया है। पिछले सात दशकों में संविधान को अंगीकार करने और उस पर अमल करने में अनेक प्रकार की कठिनाइयां आईं और जन-आकांक्षाओं के अनुरूप उसमें अब तक शताधिक संशोधन किए जा चुके हैं। राज्यों की संरचना भी बदली है और उनकी संख्या भी बढ़ी है। इस बीच देश की जनसंख्या बढ़ी है और उसकी जरूरतों में भी इजाफा हुआ है। 

पड़ोसी देशों की हलचलों से मिलने वाली सामरिक और अन्य चुनौतियों के बीच भी देश आगे बढ़ता रहा। देश की आंतरिक राजनैतिक-सामाजिक गतिविधियां लोकतंत्न को चुनौती देती रहीं, पर सारी उठापटक के बावजूद देश की सार्वभौम सत्ता अक्षुण्ण बनी रही। देश का संविधान सामाजिक विविधता का आदर करता है। कानून की नजर में हर व्यक्ति एक सा है परंतु वास्तविकता समानता, समता और बंधुत्व के भाव की स्थापना से अभी भी दूर है।

 न्याय की व्यवस्था जटिल, लंबी और खर्चीली होती जा रही है। पुलिस महकमा जो सुरक्षा के लिए जिम्मेदार है, दायित्वों के निर्वाह को लेकर प्रश्नों के घेरे में खड़ा रहने लगा है। सरकारी कामकाज बिना परिचय और सिफारिश के सर्वसाधारण के लिए असुविधाजनक होता जा रहा है। समाज में हाशिए पर स्थित समुदायों के लोगों को वे सुविधाएं और अवसर नहीं मिलते जो मुख्यधारा के लोगों को सहज ही उपलब्ध होते हैं। जेंडर आधारित घरेलू हिंसा, यौन हिंसा, बलात्कार आदि की घटनाएं जिस तरह बढ़ी हैं वह चिंता का कारण है। हाशिए के लोगों की आशाएं और आकांक्षाएं प्राय: अनसुनी रह जाती हैं और यह क्रम पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता है। वस्तुत: हाशिए के समूहों की स्थिति में परिवर्तन के लिए ठोस प्रयास करने होंगे। 

भारत जैसा गणतंत्न इकतारा न होकर एक वृंद वाद्य की व्यवस्था या आर्केस्ट्रा जैसा है जिसमें छोटे-बड़े अनेक वाद्य हैं जिनके अनुशासित संचालन से ही मधुर सुरों की सृष्टि हो सकती है। देशराग से ही उस कल्याणकारी मानस की सृष्टि संभव है जिसमें सारे लोक के सुख का प्रयास संभव हो सकेगा। कोलाहल पैदा करना तो सरल है क्योंकि उसके लिए किसी नियम अनुशासन की कोई परवाह नहीं होती, पर संगीत से रस की सिद्धि के लिए निष्ठापूर्वक साधना की जरूरत पड़ती है।

Web Title: The continuous progress of a diverse country is no small achievement

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