अवधेश कुमार का ब्लॉग: यह फैसला देश की आंखें खोलने वाला साबित हो
By अवधेश कुमार | Published: December 6, 2018 07:33 PM2018-12-06T19:33:31+5:302018-12-06T19:33:31+5:30
हमारा पूरा तंत्न आज तक किस तरीके से काम करता रहा है इसका यह एक दिल दहलाने वाला उदाहरण है।
तमिलनाडु का कांचीपुरम हिंदुओं के लिए एक अत्यंत पवित्न तीर्थस्थान है। प्राचीन मंदिरों के साथ सुरम्य प्राकृतिक सौंदर्य के लिए यह लोगों के आकर्षण का केंद्र बना रहता है। किंतु यह शहर इस समय एक दूसरे प्रसंग के कारण चर्चा में है। वास्तव में कांचीपुरम के एक स्थानीय न्यायालय ने इस समय ऐसा फैसला दिया है जिसकी किसी ने कल्पना नहीं की होगी। न्यायालय ने रेलवे के इंजन तथा अपने जिले के कलेक्टर कार्यालय के कम्प्यूटर सहित अनेक सामानों को जब्त करने का आदेश जारी कर दिया।
इसे न रेलवे प्रशासन ने गंभीरता से लिया और न ही जिला प्रशासन ने। किंतु न्यायालय ने कठोर रवैया अपनाया और अधिकारियों को आदेश का पालने करने को कहा। उसके बाद अधिकारी स्टेशन पर एक यात्नी गाड़ी का इंजन जब्त करने पहुंच गए तो रेलवे प्रशासन के होश उड़े। जो जब्त करने गए थे उनके हाथों में न्यायालय का आदेश था। रेलवे प्रबंधक और रेल सुरक्षा बल करें तो करें क्या। बड़ी विचित्न स्थिति पैदा हो गई। रेलवे इंजन को जब्त करने का अर्थ था, रेल के परिचालन का रुकना। तो अधिकारियों ने कहा कि एक ही सूरत में यह टल सकता है जब न्यायालय ने जिन कारणों से आदेश दिया है उनको दूर करें। तो कारण क्या था?
दरअसल, रेलवे ने करीब 30 वर्ष पहले एक परियोजना के लिए कुछ लोगों की जमीनों का अधिग्रहण किया था लेकिन उनका मुआवजा आज तक नहीं मिला। न्यायालय द्वारा मुआवजा प्रदान करने का आदेश न रेलवे मान रहा था न जिला प्रशासन ही इसके क्रियान्वयन के लिए मुस्तैद होता था। ऐसी स्थिति में न्यायालय ने यह रुख अपनाया।
प्रश्न है कि ऐसी स्थिति में न्यायालय करता भी क्या? हालांकि इसके बावजूद अभी तक जमीन मालिकों को उनका मुआवजा मिल नहीं पाया है। अगर आप छानबीन करें तो पूरे देश में ऐसे अनगिनत मामले आपको मिल जाएंगे जहां वर्षो पहले जमीन अधिग्रहीत कर ली गई लेकिन उनको मुआवजा आज तक नहीं मिला। साथ ही वायदे के अनुसार उनका उचित पुनर्वास भी नहीं हुआ। इसलिए कांचीपुरम न्यायालय का फैसला भले एक स्थान के मामले तक सीमित हो लेकिन इसका आयाम देशव्यापी है।
जरा सोचिए, 1989 में लोगों से जमीन ले ली गई और वे मुआवजे के लिए 2018 के अंत तक भटक रहे हैं। एकाएक तो वे न्यायालय आए नहीं होंगे। पहले विभागों का दरवाजा खटखटाया होगा और कहीं से निदान न होने के बाद ही न्यायालय में गए होंगे। जब न्यायालय के इंजन जब्त करने के आदेश के बाद अधिकारियों से पूछा गया तो पहले उन्हें फाइल खोजनी पड़ी। उसके बाद उन्होंने जवाब दिया कि मुआवजे की पांच करोड़ की राशि सरकार को दे दी गई थी। अगर यह सरकार को मिल गई तो जमीन मालिकों के पास क्यों नहीं पहुंची? इसका उत्तर कौन देगा?