एन. के. सिंह का ब्लॉग: कुतर्क को ही सत्य मान लेना लोकतंत्र के लिए घातक
By एनके सिंह | Published: September 15, 2019 06:07 AM2019-09-15T06:07:09+5:302019-09-15T06:07:09+5:30
भारतीय प्रशासनिक सेवा से इस्तीफा देने वाले अधिकारियों को वामपंथी और देशद्रोही बताने वाले ये भाजपा नेता इस पर क्या कहेंगे कि इसी तरह बहुमत-हासिल इंदिरा गांधी सरकार ने 1975 में जब आपातकाल घोषित किया, तो उनकी पार्टी ने जबरदस्त विरोध किया और आज भी उसे इतिहास का सबसे काला दिन कहते नहीं अघाती.
किसी समाज में शासक वर्ग लगातार कुतर्क करने लगे और समाज का बड़ा हिस्सा उसे ही सत्य समझने लगे तो वह लोकतंत्र के लिए आसन्न मृत्यु का पैगाम होता है. अचानक भारतीय प्रशासनिक सेवा के कुछ अधिकारियों ने यह कहते हुए इस्तीफा दे दिया कि भारतीय लोकतंत्र में सबकुछ ठीक नहीं है. केंद्र सरकार के एक मंत्री ने इन अफसरों को वामपंथी विचार वाला घोषित कर दिया. अब सरकार ट्रेनिंग के बाद इस्तीफा देने वालों के खिलाफ सख्त कानून लाने जा रही है.
एक पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा के कर्नाटक के नेता ने तो उन्हें देशद्रोही कह कर पाकिस्तान भेजने की धमकी भी दे डाली. उनका तर्क था कि एक चुनी हुई बहुमत की सरकार और संसद के फैसले पर प्रश्नचिन्ह लगाना देशद्रोह नहीं तो क्या है? ऐसे लोगों की जगह पाकिस्तान ही हो सकती है. वास्तव में पाकिस्तान का टिकट कटाने की धमकी का ठेका मोदी-1 और फिर मोदी-2 में बदस्तूर मंत्री बने गिरिराज सिंह का रहा है और हो सकता है कि यह पूर्व मंत्री फिर शपथ लेने के लिए उनकी नकल कर रहा हो.
वामपंथी और देशद्रोही बताने वाले ये भाजपा नेता इस पर क्या कहेंगे कि इसी तरह बहुमत-हासिल इंदिरा गांधी सरकार ने 1975 में जब आपातकाल घोषित किया, तो उनकी पार्टी ने जबरदस्त विरोध किया और आज भी उसे इतिहास का सबसे काला दिन कहते नहीं अघाती. पार्टी का शीर्ष नेतृत्व शायद इस तरह के भोंड़े कुतर्क देना रणनीति का हिस्सा मान रहा है, लेकिन समाज के एक बड़े वर्ग की सामूहिक चेतना भी इस कुतर्क को धीरे-धीरे स्वीकार करने लगी है. क्या पार्टी रणनीतिकारों को यह मूल सिद्धांत नहीं मालूम कि द्वंद्वात्मक प्रजातंत्र में विपक्ष भी होता है और मीडिया भी और इन दोनों का मूल काम सरकार की नीतियों का विेषण करना है और अगर उन्हें गलत लगा तो विरोध करना भी उतना ही जरूरी दायित्व.
इसी साल 17 जून को तबरेज को झारखंड के खरसावां जिले के एक गांव में बिजली के पोल से बांध कर घंटों पीटा गया, इस शक पर कि वह गांव में पशु चोरी करने आया था. लेकिन पुलिस ने गंभीर रूप से घायल तबरेज को ही जेल भेज कर चोरी का मुकदमा ठोंक दिया. जब चौथे दिन उसकी तबीयत ज्यादा खराब हो गई तो अस्पताल ने उसे इलाज के दौरान मृत घोषित कर दिया. इस बीच मीडिया का दबाव बना और पुलिस ने 11 लोगों पर हत्या का मुकदमा दर्ज किया.
पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर ने तब मीडिया को बताया था कि मृत्यु सिर में चोट के कारण ब्रेन हैमरेज से हुई, लेकिन कुछ समय बाद एक बोर्ड बैठा और दूसरी रिपोर्ट में बताया गया कि मौत का कारण दिल का दौरा है. तबरेज मात्र 22 साल का था. अब जिले के एसपी का कहना है कि चूंकि मरने का कारण दिल का दौरा है इसलिए धारा 302 की जगह 304 (गैरइरादतन हत्या) लगाई गई है क्योंकि गांव वालों का इरादा पहले से ही इसे मारने का नहीं था.
एक आईएएस जिला मजिस्ट्रेट उत्तर प्रदेश के एक जिले में पत्रकार के खिलाफ मुकदमा इसलिए करता है कि उसने एक वीडियो वायरल किया जिसमें मिर्जापुर जिले के एक स्कूल में बच्चों को मध्याह्न् भोजन में केवल रोटी और नमक दिया गया था. जाहिर है उस पत्रकार को नहीं मालूम होगा कि बहुमत से चुनी गई सरकारें उत्तर प्रदेश में बच्चों को नमक खिलाएं या बिहार में कीटनाशक मिला तेल (जिसमें बनी सब्जी खाने से 23 बच्चे मर गए थे), यह खबर देना उसे देशद्रोह के मुकदमे में तो फंसाएगा ही, सरहद पार भी भेज सकता है. देश का समर्थन यानी बहुमत सरकार के साथ होगा, लिहाजा सत्य भी. परंतु यह सब लोकतंत्र के मृतप्राय होने के लक्षण हैं.