Swachh Bharat Abhiyan: सोच सृजनात्मक हो तो आड़े नहीं आता संसाधनों का अभाव, आखिर क्या है पेपर नैपकिन प्रस्ताव

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: February 10, 2024 11:02 AM2024-02-10T11:02:08+5:302024-02-10T11:03:43+5:30

Swachh Bharat Abhiyan: ‘‘सर, आप अनुमति दें तो मैं यह प्रस्ताव रखना चाहूंगा कि सीमेंट संयंत्रों को एएफआर (वैकल्पिक ईंधन और कच्चे माल) की आपूर्ति श्रृंखला में रेलवे किस तरह अभिन्न अंग बन सकता है और प्रधानमंत्री के स्वच्छ भारत अभियान में भी योगदान दे सकता है.”

Swachh Bharat Abhiyan Railway Minister Ashwini Vaishnav If your thinking is creative then lack of resources does not come in way What exactly is paper napkin proposal? | Swachh Bharat Abhiyan: सोच सृजनात्मक हो तो आड़े नहीं आता संसाधनों का अभाव, आखिर क्या है पेपर नैपकिन प्रस्ताव

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Highlightsइतनी कम है कि प्रस्ताव देने वाला भी इसे संभवत: बहुत गंभीरता से नहीं लेता. छह मिनट के अंदर ही रेलवे महाप्रबंधक कार्यालय से फोन आ गया.छह फरवरी को महाप्रबंधक कार्यालय बुलाया गया तो उनकी हैरानी और खुशी का ठिकाना नहीं रहा.

Swachh Bharat Abhiyan: एक हवाई यात्रा के दौरान रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव को पेपर नैपकिन पर एक प्रस्ताव दिए जाने के बाद रेलवे प्रशासन जिस तरह से तत्काल हरकत में आया, उसने सिर्फ उद्यमी अक्षय सतनालीवाला ही नहीं बल्कि देश में सृजनात्मक सोच रखने वाले हर व्यक्ति को सुखद आश्चर्य से भरते हुए उत्साहित किया है. जिस समय सतनालीवाला ने विमान में रेल मंत्री को प्रस्ताव देने की बात सोची, उस समय उनके पास पेपर नैपकिन के अलावा दूसरा कागज नहीं था. उन्होंने उसी पर लिखा था, ‘‘सर, आप अनुमति दें तो मैं यह प्रस्ताव रखना चाहूंगा कि सीमेंट संयंत्रों को एएफआर (वैकल्पिक ईंधन और कच्चे माल) की आपूर्ति श्रृंखला में रेलवे किस तरह अभिन्न अंग बन सकता है और प्रधानमंत्री के स्वच्छ भारत अभियान में भी योगदान दे सकता है.”

हकीकत तो यह है कि इस तरह के प्रस्ताव नेताओं को आए दिन मिलते रहते हैं लेकिन उन पर ध्यान दिए जाने की दर इतनी कम है कि प्रस्ताव देने वाला भी इसे संभवत: बहुत गंभीरता से नहीं लेता. शायद इसीलिए कोलकाता के युवा उद्यमी सतनालीवाला को जब एयरपोर्ट पर उतरने के छह मिनट के अंदर ही रेलवे महाप्रबंधक कार्यालय से फोन आ गया और प्रस्ताव पर चर्चा के लिए छह फरवरी को महाप्रबंधक कार्यालय बुलाया गया तो उनकी हैरानी और खुशी का ठिकाना नहीं रहा.

पेपर नैपकिन पर लिखकर दिए गए प्रस्ताव को रेल मंत्री वैष्णव ने जिस गंभीरता से लिया, निश्चय ही वे उसके लिए बधाई के पात्र हैं. कहावत है कि हीरा अगर कचरे में भी पड़ा हो तो उसे उठा लेना चाहिए. वैसे ही रेल मंत्री ने कागज पर ध्यान न देते हुए उस पर लिखे प्रस्ताव पर ध्यान दिया. दरअसल देश में हीरों अर्थात प्रतिभाओं की कमी नहीं है, कमी है तो उन्हें तराशने वाले जौहरी की.

शासन-प्रशासन की ढिलाई किसी जमाने में इतनी कुख्यात हो गई थी कि लालफीताशाही अर्थात सरकारी दफ्तरों में टेबल-दर-टेबल आगे बढ़ने वाली लोगों की समस्याओं-शिकायतों से संबंधित लाल कपड़े में बंधी फाइलों को ‘ठंडे बस्ते’ का पर्याय माना जाने लगा था. संतोष की बात है कि देश के वर्तमान शासन-प्रशासन में इस विषय में सक्रियता नजर आ रही है.

रेल मंत्री को पेपर नैपकिन पर लिख कर सौंपे गए प्रस्ताव पर त्वरित कार्यवाही को इसी का उदाहरण माना जा सकता है. वास्तव में सरकारी कामकाज के तौर-तरीकों को इतना जटिल नहीं होना चाहिए कि सृजनात्मकता का गला ही घुट जाए.

इतना लचीलापन उसमें होना चाहिए कि प्रतिभावानों की प्रतिभा का फायदा देश को मिल सके. इसमें नियम-कानूनों को क्रियान्वित कराने वालों की बहुत बड़ी भूमिका होती है और राहत की बात है कि सरकार चलाने वालों के भीतर जनसेवा का यह जज्बा दिखाई दे रहा है.

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