सरकार और सेना की आलोचना करने से पहले यह बात जरूर सोच लें
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: July 4, 2018 08:20 AM2018-07-04T08:20:41+5:302018-07-04T08:28:42+5:30
यह कहना कि इस सर्जिकल स्ट्राइक के दृश्य को टीवी पर दिखाने से मोदी सरकार को राजनैतिक लाभ होगा, गलत है।
-गौरीशंकर राजहंस
कुछ दिनों पहले देश के प्राय: सभी टीवी चैनलों ने दो साल पहले सेना द्वारा पाक अधिकृत कश्मीर में किए गए सर्जिकल स्ट्राइक को विस्तार से दिखाया। यह देखकर हर भारतीय का सिर गौरव से ऊपर उठ गया। पाकिस्तान के आकाओं को यह सपने में भी अंदेशा नहीं था कि भारत एकाएक बड़े पैमाने पर सर्जिकल स्ट्राइक करके आतंकवादियों के कैम्पों को तहस नहस कर देगा।
सर्जिकल स्ट्राइक के बाद पाकिस्तान दिन-रात यह कहता रहा कि इस तरह का सर्जिकल स्ट्राइक तो हुआ ही नहीं था। विदेशी पत्रकारों को ले जाकर पाकिस्तान के आकाओं ने उन्हें दिखाया कि यदि सर्जिकल स्ट्राइक हुआ होता तो उसके कुछ निशान तो मौजूद अवश्य होते। परंतु कहीं कोई निशान नहीं था। सच यह है कि पाकिस्तान ने विदेशी पत्रकारों को वह स्थान दिखाया ही नहीं जहां सर्जिकल स्ट्राइक हुआ था और जहां आतंकवादियों के कैम्पों को ध्वस्त किया गया था। इस सर्जिकल स्ट्राइक के बाद देश में सेना और मोदी सरकार की जय-जयकार होने लगी। आम जनता में यह आत्मविश्वास पैदा होने लगा कि किसी भी विपरीत परिस्थिति में भारतीय सेना पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दे सकती है।
दुर्भाग्यवश सेना और सरकार की तारीफ करने के बदले कुछ विपक्षी नेताओं ने सर्जिकल स्ट्राइक पर संदेह जताया। शायद इसीलिए कुछ दिन पहले देश के टीवी चैनलों पर 28 और 29 सितंबर के मध्य की रात को भारतीय सेना ने पाक अधिकृत कश्मीर में जो सर्जिकल स्ट्राइक किया था, उसे विस्तार से दिखाया गया। दुर्भाग्यवश विपक्षी दलों के कुछ नेताओं ने इसकी फिर से आलोचना शुरू करते हुए कहा कि दो वर्षों बाद इस सर्जिकल स्ट्राइक को वीडियो के जरिए टीवी पर दिखाए जाने की क्या आवश्यकता थी। ऐसा केवल राजनैतिक लाभ के लिए किया गया। लेकिन यह कहना कि इस सर्जिकल स्ट्राइक के दृश्य को टीवी पर दिखाने से मोदी सरकार को राजनैतिक लाभ होगा, गलत है। किसी भी प्रकार के लाभ का तो कोई सवाल ही नहीं उठता है, क्योंकि चुनाव अभी काफी दूर हैं और सर्जिकल स्ट्राइक के दृश्यों को दिखाकर आम मतदाता को प्रभावित नहीं किया जा सकता है।
सरकार और सेना की आलोचना करने से पहले यह सोचना चाहिए कि देशहित सर्वोपरि है। समय आ गया है जब हम सेना को उसके द्वारा की गई कार्रवाई के लिए प्रोत्साहित करें, उसकी समालोचना नहीं करें।
(गौरीशंकर राजहंस लेखक पूर्व सांसद हैं)