ब्लॉगः विधानसभा चुनावों में छोटे दल बढ़ाएंगे बड़े दलों की मुश्किलें !

By राजकुमार सिंह | Published: October 4, 2023 10:28 AM2023-10-04T10:28:12+5:302023-10-04T10:35:41+5:30

पिछली बार 200 सदस्यीय विधानसभा में 73 सीटों के साथ भाजपा तो सत्ता की दौड़ में बहुत पीछे छूट गई थी, लेकिन बहुमत का आंकड़ा (101) कांग्रेस भी नहीं छू पाई थी। अशोक गहलोत की जादूगरी भी कह सकते हैं कि बसपा के छह, माकपा के दो और 12 निर्दलीयों के बीच जुगाड़ से कांग्रेस सत्ता के पांच साल पूरे कर रही है। एकमात्र रालोद विधायक सुभाष गर्ग तो बाकायदा मंत्री हैं।

Small parties will increase the problems of big parties in the assembly elections! | ब्लॉगः विधानसभा चुनावों में छोटे दल बढ़ाएंगे बड़े दलों की मुश्किलें !

ब्लॉगः विधानसभा चुनावों में छोटे दल बढ़ाएंगे बड़े दलों की मुश्किलें !

लोकसभा चुनाव से पहले इसी साल विधानसभा चुनाव तो पांच राज्यों में होने हैं लेकिन राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ पर ही निगाहें इसलिए टिकी रहेंगी, क्योंकि भाजपा और कांग्रेस के बीच वहां सत्ता के लिए सीधा मुकाबला होता है। इसलिए भी कि इन तीनों राज्यों की सत्ता कांग्रेस ने पिछले चुनाव में भाजपा से छीन ली थी। राजस्थान में पिछले तीन दशक में भाजपा-कांग्रेस के अदल-बदल कर सत्ता में आने का रिवाज-सा बन गया है। कभी तीसरी ताकत रही जनता पार्टी और जनता दल अब इतिहास की बात हैं। फिर भी कुछ छोटे दल हैं, जो सत्ता के मुख्य दावेदारों के दिलों की धड़कनें बढ़ा देते हैं। पिछली बार 200 सदस्यीय विधानसभा में 73 सीटों के साथ भाजपा तो सत्ता की दौड़ में बहुत पीछे छूट गई थी, लेकिन बहुमत का आंकड़ा (101) कांग्रेस भी नहीं छू पाई थी। अशोक गहलोत की जादूगरी भी कह सकते हैं कि बसपा के छह, माकपा के दो और 12 निर्दलीयों के बीच जुगाड़ से कांग्रेस सत्ता के पांच साल पूरे कर रही है। एकमात्र रालोद विधायक सुभाष गर्ग तो बाकायदा मंत्री हैं।

इस बार रिवाज बदलना या न बदलना कई बातों पर निर्भर करेगा। मसलन, अभी तक लड़ते रहे गहलोत-सचिन पायलट की सुलह चुनाव में कितनी वास्तविक रहेगी? दो बार मुख्यमंत्री रहीं वसुंधरा राजे के असंतोष और मान-मनौव्वल अंतिम क्षणों तक चल सकते हैं, पर बड़ी चुनौती वे छोटे दल हैं, जो सत्ता के दावेदार नहीं हैं, पर बहुमत का दारोमदार उन पर निर्भर कर सकता है। नागौर के सांसद हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (रालोपा) किसान आंदोलन से पहले तक एनडीए में थी। अब अलग ताल ठोंक रही रालोपा का जाट समुदाय में कुछ असर है। भाजपा ने नागौर से कांग्रेस सांसद रह चुकीं ज्योति मिर्धा को शामिल कर समीकरण साधने की कोशिश की है। बेशक सपा और रालोद ‘इंडिया’ का अंग हैं, पर सीटें तो मांगेंगे। बसपा की राजनीतिक माया समझ पाना हमेशा मुश्किल रहा है। सबसे दिलचस्प होगी आप की भूमिका, जो ‘इंडिया’ में है, पर उसके मंसूबे बड़े हैं। उसकी मांग पूरी कर पाना कांग्रेस के लिए आसान नहीं होगा। मित्रवत मुकाबले में आप किसे नुकसान पहुंचाएगी-यह गुजरात और गोवा से समझा जा सकता है।

मध्य प्रदेश में भी कांग्रेस बहुमत का आंकड़ा (116) नहीं छू पाई थी। उसे 114 सीटें मिली थीं। चार निर्दलीय और सपा-बसपा के क्रमश: एक-दो विधायक जीते। कमलनाथ, गहलोत जैसी जादूगरी नहीं दिखा पाए और 15 महीने बाद ज्योतरादित्य सिंधिया समर्थक 22 विधायकों की बगावत से सत्ता में शिवराज सिंह चौहान की वापसी हो गई। अब मतदाता किसका साथ देंगे?

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