डॉ. एस.एस. मंठा का ब्लॉग-घोषणापत्र पर संजीदगी दिखाएं
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: November 12, 2018 02:07 IST2018-11-12T02:07:49+5:302018-11-12T02:07:49+5:30
देखने में आया है कि राजनीतिक दल कई बार अपने घोषणापत्र के वादों को पूरा नहीं करते या उन पर बहुत धीमी गति से अमल करते हैं.

डॉ. एस.एस. मंठा का ब्लॉग-घोषणापत्र पर संजीदगी दिखाएं
(लेखक-डॉ. एस.एस. मंठा)
देखने में आया है कि राजनीतिक दल कई बार अपने घोषणापत्र के वादों को पूरा नहीं करते या उन पर बहुत धीमी गति से अमल करते हैं. अब समय आ गया है कि वे अपने घोषणापत्र में किए गए वादों के साथ यह भी बताएं कि उन्हें कितने समय में पूरा करेंगे.
राजनीतिक दलों द्वारा जारी किए जाने वाले एक आदर्श घोषणापत्र के लिए आवश्यक है कि वह सार्वजनिक हितों को पूरा करे. धार्मिक भावनाओं को भड़काने के बजाय रोजगार निर्माण, बुनियादी संरचनाओं के विकास और किसानों का संकट हल करने की बात करे. तथ्य यह है कि बुनियादी जरूरतें पूरी होने के बाद ही लोग धार्मिक मुद्दों पर बात करना चाहते हैं. एक आदर्श घोषणापत्र को शिक्षा और रोजगार सृजन से जोड़ा जाना चाहिए. हमें कौशल प्रदान करने के लिए दीर्घकालिक योजना बनानी चाहिए. राजमार्गो पर निश्चित दूरी पर बुनियादी सुविधायुक्त गुमटियां बनाने को राजनीतिक दल अपने घोषणापत्र में शामिल कर सकते हैं.
ऐसी प्रत्येक गुमटी से कम से कम दस लोगों को रोजगार मिल सकता है. ऐसी नई योजनाओं के निर्माण की घोषणा करनी चाहिए जिसमें एक नियोक्ता कम से कम सौ अतिरिक्त रोजगारों का सृजन कर सके और इसके लिए उसे कर में आकर्षक छूट देकर प्रोत्साहित किया जाए. इस तरह की अभिनव योजनाओं को अपने घोषणापत्र में शामिल करना आज समय की मांग है. हमारे किसान लंबे समय से संकट से जूझ रहे हैं. कजर्माफी उन्हें तात्कालिक राहत तो दे सकती है, लेकिन दीर्घावधि की भलाई के लिए उन्हें किसान कार्ड प्रदान करने जैसे कुछ अनूठे कदम उठाने की आवश्यकता है जिसमें उनका पूरा लेखा-जोखा हो.
देश में जिस तरह चुनावों के मौसम में लोगों की धार्मिक भावनाओं को भड़का कर बुनियादी मुद्दों पर नाकामी को छुपाने का प्रयास किया जाता है, उसे देखते हुए यह आवश्यक हो चला है कि राजनीतिक दलों को दो घोषणापत्रों का निर्माण करने के लिए बाध्य किया जाए- एक ‘धार्मिक’ घोषणाओं के लिए और दूसरा जनकल्याणकारी योजनाओं के लिए. इससे अपने आप दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा और वे धार्मिक मुद्दों की आड़ में अपनी जनकल्याण विषयक जिम्मेदारियों से बच नहीं पाएंगे.