शोभना जैन का ब्लॉग: मानवाधिकार परिषद का हस्तक्षेप अवांछनीय
By शोभना जैन | Published: March 7, 2020 06:09 AM2020-03-07T06:09:23+5:302020-03-07T06:09:23+5:30
जैसा कि स्वाभाविक था कि भारत ने संशोधित नागरिकता कानून सीएए को अपने देश का आंतरिक मामला बताते हुए दो टूक शब्दों में कहा कि किसी भी बाहरी देश को भारत की संप्रभुता संबंधी मामलों में दखल देने का कोई अधिकार नहीं है. यह कानून बनाने वाली भारतीय संसद के संप्रभुता के अधिकार से संबंधित है.
ईरान, तुर्की, मलेशिया सहित यूरोपीय यूनियन ( ईयू) के कुछ देशों द्वारा ‘सीएए’ को लेकर भारत में अल्पसंख्यकों की चिंताओं के बीच संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चयुक्त कार्यालय ने भी अपनी चिंताएं जताते हुए भारत के उच्चतम न्यायालय में सीएए संबंधी दायर याचिकाओं की सुनवाई के साथ ‘तीसरे पक्ष’ के रूप में ‘हस्तक्षेप’ याचिका दायर करने की घोषणा की है.
निश्चय ही यह एक ‘असाधारण कदम’ है और भारत के आंतरिक मामलों में ‘अवांछनीय दखलदांजी’ है वैसे इस मामले में चिंता के साथ-साथ थोड़ी राहत की बात यह है कि मानवाधिकार उच्चयुक्त कार्यालय इस मामले में याचिकाकर्ता नहीं है अपितु उसने इन मामलों में उच्चतम न्यायालय की सुनवाई में अदालत के मित्न तीसरे पक्ष के रूप में जुड़ने की बात की है.
कहा गया है कि उसकी उच्चायुक्त मिशेल बैशेले इन मामलों की सुनवाई के दौरान मानवाधिकारों को लेकर संयुक्त राष्र्ट् के निकाय के इस क्षेत्न के अनुभवों को भारत के उच्चतम न्यायालय को देना चाहती हैं.
जैसा कि स्वाभाविक था कि भारत ने संशोधित नागरिकता कानून सीएए को अपने देश का आंतरिक मामला बताते हुए दो टूक शब्दों में कहा कि किसी भी बाहरी देश को भारत की संप्रभुता संबंधी मामलों में दखल देने का कोई अधिकार नहीं है. यह कानून बनाने वाली भारतीय संसद के संप्रभुता के अधिकार से संबंधित है.
गौरतलब है कि देश के अंदर सीएए के खिलाफ 140 से ज्यादा याचिकाएं लंबित हैं. इस मामले में ‘अदालत के मित्न’ के रूप में जुड़ने की याचिका पर अब जबकि उच्चतम न्यायालय को संज्ञान लेना है, नजरें इस बात पर हैं कि उच्चतम न्यायालय इस मामले में सुनवाई के दौरान क्या निर्णय लेता है. हालांकि एक कानूनी विशेषज्ञ के अनुसार इस मामले में मानवाधिकार उच्चयुक्त कार्यालय ‘तीसरे पक्ष’ के रूप में जुड़ने की याचिका तो दायर कर सकता है लेकिन लगता यही है कि भारत की संप्रभुता से जुड़े इस कानून को लेकर भले ही उसका अदालत के मित्न के रूप में जुड़ना हो, न्याय संगत नहीं है.
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद समय-समय पर सभी एजेंसियों एवं निकायों को अपनी रिपोर्ट देती है, ताकि मानवाधिकार उल्लंघन को रोका जा सके.
दरअसल हमारी न्यायपालिका इतनी सक्षम है और लोकतंत्न की जड़ें इतनी मजबूत कि वह मानवाधिकारों को लेकर खुद ही घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय नियमों के अनुरूप इसकी व्याख्या कर सकता है. जाहिर है कि ऐसी स्थिति में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त जैसे तीसरे पक्ष की जरूरत ही नहीं है. लेकिन इस के साथ ही जिस तरह से अल्पसंख्यक वर्गो, विपक्ष की इसे लेकर चिंताएं हैं, ऐसे में उन्हें भरोसा दिलाना जरूरी है.