अमिताभ श्रीवास्तव का ब्लॉग: भाजपा के सपने साकार करती शिंदे सरकार

By Amitabh Shrivastava | Published: October 16, 2023 02:04 PM2023-10-16T14:04:34+5:302023-10-16T14:04:34+5:30

भाजपा ने वर्ष 2014 में देश में सत्ता पाने के बाद यह अच्छी तरह से समझ लिया था कि वह यदि आधी आबादी यानी महिलाओं को साथ ले लेगी तो उसे अनेक राज्यों में चुनाव के जातीय समीकरणों में अधिक उलझना नहीं पड़ेगा, क्योंकि हिंदी भाषी राज्यों के साथ ही महाराष्ट्र जैसे प्रगतिशील विचारों के राज्य में भी मतों का बंटवारा धर्म और जाति के आधार पर हो जाता है।

Shinde government making BJP's dreams come true in Maharashtra Amitabh Srivastava blog | अमिताभ श्रीवास्तव का ब्लॉग: भाजपा के सपने साकार करती शिंदे सरकार

अमिताभ श्रीवास्तव का ब्लॉग: भाजपा के सपने साकार करती शिंदे सरकार

इस बात में कोई शक नहीं है कि चालीस विधायकों को संग लेकर चले एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाते समय भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अत्यधिक संयम से काम लिया। मूल शिवसेना में फूट पड़ने के बाद बागी विधायकों को न केवल सहायता, बल्कि उनकी बगावत को सही साबित करने तक में भाजपा ने एड़ी-चोटी का जोर लगाया, जिसके लिए पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की शिवसेना से दुश्मनी तक पालनी पड़ी। फिर भी उसने आखिरी संघर्ष तक साथ दिया और अभी-भी दे ही रही है। शायद यही वजह है कि मुख्यमंत्री शिंदे अब अपने मददगार हाथ की किसी बात को टालना नहीं चाहते हैं।

भाजपा ने वर्ष 2014 में देश में सत्ता पाने के बाद यह अच्छी तरह से समझ लिया था कि वह यदि आधी आबादी यानी महिलाओं को साथ ले लेगी तो उसे अनेक राज्यों में चुनाव के जातीय समीकरणों में अधिक उलझना नहीं पड़ेगा, क्योंकि हिंदी भाषी राज्यों के साथ ही महाराष्ट्र जैसे प्रगतिशील विचारों के राज्य में भी मतों का बंटवारा धर्म और जाति के आधार पर हो जाता है।

यहां तक कि उम्मीदवारों के चयन में गलती का परिणाम भी भुगतना पड़ता है। इस परिस्थिति में लिंग आधार पर मतों के बंटवारे का लाभ विशेष रूप से मिलता है। भाजपा ने हर घर शौचालय हो या फिर उज्ज्वला गैस योजना, सभी में महिलाओं को केंद्र में रखा। इसी प्रकार प्रधानमंत्री आवास या जनधन योजना के केंद्र में महिलाएं रहीं।

इस बात की गंभीरता को भाजपा शासित राज्यों ने बखूबी समझा और नई-नई योजनाएं आरंभ कीं। वर्ष 2016 में उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की सरकार ने छात्र-छात्राओं को लैपटॉप बांटने की योजना आरंभ की थी, हालांकि वह अधिक सफल नहीं हो पाई क्योंकि उसमें छात्र-छात्राएं दोनों ही शामिल थे मगर उसने अगली सरकार को रास्ता दिखा दिया। फिर वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लड़कियों की मुफ्त शिक्षा से लेकर जन्म पर नकद राशि दिए जाने की योजना जैसी सभी जगहों पर महिलाओं को केंद्र में रखकर योजनाओं का रूप दे दिया।

मध्य प्रदेश में लड़कियों की शादी हो या फिर उनकी आर्थिक सहायता की बात हो, सभी के लिए सरकार ने हाथ बढ़ाए। इसी कारण मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को आज भी राज्य की महिलाओं पर सर्वाधिक विश्वास बना हुआ है। महाराष्ट्र में भी एक साल में चुनाव होने जा रहे हैं। पहले लोकसभा चुनाव होंगे, लेकिन उसके तुरंत बाद ही विधानसभा चुनाव का बिगुल भी बज जाएगा।

ऐसे में आधी आबादी को सीधे तौर पर लाभान्वित कर चुनाव की संभावनाओं को मजबूत किया जा सकता है। राज्य में पहले शिंदे सरकार ने राज्य सड़क परिवहन निगम (एसटी) की बसों में महिलाओं का आधा टिकट कर अपना भी फायदा किया और यात्रियों को भी सीधा लाभ पहुंचा दिया। इसी प्रकार अब राज्य सरकार ने ‘लेक लड़की’ योजना को आरंभ कर 18 साल तक में एक लाख रुपए देने की घोषणा कर दी है।

सीधे तौर पर इसका लक्ष्य महिलाओं का अनुपात बढ़ाना, उनकी शिक्षा को प्रोत्साहन, कुपोषण और बाल विवाह को खत्म करना है, किंतु यह मध्य प्रदेश की लाड़ली बहना योजना से अलग नहीं है। मध्य प्रदेश में इसके अलावा मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना, नारी सम्मान कोष, स्कूटी योजना जैसी अनेक योजनाएं चल रही हैं। स्पष्ट है कि सभी का लक्ष्य लड़कियां और महिलाएं हैं, जिन्हें महाराष्ट्र में भी सीधे लाभ पहुंचाने की तैयारी शुरू हो गई है।

महाराष्ट्र में भी राज्य सरकार अपनी दो योजनाओं से सीधे महिलाओं को लाभ पहुंचा रही है। आने वाले दिनों में योजनाओं की संख्या बढ़ भी सकती है। दरअसल, मतों के लाभ के अलावा इसमें छिपी राजनीति का पुट है। राज्य में इन दिनों राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के अध्यक्ष शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले, पूर्व उपमुख्यमंत्री गोपीनाथ मुंडे की बेटियां पंकजा और प्रीतम मुंडे, पूर्व मुख्यमंत्री सुशील कुमार शिंदे की बेटी प्रणीति शिंदे, पूर्व मंत्री एकनाथ खड़से की बेटी रोहिणी खड़से जैसी अनेक नेताओं की सुपुत्रियां विपक्ष की ओर से सक्रिय हैं।

सभी खुद को एक बेटी बता कर महिलाओं के मामले में राज्य सरकार पर आरोप लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं। ऐसे में महिलाओं की सहानुभूति कम होने की चिंता के चलते राज्य सरकार के लिए भी रणनीति बनाना आवश्यक हो चला था। लंबे समय तक राज्य सरकार के मंत्रिमंडल में एक भी महिला मंत्री नहीं थी, इसलिए अब राजनीति के केंद्र में महिलाओं को रखकर सीधे तौर पर आधी आबादी को लाभ पहुंचाने की कोशिशें आरंभ हो गई हैं।

इस कार्य में भाजपा शासित राज्यों के पास चल रहे कार्यक्रम-योजनाएं उपलब्ध हैं। यदि उनको अपना कर राज्य सरकार चलती है तो कुछ सीमा तक महिलाओं को अपने पक्ष में कर सकती है। हालांकि, हिंदी भाषी इलाकों की भाजपा सरकारों के क्षेत्र में महिलाओं की समस्या अलग है। उनके बीच अशिक्षा, गरीबी और सामाजिक भेदभाव अधिक है। उन्हें रोजगार की राह मिलना आसान नहीं है, इसलिए वहां आर्थिक स्तर पर सहायता देकर उन्हें मुख्यधारा में लाना आवश्यक होता है।

महाराष्ट्र के साथ ऐसी स्थितियां नहीं हैं। राज्य में महिलाओं के बीच जागरुकता अच्छी खासी है। बचत समूहों से लेकर अनेक प्रकार के कार्यक्रमों में महिलाओं की अच्छी हिस्सेदारी है। शिक्षा का स्तर भी खराब नहीं है, इसलिए योजनाओं का लाभ तो आसानी से ही महिलाओं के बीच पहुंच जाएगा, लेकिन उसका राजनीतिक फायदा मिलना अन्य राज्यों की तुलना में आसान नहीं होगा। 

राज्य में हर क्षेत्र में महिलाओं की उपस्थिति है और वे उनमें आगे भी बढ़ रही हैं, मगर आज जरूरत इस बात की है कि रोजगार के नए अवसरों का सृजन किया जाए। ग्रामीण भागों से बढ़ता पलायन और शहरी भागों पर बढ़ते दबाव को रोकने के ठोस प्रयास किए जाएं, जिससे लिंग भेद के आधार पर नहीं, सभी का भला हो सके। आम तौर पर पारिवारिक समस्याओं और आर्थिक संकट के बीच जरूरत पड़ने पर महिलाओं को रोजगार नहीं मिलता है।

कई बार उनके पास रोजगार मूलक कोई कौशल नहीं होता है। जिससे आए अवसर उनके हाथ से निकल जाते हैं। इसलिए आवश्यक यह है कि राज्य की जरूरतों को समझा जाए. लोकप्रिय योजनाओं की नकल करने के पहले अपने राज्य की स्थिति को समझा जाए। उसके बाद ही उठाए गए कदम जनता को लाभान्वित कर सकते हैं तथा राजनीतिक लाभ पहुंचा सकते हैं, अन्यथा पैसा हजम और खेल खत्म का खेल कभी-भी और किसी के लिए भी अनंत काल तक चलाया जा सकता है। 

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