शशिधर खान का ब्लॉग: राजनीति को अपराधमुक्त बनाने की दिशा में कदम
By शशिधर खान | Published: August 23, 2021 01:46 PM2021-08-23T13:46:29+5:302021-08-23T13:46:29+5:30
लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव में दागियों को बार-बार उम्मीदवार बनाने के राजनीतिक दलों के रवैये पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा कदम उठाया है. दागी सांसदों, विधायकों के खिलाफ चल रहे आपराधिक मुकदमे लंबे समय तक खींचने तथा राज्य सरकारों द्वारा मुकदमे वापस लेने की बढ़ती प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सख्त निर्देश जारी किया है.
चीफ जस्टिस एन. वी. रमण की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट पीठ ने कहा है कि राज्य सरकारें दागी सांसदों, विधायकों के खिलाफ आपराधिक मुकदमे राज्य हाईकोर्टो की इजाजत के बगैर वापस नहीं ले सकतीं.
चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस विनीत सरन और जस्टिस सूर्यकांत की शीर्ष कोर्ट पीठ ने हाईकोर्टो से कहा है कि 16 सितंबर 2020 के सुप्रीम कोर्ट के ही निर्देश के आलोक में इस बात की जांच करें कि उस समय से लेकर अभी तक कितने मुकदमे वापस लिए गए. वे मुकदमे लंबित थे या निपटा लिए गए थे.
शीर्ष कोर्ट ने हाईकोर्टो के मुख्य न्यायाधीशों को 16 सितंबर 2020 को निर्देश दिया था कि मौजूदा और पूर्व दागी सांसदों, विधायकों के खिलाफ चल रहे मुकदमों की मानिटरिंग की जाए और उसके लिए विशेष पीठ गठित की जाए.
इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में कई वर्षो से चल रही है और शीर्ष कोर्ट के बार-बार के निर्देशों की कोई राजनीतिक पार्टी परवाह नहीं कर रही है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा ही नियुक्त एमीकस क्यूरी सीनियर एडवोकेट विजय हंसारिया का आग्रह स्वीकार करते हुए शीर्ष कोर्ट ने गत हफ्ते यह निर्देश दिया है कि राज्य सरकारें हाईकोर्टो की अनुमति के बिना दागी सांसदों/विधायकों के खिलाफ मुकदमे वापस नहीं ले सकतीं.
शीर्ष कोर्ट पीठ ने यह भी निर्देश दिया है कि लंबित मुकदमे के जल्द निष्पादन के लिए उन स्पेशल कोर्टो या सीबीआई कोर्टो के जजों का तबादला अगले आदेश तक न किया जाए, जिनके पास दागी सांसदों/विधायकों का मामला हो.
सुप्रीम कोर्ट भाजपा नेता और वकील अश्वनी उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिन्होंने दागी सांसदों, विधायकों के खिलाफ चल रहे लंबित मुकदमे निपटाने के लिए फास्ट-ट्रैक कोर्टो की स्थापना का आग्रह किया है.
राजनीति में बढ़ चुके अपराधीकरण पर नकेल कसने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 10 अगस्त 2021 को अपने पूर्व के दिशानिर्देशों में संशोधन करते हुए उम्मीदवारों के नाम की घोषणा के 48 घंटे के भीतर सभी दलों को उनसे जुड़ी जानकारी साझा करने का आदेश दिया.
जस्टिस आर. एफ. नरीमन और वी. आर. गवई की खंडपीठ ने अपने 13 फरवरी 2020 के फैसले में राजनीतिक दलों को अपने उम्मीदवारों के आपराधिक रिकॉर्ड का खुलासा करने के लिए कम-से-कम दो दिन और ज्यादा-से-ज्यादा दो हफ्ते का समय दिया था.
इसमें संशोधन करके सुप्रीम कोर्ट की इसी खंडपीठ ने 10 अगस्त 2021 को यह समयसीमा अधिकतम 48 घंटे कर दी. शीर्ष कोर्ट ने यह संशोधन एक वकील ब्रजेश मिश्र की अवमानना याचिका पर दिया, जिसमें दावा किया गया कि राजनीतिक दल सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का पालन नहीं कर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने लाचारी में जनता की अदालत पर यह तय करने का फैसला छोड़ दिया कि दागियों को जनप्रतिनिधि न चुना जाए.
इसके पहले कई बार सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस जारी करके पूछा कि दागियों को चुनाव लड़ने से रोकने के लिए क्या किया जा रहा है.
चुनाव आयोग ने साफ-साफ कह दिया कि दागियों के पर्चे रद्द करने का अधिकार उसके पास नहीं है और सरकार इसके लिए कानून बनाने के उसके आग्रह को चुनाव सुधारों की धूल खाती फाइल में डाले हुई है. चुनाव आयोग ने 2016 से 2020 तक सुप्रीम कोर्ट में इस संबंध में चली कई सुनवाई में कहा कि दागियों को चुनाव लड़ने से रोकने का अधिकार सरकारें देना नहीं चाहतीं और राजनीतिक दल दागियों को उम्मीदवार बनाने से बाज नहीं आ रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने उसके बाद सरकार से कहा कि संसद से इस तरह का कानून बनाया जाए. लेकिन केंद्र सरकार ने हाथ खड़े कर दिए क्योंकि सत्तारूढ़ पार्टी समेत कोई पार्टी इसके पक्ष में नहीं थी.