Sharad Pawar: शरद पवार पर पीएम मोदी, शाह के सुर अलग-अलग क्यों?

By हरीश गुप्ता | Updated: March 13, 2025 05:13 IST2025-03-13T05:13:30+5:302025-03-13T05:13:30+5:30

अमित शाह का गुस्सा तब से शुरू हुआ जब से पवार ने प्रधानमंत्री से मुलाकात कर उन्हें अनार भेंट किए, जिससे राकांपा के दोनों गुटों के एक साथ आने की चर्चा शुरू हो गई.

Sharad Pawar ncp bjp pm narendra modi amit shah Why are Modi and Shah's tunes different on Pawar blog harish gupta | Sharad Pawar: शरद पवार पर पीएम मोदी, शाह के सुर अलग-अलग क्यों?

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Highlightsकेंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शरद पवार के खिलाफ सार्वजनिक बयानबाजी की.शाह ने ‘भटकती आत्मा’, ‘विश्वासघाती’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया.महायुति में भ्रम की स्थिति पैदा हो गई और किसी के लिए इसे तोड़ना जरूरी हो गया था.

यह कोई रहस्य नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वरिष्ठ राकांपा नेता शरद पवार के साथ मधुर संबंध हैं और वे पार्टी के लोगों की असहजता के बावजूद सार्वजनिक रूप से उनकी प्रशंसा करते रहे हैं. यहां तक कि आरएसएस नेतृत्व भी इस रुख से असहज है. पवार के किसी भी निमंत्रण को मोदी सहर्ष स्वीकार करते हैं और यहां तक कि उनकी प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि जब पवार यूपीए सरकार में केंद्रीय कृषि मंत्री थे, तब उनका (मोदी का) मार्गदर्शन कैसे किया. लेकिन हाल ही में एक नया चलन सामने आया है और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शरद पवार के खिलाफ सार्वजनिक बयानबाजी की.

शाह ने ‘भटकती आत्मा’, ‘विश्वासघाती’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया. शाह का गुस्सा तब से शुरू हुआ जब से पवार ने प्रधानमंत्री से मुलाकात कर उन्हें अनार भेंट किए, जिससे राकांपा के दोनों गुटों के एक साथ आने की चर्चा शुरू हो गई. इससे महाराष्ट्र में महायुति में भ्रम की स्थिति पैदा हो गई और किसी के लिए इसे तोड़ना जरूरी हो गया था.

शाह के इस शाब्दिक हमले को पवार द्वारा 1978 में महाराष्ट्र में वसंतदादा पाटिल के नेतृत्व वाली सरकार से 40 विधायकों के साथ बाहर निकलने और फिर मुख्यमंत्री बनने के संदर्भ में देखा जा रहा है. शाह ने पवार पर ‘धोखा’ और ‘विश्वासघात’ की राजनीति के जनक होने का आरोप लगाया.

शरद पवार ने अमित शाह पर पलटवार किया और उन पर गृह मंत्री के पद की मर्यादा बनाए नहीं रखने का आरोप लगाया तथा उन्हें ‘तड़ीपार’ करार दिया, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गुजरात के मामले में आदेश का जिक्र था. बाद में, शाह ने यूपीए के तहत देश के कृषि मंत्री के रूप में पवार को बेकार करार देते हुए उन पर फिर से हमला किया.

भाजपा के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि अमित शाह का पवार पर शाब्दिक हमला संदेश देने की एक अच्छी तरह से तैयार की गई रणनीति का हिस्सा है कि जब महाराष्ट्र के मामलों की बात आती है तो भाजपा का उनसे कोई लेना-देना नहीं है. इन दिनों संसद में दोनों एक-दूसरे से सहमत नहीं हैं.

भाजपा पंजाब की नैया नहीं हिलाएगी

पंजाब में विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा भले ही यह बयान दे रहे हों कि आम आदमी पार्टी के ‘32 से  ज्यादा’ विधायक उनके संपर्क में हैं और कुछ अन्य भाजपा के संपर्क में भी हो सकते हैं, भाजपा के कुछ राज्य नेता भी आप सरकार को हिलाने के लिए उत्सुक हो सकते हैं लेकिन बताया जा रहा है कि भाजपा नेतृत्व आप की गाड़ी को इतनी जल्दी हिलाने के लिए तैयार नहीं है.

विधानसभा में आप के पास 117 में से 95 विधायकों के साथ पूर्ण बहुमत है. दूसरी बात यह कि भाजपा कुछ साल पहले ही अकाली दल की छाया से बाहर आई है और कांग्रेस तथा अन्य दलों से प्रतिभाओं को आकर्षित कर रही है. अकाली दल के नेता सुखबीर सिंह बादल पहले ही अपने साले बिक्रमजीत सिंह मजीठिया के साथ टकराव की राह पर हैं, जो ईडी की जांच का सामना कर रहे हैं.

भाजपा एक मजबूत जाट सिख नेता की तलाश में है, जो पार्टी के पारंपरिक हिंदू वोट बैंक को भी अपने साथ जोड़ सके. भाजपा चाहती है कि भगवंत सिंह मान आप संयोजक अरविंद केजरीवाल की छाया से बाहर आएं, जो दिल्ली के बाद अब पंजाब पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहे हैं.

लेकिन मान के छाया से बाहर आने की संभावना कम है क्योंकि आप की दिल्ली टीम के पास विभिन्न समितियों के माध्यम से प्रशासन पर मजबूत पकड़ है. भाजपा सीमावर्ती राज्य पंजाब में खरीद-फरोख्त को बढ़ावा नहीं देना चाहती है और वह चाहती है कि कांग्रेस यह काम करे. भाजपा केंद्रीय मंत्री रवनीत सिंह बिट्टू और अन्य दलों के नेताओं से मिलकर बने नए नेतृत्व पर भरोसा कर रही है.

छह साल से कोई उपसभापति नहीं

मोदी सरकार ने लोकसभा में एक तरह का रिकॉर्ड बनाया है. 17 वीं लोकसभा के पूरे कार्यकाल के दौरान उसके पास कोई उपसभापति नहीं था और 18 वीं लोकसभा में भी किसी के इस पद पर आसीन होने का कोई संकेत नहीं है. परंपरागत रूप से उपसभापति का पद मुख्य विपक्षी दल को जाता है.

चूंकि संख्या की कमी के कारण कांग्रेस के पास विपक्ष का नेता (एलओपी) नहीं था, इसलिए यह पद खाली रहा, हालांकि कोई कारण नहीं बताया गया. कांग्रेस नेताओं का यह भी मानना है कि उपसभापति का पद खाली रहने का एकमात्र कारण यह है कि इसे विपक्ष को दिया जाना है.

इस परंपरा की शुरुआत सबसे पहले जवाहरलाल नेहरू ने की थी, जिन्होंने 1956 में शिरोमणि अकाली दल के सरदार हुकुम सिंह को उपसभापति चुना था. इसके बाद, उपसभापति सत्तारूढ़ कांग्रेस से ही होते रहे, जब तक कि आपातकाल के वर्षों के दौरान एक स्वतंत्र सदस्य जी.जी. स्वेल को नियुक्त नहीं किया गया.

इसके बाद, विपक्ष के सदस्यों ने इस पद पर कब्जा किया, यह परंपरा 16वीं लोकसभा तक जारी रही, जब एआईएडीएमके के एम. थंबीदुरई उपसभापति थे. 17वीं लोकसभा में मोदी सरकार ने उपसभापति नहीं रखने का फैसला किया और यह पद खाली रहा. संविधान के अनुच्छेद 93 में कहा गया है कि लोकसभा को ‘जितनी जल्दी हो सके’ अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के रूप में दो सदस्यों को चुनना होगा.

और अंत में

विनय मोहन क्वात्रा, जो अगस्त 2024 से अमेरिका में भारत के राजदूत के रूप में कार्यरत हैं, ने अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो से मुलाकात करने की कोशिश की. लेकिन किस्मत ने साथ नहीं दिया. अनुभवी राजनयिक और पूर्व विदेश सचिव क्वात्रा के अमेरिकी अधिकारियों के साथ बेहतरीन संबंध थे. लेकिन लगता है कि ट्रम्प शासन के साथ चीजें बदल गई हैं.

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