सारंग थत्ते का ब्लॉग: तीनों सेनाओं के बीच पुल बनेंगे CDS
By सारंग थत्ते | Published: December 27, 2019 05:56 AM2019-12-27T05:56:00+5:302019-12-27T05:56:00+5:30
आखिर सरकार ने फैसला लिया और पहला चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) नियुक्त करने से पहले उसके सृजन को मंजूरी दे दी है. सीडीएस अब एक चार सितारा सैन्य अधिकारी होगा.
लाल किले की प्राचीर से इस वर्ष स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री ने देश की सेनाओं की लंबे समय से अटकी हुई नेतृत्व की मांग को हरी झंडी दी थी. तीनों सेनाओं के प्रमुखों के ऊपर सरकार से संवाद साधने और एकीकृत युद्ध की तैयारी के लिए एक अदद ओहदे की जरूरत अनेक वर्षो से अधर में थी. चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ - सीडीएस के ओहदे को सरकार ने आधिकारिक रूप से अपनी सहमति दी थी.
आखिर सरकार ने फैसला लिया और पहला चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) नियुक्त करने से पहले उसके सृजन को मंजूरी दे दी है. सीडीएस अब एक चार सितारा सैन्य अधिकारी होगा.
इससे पहले कि हम देखें कि सीडीएस की क्या जवाबदारी होगी और कैसे कार्य किया जाएगा, हमें इतिहास को समझना होगा. आखिर सीडीएस की जरूरत क्यों महसूस हुई. 1962 में चीन के साथ युद्ध में भारतीय वायुसेना को कोई भूमिका नहीं दी गई थी जबकि भारतीय वायुसेना तिब्बतीय पठार पर जमा हुए चीनी सैनिकों को निशाना बना सकती थी. इसी तरह पाकिस्तान के साथ 1965 के युद्ध में भारतीय नौसेना को पाकिस्तान की अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर हमले की योजना से अवगत नहीं कराया गया.
1965 की जंग में भारतीय नौसेना को जानकारी का अभाव था कि सेना और वायुसेना पाकिस्तान में दाखिल होकर आक्रमण करने वाली हैं. सन 65 और 71 की लड़ाई में जो आपसी समन्वय तीनों सेनाओं के बीच स्थापित हुआ था वह सेना प्रमुखों के व्यक्तित्व और आपसी बातचीत का नतीजा था. किसी भी स्वरूप में सरकार या रक्षा मंत्रलय ने इस पर कोई एकीकृत कार्रवाई को साझा करने की कोशिश नहीं की थी.
इसका नतीजा था कि सालों बाद सेना में चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी बनी और इंटीग्रेटेड हेडक्वार्टर्स की भूमिका सेना मुख्यालय में बनाई गई. अब सीडीएस की बारी है आपसी समन्वय और पूर्णता देने की.
श्रीलंका के ऑपरेशन में भारत की सेना की कमी इसी बात को लेकर थी क्योंकि वायुसेना और थल सेना के बीच तालमेल नहीं बना था. 1999 में हुए कारगिल युद्ध के शुरुआती दौर में भी सेना और वायुसेना के बीच समन्वय की कमी देखी गई थी, जिसे बाद में सुधारा गया और हमारी फौज के रीति-रिवाज की जानकारी साझा की गई थी. युद्ध के बाद तत्कालीन उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी की अध्यक्षता में गठित ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स ने चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ पद की सिफारिश की थी. जीओएम की सिफारिशों को तत्कालीन कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी ने स्वीकार कर लिया था, फिर भी इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था.
दरअसल सेना और नौसेना के अफसरों ने इसका तब सपोर्ट किया था, मगर एयरफोर्स ने विरोध किया था. वहीं राजनीतिक स्तर से भी इस पद को बनाने की इच्छाशक्ति नहीं दिखाई गई. देश की सुरक्षा में हुई भूल-चूक का जायजा लेने के लिए उच्च स्तरीय समिति का गठन कारगिल युद्ध के बाद ही किया गया था.
इस मंगलवार को सरकार ने जो घोषणा की है उसके तहत रक्षा मंत्रलय के अधीन एक नया सैन्य मामलों का विभाग बनाया जाएगा. इसे डिपार्टमेंट ऑफ मिलिटरी अफेयर्स (डीएमए) नाम दिया गया है. तीनों सेनाएं डीएमए के तहत कार्य करेंगी. डीएमए का मुखिया चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ होगा. इस नए विभाग में सेना अधिकारी और सिविलियन अधिकारी कार्यरत होंगे. चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ की नियुक्ति का मकसद भारत के सामने आने वाली सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए तीनों सेनाओं के बीच तालमेल बढ़ाना है.
सीडीएस अब चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी के स्थायी मुखिया होंगे. सीडीएस रक्षा मंत्री के प्रमुख सैन्य सलाहकार रहेंगे. ट्राई सर्विस के अंतर्गत आने वाले साइबर और स्पेस कमांड को सीडीएस देखेंगे. आने वाले सालों में सीडीएस तीनों सेनाओं के ऑपरेशन, रसद पूर्ति, प्रशिक्षण, ट्रांसपोर्ट, सपोर्ट सर्विसेस, संचार, रखरखाव और संयंत्रों में टूट फूट से संबंधित कार्य को देखेंगे. अंतर्राष्ट्रीय तालमेल को बरकरार रखने के लिए तीनों सेनाओं के बीच में व्यवस्था बनाएंगे.
सीडीएस के बन जाने से युद्ध के वक्त तीनों सेनाएं तालमेल के साथ काम कर सकेंगी. सिंगल प्वाइंट से आदेश जारी होने से सेनाओं की मारक क्षमता और प्रभावी होगी. अमेरिका, चीन, यूनाइटेड किंगडम, जापान सहित दुनिया के कई देशों के पास चीफ ऑफ डिफेंस जैसी व्यवस्था है. नाटो देशों की सेनाओं में ये पद हैं.
भारत के नए और पहले सीडीएस को दो साल का कार्यकाल मिलेगा. यदि जनरल रावत के नाम पर मुहर लगती है तब सेना प्रमुख इस वर्ष 31 दिसंबर को चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ की कुर्सी को छोड़कर अपने नए पद पर नए साल में आसीन होंगे. दो वर्ष के इस कार्यकाल में एक तरह से सेना प्रमुख रावत कुछ नया करने के लिए प्रतिबद्ध होंगे, वहीं चीफ की हैसियत से किए गए कार्यकाल में अधूरे कामों को आगे गति देने के लिए भी समय मिलेगा. इंटीग्रेटेड बैटल फॉरमेशन की सोच जनरल बिपिन रावत की थी. साथ ही सेना में संरचना में बदलाव की नींव भी उन्होंने ही शुरू की थी.