संतोष देसाई का ब्लॉग: आत्मनिरीक्षण का मौका
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: March 25, 2020 11:38 AM2020-03-25T11:38:17+5:302020-03-25T11:38:17+5:30
पूरे क्षेत्र को लॉकडाउन करने से तात्कालिक फायदा भले ही नजर आए, लेकिन उसमें ढील देते ही कोरोना वायरस फिर जोरों के साथ वापसी कर सकता है.
कोरोना वायरस जैसी महामारी केवल हमारे स्वास्थ्य के नजरिये को ही नहीं बदलती है बल्कि जीवन विषयक हमारी धारणा को ही आमूलचूल बदल देती है. हम कई ऐसे प्रश्नों का सामना करते हैं, जिन पर हमने पहले कभी विचार नहीं किया था. उदाहरण के लिए इटली में रोगियों की तेजी से बढ़ती संख्या से ऐसी परिस्थिति पैदा हो गई है कि डॉक्टर पसोपेश में हैं कि किसका उपचार किया जाए और किसे मरने के लिए छोड़ दिया जाए. ऐसे में विचार करना पड़ता है कि किस व्यक्ति की समाज को ज्यादा जरूरत है, कौन ज्यादा जियेगा.
उसकी बनिस्बत ब्रिटेन का दृष्टिकोण कुछ अलग ही है. इंग्लैंड के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार सर पैट्रिक वालेंस मानते हैं कि लोगों के कोरोना वायरस से बाधित होने से भविष्य में उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता में सुधार हो सकता है और वे ऐसे रोगों से सामूहिक रूप से लड़ने में सक्षम हो सकते हैं. इसके पीछे सोच यह है कि हम कितने ही प्रतिबंधक उपाय कर लें, ऐसी स्थिति को टाल नहीं सकते. पूरे क्षेत्र को लॉकडाउन करने से तात्कालिक फायदा भले ही नजर आए, लेकिन उसमें ढील देते ही कोरोना वायरस फिर जोरों के साथ वापसी कर सकता है. समाज के संक्रमित होने के बाद लोगों में इस रोग के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो सकती है. तब इस पर नियंत्रण पाना संभव हो सकता है.
लेकिन नैतिक दृष्टिकोण से असाधारण स्थिति होने के अलावा यह अन्य कई कारणों से भी अत्यंत जोखिम भरा दांव है. वृद्धों और कमजोर लोगों की पहले रक्षा करना कर्तव्य माना जाता है, लेकिन उपरोक्त स्थिति में ऐसा करने में अनेक व्यावहारिक दिक्कतें हैं. बुजुर्गो को आइसोलेट करना आसान नहीं है क्योंकि जिस सेवा शुश्रूषा की जरूरत होती है, ऐसी स्थिति में वह उन्हें नहीं मिल पाएगी. इसलिए कोई सर्वमान्य तरीका अपनाना आसान नहीं दिख रहा है. यह सिर्फ यही दिखाता है कि हमारा ज्ञान कितना अल्प है. हमने कभी भी इस तरह का झटका लगने की कल्पना नहीं की थी. इस महामारी ने हमें एक बार फिर से सारी चीजों का पुनमरूल्यांकन करने और अपने लिए नया मार्ग तय करने का अवसर दिया है.