Russia President Putin India Visit: एक पुरानी कहावत है कि जिस इमारत की नींव गहरी, बहुत ठोस और बहुत मजबूत होती है, वह इमारत झंझावातों की फिक्र नहीं करती. भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भारत-रूस की सदाबहार दोस्ती के संदर्भ में इस कहावत की फिर याद दिला दी है. दोनों की मुलाकात के बाद नरेंद्र मोदी ने कहा कि ये दोस्ती नई चुनौतियों के लिए तैयार है तो दूसरी तरफ पुतिन ने कहा कि भारत को हर हाल में रूस ईंधन की निर्बाध आपूर्ति करता रहेगा. दोनों का संदेश सीधे तौर पर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प के लिए है!
डोनाल्ड ट्रम्प पिछले कुछ दिनों से लगातार कह रहे हैं कि नरेंद्र मोदी ने उन्हें भरोसा दिलाया है कि रूस से तेल खरीदना बंद कर देंगे. इस पर भारत ने जब कहा कि हम अपनी जरूरतों के अनुरूप निर्णय लेते हैं तो ट्रम्प ने अपने बयान में यह जोड़ दिया कि तेल खरीदना बंद करने में भारत को कुछ वक्त लग सकता है! रूस से तेल खरीदने के कारण ही भारत पर ट्रम्प ने 25 प्रतिशत टैरिफ का जुर्माना लगाया हुआ है.
कुछ लोग यह सोचने लगे होंगे कि क्या जुर्माने के दबाव में भारत झुक जाएगा और क्या रूस से दोस्ती में कुछ कमी आ सकती है? कई लोगों ने मुझसे यह बात पूछी भी थी. मैंने हमेशा यही कहा कि हिंदुस्तान न पहले झुका था, न आज झुका है और न कल झुकेगा! हम अहिंसा में विश्वास करते हैं लेकिन किसी के आगे नहीं झुकते. हम केवल वहीं झुकते हैं, जहां श्रद्धा होती है.
भारत और सोवियत यूनियन (अब रूस) के रिश्ते किसी आर्थिक वजह से नहीं बने हैं. दिलों के रिश्ते मैत्री, सद्भाव, आचार-विचार की समानता और सांस्कृतिक कारणों से बने हैं. भारत में ऐसे भी प्रधानमंत्री आए जो विचारों से अमेरिका के नजदीक थे, लेकिन उन्होंने जब फाइलों के माध्यम से गहराई से जानकारी ली तो उन्होंने भी रूस के साथ दोस्ती बरकरार रखी.
दोस्ती दरअसल दोनों देशों के दिलों के बीच है. जब मैं वर्ल्डकप फुटबॉल देखने के लिए मास्को गया तब पहली बार मैंने महसूस किया कि भारतीयों के प्रति रूस के लोगों के मन में कितना स्वाभाविक प्रेम और सम्मान है. उसके पहले संसद के सेंट्रल हॉल में मि. पुतिन से मैं मिल चुका था.
मास्को में फुटबॉल मैच के दौरान हाथों में तिरंगा लिए मैंने जब हिंदुस्तान और रूस जिंदाबाद के नारे लगाए तो नीचे बैठे पुतिन हाथ हिलाते हुए मुस्कुराए. मैं पाठकों को बता दूं कि सोवियत यूनियन भले ही साम्यवादी विचारधारा का देश रहा और रूस का रुख भी वही रहा लेकिन क्रेमलिन में आप उनका ऑफिस देखेंगे तो उसकी भव्यता अमेरिका और चीन के कार्यालयों से भी बेहतर है.
वहां सोने की परतें लगी हुई हैं. शायद वे साम्यवाद के माध्यम से अपनी जनता के जीवन में भव्यता लाना चाहते होंगे. मगर अब केवल नाम का ही साम्यवाद बचा है. नई पीढ़ी के पाठकों के लिए यह जानकारी मैं साझा करना चाहता हूं कि भारत को ब्रिटेन से आजादी मिल गई थी लेकिन गोवा, दमन और दीव पर पुर्तगाल अपना शासन छोड़ने को तैयार नहीं था.
दिसंबर 1961 में हमारी फौज ने हमला किया और गोवा को आजाद करा लिया. उस वक्त यूरोप से लेकर अमेरिका तक हमारे विरुद्ध थे लेकिन तत्कालीन सोवियत संघ ने भारत का साथ दिया. यूनाइटेड नेशन में उसने हमारे पक्ष में वीटो किया था. 1971 में पाकिस्तान की मदद के लिए अमेरिका ने अपना 7वां नौसैनिक बेड़ा बंगाल की खाड़ी की ओर रवाना किया ताकि भारत को धमकाया जा सके लेकिन सोवियत संघ की पनडुब्बियां वहां पहले ही पहुंच चुकी थीं. सोवियत संघ का संदेश अमेरिका के लिए साफ था कि पीछे हट जाओ वरना खैर नहीं!
भारत के पास इस वक्त दुनिया की चौथे नंबर की सबसे ताकतवर फौज है तो उसमें रूस का बहुत बड़ा सहयोग है. उसने भरोसेमंद हथियार तो हमें दिए ही हैं, बिना किसी हील-हुज्जत के हथियारों की तकनीक भी हमें दी है. न केवल अमेरिका बल्कि उसके साथ खड़े देशों को भी समझना होगा कि रूस के साथ भारत की दोस्ती तोड़ने की कोई कोशिश,
बल्कि यूं कहना चाहिए कि कोई चालबाजी कामयाब नहीं होने वाली है. जी हां, चालबाजियां! पुतिन 4 दिसंबर को भारत पहुंचने वाले थे और 1 दिसंबर को भारत के एक बड़े अंग्रेजी अखबार में भारत में पदस्थ जर्मनी के राजदूत फिलिप एकरमैन, फ्रांस के राजदूत थिरी मथोउ और ब्रिटेन की उच्चायुक्त लिंडी कैमरुन का एक लेख छपता है जिसका शीर्षक था- दुनिया चाहती है कि यूक्रेन युद्ध का अंत हो लेकिन रूस शांति को लेकर गंभीर नहीं दिख रहा है. इसे आप चालबाजी नहीं कहेंगे तो और क्या कहेंगे?
मगर पुतिन इस बात को बखूबी समझते हैं, इसलिए उन्होंने चालबाजी करने वालों के जले पर, नरेंद्र मोदी के साथ मिलकर नमक छिड़क दिया. मोदी और पुतिन ने भारत-रूस की दोस्ती को ऐसा परवान चढ़ा दिया कि दुनिया दंग रह गई! नरेंद्र मोदी ने कहा कि सहयोग को नई ऊंचाइयों पर ले जाना हमारी साझी प्राथमिकता है.
2030 तक के लिए दोनों देशों ने आर्थिक साझेदारी योजना पर सहमति बनाई है. हम अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा, चेन्नई-व्लादिवोस्तोक समुद्री गलियारा जैसी योजनाओं पर नई ऊर्जा के साथ आगे बढ़ेंगे. इधर पुतिन ने बड़े साफ शब्दों में कहा कि मेक इन इंडिया में रूस हर तरह से सहयोग के लिए तैयार है. दोनों देश रूबल और रुपए में व्यापार कर रहे हैं.
पुतिन ने ट्रम्प के लिए ही शायद इस बात का जिक्र किया कि भारत और रूस, ब्रिक्स देशों के साथ मिलकर ज्यादा न्यायपूर्ण और बहुध्रुवीय दुनिया की दिशा में काम कर रहे हैं. नरेंद्र मोदी और पुतिन की ये भाषा ट्रम्प को निश्चय ही बड़ी कड़वी लगी होगी मगर दोनों देशों की दोस्ती को तोड़ना ट्रम्प के बूते में नहीं है.
सलामत रहे दोस्ताना हमारा..!