ब्लॉग: राजनीति में सत्ता ही एकमात्र नैतिकता बची है, जनता को अपने नेताओं के छल-प्रपंच से नहीं पड़ता कोई फर्क

By रंगनाथ सिंह | Published: November 23, 2019 06:26 PM2019-11-23T18:26:26+5:302019-11-23T18:28:11+5:30

पिछले कुछ सालों में भारतीय राजनीतिक दलों के बीच ऐसे गठबंधन हुए हैं जिन्हें लगभग असंभव माना जाता था। कश्मीर में बीजेपी ने पीडीपी से, यूपी में सपा ने बसपा से और बिहार ने जदयू ने राजद से जब हाथ मिलाया था तो लोग हैरान तो हुए लेकिन अपने-अपने दलों से वफादार बने रहे।

rangnath singh blog on maharashtra power is only morality left in today politics | ब्लॉग: राजनीति में सत्ता ही एकमात्र नैतिकता बची है, जनता को अपने नेताओं के छल-प्रपंच से नहीं पड़ता कोई फर्क

एनसीपी प्रमुख शरद पवार के भतीजे अजित पवार (बाएं) और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता देवेंद्र फड़नवीस। (lokmat graphics)

Highlights23 नवंबर को देवेंद्र फड़नवीस ने महाराष्ट्र के सीएम पद की और अजित पवार ने डिप्टी सीएम पद की शपथ ली। अजित पवार एनसीपी प्रमुख शरद पवार के भतीजे हैं। शुक्रवार रात तक एनसीपी कांग्रेस-शिवसेना के साथ सरकार बनाने का दावा कर रही थी।

शुक्रवार रात को जब देश सोया तो महाराष्ट्र में शिव सेना, कांग्रेस और एनसीपी के सरकार गठन को महज औपचारिकता माना जा रहा था। शनिवार सुबह देश के ज्यादातर बड़े अखबारों के फ्रंट पेज की टॉप ख़बर थी कि उद्धव ठाकरे होंगे महाराष्ट्र के अगले मुख्यमंत्री। लेकिन शनिवार सुबह जब देश ने ठीक से आँखें भी नहीं खोली थी तब तक बीजेपी नेता देवेंद्र फड़नवीस ने महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ले ली थी। उनके साथ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) नेता अजित पवार ने राज्य के उप-मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने दोनों को सुबह करीब आठ बजे पद और गोपनीयता की शपथ दिलायी।

जर्मन चांसलर और विख्यात कुठनीतिज्ञ बिस्मार्क का कथन राजनीतिक गलियारों में बार-बार उद्धृत किया जाता है। बिस्मार्क ने कहा था- राजनीति संभावनाओं को साधने की कला है। कहना न होगा बीजेपी अध्यक्ष और देश के गृह मंत्री ने इस कला को नई ऊँचाइयों तक पहुंचाया है। महाराष्ट्र में जो हुआ है उसके पीछे किस हद तक अमित शाह की भूमिका है यह शायद ही किसी को पता हो लेकिन सोशल मीडिया पर शाह को ही बीजेपी का चाणक्य मान कर जोक्स, मीम्स और तारीफ और निंदा के पुल बाँधे जा रहे हैं।

शरद पवार ने शनिवार सुबह कहा कि अजित पवार ने उन्हें धोखा दिया है लेकिन पवार की राजनीति को फॉलो करने वाले बहुत से पत्रकार यह मानने को तैयार नहीं है कि शरद पवार की जानकारी के बिना यह ओवरनाइट गेम हुआ है। स्वाति चतुर्वेदी और अखिलेश शर्मा जैसे पत्रकारों ने लिखा है कि शरद पवार को 'सब पता था।' ऐसे में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सीताराम केसरी का शरद पवार के बारे में दिया गया बयान याद आता है। केसरी ने कहा था- "जैसे मुग़लों को कभी शिवाजी के मन की थाह नहीं मिली, वैसे ही इस मराठा नेता की थाह मिलनी मुश्किल है।" केसरी के इस बयान का उल्लेख एनसीपी सांसद डीपी त्रिपाठी ने शरद पवार की जीवनी में किया है।

रातोंरात हुए इस उलटफेर के बाद सोशल मीडिया पर एक बार फिर नैतिकता की बहस छिड़ गयी है। लेकिन इस बहस के पक्ष और विपक्ष में दिए जा रहे तर्कों को जानने की कोशिश करना समय ख़राब करना है। आदतन बीजेपी समर्थक इसे कूटनीतिक चतुराई बता रहे हैं, वहीं कांग्रेस-एनसीपी-शिवसेना समर्थक इसे अनैतिक चालबाजी बता रहे हैं। लोग बीजेपी-पीडीपी, राजद-जदयू और सपा-बसपा के बीच हुए हालिया गठबंधनों का हवाला देकर इस तरह के राजनीतिक गठबंधन को रवायत बता रहे हैं। 

कुल मिलाकर अब यह साफ हो चुका है कि भारतीय राजनीति में सत्ता ही अब एकमात्र नैतिकता बची है। जिसके पास कुर्सी है वही नैतिक है और जिससे कुर्सी छिन गयी है वो अनैतिक। जनता को इससे जरा भी फर्क नहीं पड़ता कि उसके नेता ने कुर्सी के लिए किस तरह का छल-प्रपंच किया है।  

Web Title: rangnath singh blog on maharashtra power is only morality left in today politics

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