रमेश ठाकुर का ब्लॉग: कृषि कार्य में महिलाओं की भी है बड़ी भूमिका
By रमेश ठाकुर | Published: December 23, 2020 01:12 PM2020-12-23T13:12:02+5:302020-12-23T13:13:07+5:30
दिल्ली में पिछले करीब चार हफ्ते से किसानों का बड़ा आंदोलन चल रहा है. देश के कई प्रांतों के अन्नदाताओं ने राजधानी के विभिन्न हिस्सों में डेरा डाला हुआ है. जबकि यह वक्त कुछ जगहों पर धान की कटाई और गेहूं में पानी लगाने का है. दूसरी मौसमी फसलें भी खेतों में लगी हैं. उन सभी की देखभाल महिलाएं ही कर रही हैं.
किसान दिवस पर पुरुष किसानों की चर्चा तो होती है लेकिन महिला किसानों के योगदान पर समुचित ध्यान नहीं दिया जाता. जनगणना 2011 के मुताबिक समूचे हिंदुस्तान में तकरीबन 6 करोड़ के आसपास महिला किसानों की संख्या बताई गई है. लेकिन धरातल पर उनकी संख्या कहीं ज्यादा है. बीते कुछ दशकों से ग्रामीण इलाकों के पुरुषों विशेष कर युवाओं का रुझान खेतीबाड़ी के बजाय नौकरियों व व्यापार में ज्यादा बढ़ा है. उनके नौकरियों या व्यापार में चले जाने के बाद खेतीबाड़ी की जिम्मेदारी महिलाओं के कंधों पर ही होती है. इस लिहाज से ये आंकड़ा पुरुषों के मुकाबले आधे से भी ज्यादा हो जाता है.
दिल्ली में पिछले करीब चार हफ्ते से किसानों का बड़ा आंदोलन चल रहा है. देश के कई प्रांतों के अन्नदाताओं ने राजधानी के विभिन्न हिस्सों में डेरा डाला हुआ है. जबकि यह वक्त कुछ जगहों पर धान की कटाई और गेहूं में पानी लगाने का है. दूसरी मौसमी फसलें भी खेतों में लगी हैं. उन सभी की देखभाल महिलाएं ही कर रही हैं. बिहार में ‘किसान चाची’ के नाम से प्रसिद्ध महिला किसान राजकुमारी देवी एक बड़ा उदाहरण हैं जिन्होंने कई जिलों में मीलों दूर साइकिल चलाकर किसानी के प्रति ग्रामीण महिलाओं में अलख जगाई. उन्होंने देखा कि अधिकांश किसानों के पास खेती के लिए कम जमीनें थीं.
घर-परिवार का गुजारा मुश्किल से होता था, परिवार की स्थिति खराब थी. ऐसे में किसान चाची ने पुरुषों को शहरों में जाकर नौकरी करने और महिलाओं को खेती करने का नुस्खा दिया. महिलाआंे ने उनकी सलाह मानी, नतीजा ये निकला कि उनके घरों में महिला-पुरुष दोनांे कमाने के लिए सशक्त हुए. बिहार में किसान चाची के प्रयास से आज कई जिलों की महिलाएं खेतीबाड़ी करती हैं. महिलाआंे के खेती के प्रति किए गए सशक्तिकरण को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री सम्मान से भी नवाजा है.
आंकड़ों के अनुसार खेतीबाड़ी के काम में 32.8 प्रतिशत महिलाएं और 81.1 फीसदी पुरुष जुड़े हैं. लेकिन ये कागजी आंकड़े यह नहीं बताते कि इनमें 81.1 फीसदी पुरु ष किसानों के घर की वे औरतें भी काम करती हैं, जो किसान नहीं कहलातीं. महिलाएं फसलों की बुआई से लेकर निराई, फसल काटने आदि में अपनी भागीदारी बढ़-चढ़कर निभाती हैं.
आधी आबादी के उत्थान के लिए केंद्र सरकार ने पिछले साल एक अच्छी पहल की है. महिला किसानों के लिए ‘महिला किसान सशक्तिकरण योजना’ का श्रीगणोश किया गया. योजना के तहत 24 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 84 परियोजनाओं के लिए 847 करोड़ रुपए आवंटित किए गए. देश में महिला किसानों की बढ़ती संख्या और कृषि से जुड़ी उनकी वर्तमान स्थिति सुधारने और उन्हें सशक्त बनाने के मकसद से योजना की शुरुआत की गई. कहा गया कि योजना से महिलाओं को कृषि क्षेत्न में आगे बढ़ने के लिए अवसर उपलब्ध होंगे.
इसमें खेती करने के लिए महिलाओं को कर्ज व खाद और बीज में सब्सिडी देने का प्रावधान है. लेकिन साल भर पहले शुरू हुई इस योजना की महिला किसानों को ज्यादा जानकारी नहीं है. सरकार को इस योजना का प्रचार-प्रसार करना चाहिए ताकि इससे अधिकतम महिलाएं लाभान्वित हो सकें. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट बताती है कि किसानी में महिलाओं की हिस्सेदारी 43 फीसदी है जिन्हें किसान नहीं बल्कि महिला मजदूर कहा जाता है. जरूरत यह है कि खेती से जुड़ी महिलाओं को मुकम्मल रूप से किसान माना जाए.