राजीव के हत्यारों को छोड़ने की राजनीति अस्वीकार्य
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Updated: September 16, 2018 15:03 IST2018-09-16T15:03:15+5:302018-09-16T15:03:15+5:30
अभी उच्चतम न्यायालय ने एक याचिका पर तमिलनाडु के राज्यपाल से कहा है कि वो राजीव गांधी की हत्या में दोषी एजी पेरारिवलन की दया याचिका पर विचार करें। यह निर्देश आते ही पेरारिवलन की मां ने मुख्यमंत्नी से मुलाकात की और यह फैसला हो गया।

राजीव के हत्यारों को छोड़ने की राजनीति अस्वीकार्य
(संपादकीय- अवधेश कुमार)
निश्चय ही यह तमिलनाडु के बाहर देश को हतप्रभ करने वाला प्रकरण है। तमिलनाडु मंत्रिमंडल ने पूर्व प्रधानमंत्नी राजीव गांधी की हत्या के अपराध में सजा काट रहे सभी सात अभियुक्तों को रिहा करने की राज्यपाल से सिफारिश करने का फैसला किया है। सातों पिछले 27 वर्ष से जेल में बंद हैं। यह अन्नाद्रमुक सरकार का फैसला अवश्य है, पर वहां की अधिकतर पार्टियों का इसे समर्थन है। द्रमुक प्रमुख एमके स्टालिन ने भी इसकी मांग की थी। हालांकि यह पहली बार नहीं है। फरवरी 2014 में तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्नी जयललिता ने भी सभी दोषियों को रिहा करने का फैसला किया था।
दरअसल, अभी उच्चतम न्यायालय ने एक याचिका पर तमिलनाडु के राज्यपाल से कहा है कि वो राजीव गांधी की हत्या में दोषी एजी पेरारिवलन की दया याचिका पर विचार करें। यह निर्देश आते ही पेरारिवलन की मां ने मुख्यमंत्नी से मुलाकात की और यह फैसला हो गया। वस्तुत: पेरारिवलन ने राज्यपाल के पास दया याचिका दायर की हुई है। जिस समय से उसकी दया याचिका की खबर आई, तमिलनाडु की राजनीति में उसी तरह का वातावरण बनाने की कोशिश हुई जैसी 2014 के आरंभ में हुई थी।
तब उच्चतम न्यायालय ने 18 फरवरी, 2014 को तीन मुजरिमों-मुरूगन, संथम और पेरारिवलन की मौत की सजा को उम्रकैद में परिणत कर दिया था। इसके बाद सबको रिहा करने की मांग तेज हो गई और जयललिता सरकार ने इसका निर्णय भी कर दिया। वे रिहा हो ही जाते लेकिन उच्चतम न्यायालय ने तत्कालीन केंद्र सरकार की याचिका पर 20 फरवरी 2014 को इनकी रिहाई पर स्थगनादेश दे दिया।
जैसा हम जानते हैं 21 मई 1991 को तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में आत्मघाती हमले में राजीव गांधी की हत्या में शामिल वी श्रीहरण उर्फ मुरूगन, टी सतेंद्रराजा उर्फसंथम, एजी पेरारिवलन उर्फ अरिवु, जयकुमार, राबर्ट पायस, पी रविचंद्रन और नलिनी जेल में बंद हैं। ये बाहर आएं इसके लिए लगातार प्रत्यक्ष और परोक्ष मुहिम चल रही है। ध्यान रखिए उच्चतम न्यायालय ने इनमें से किसी को निदरेष नहीं माना। जब वे निदरेष नहीं हैं यानी आतंकवादी हत्या में उनकी भूमिका है तो फिर इनके पक्ष में सहानुभूति का कोई कारण नहीं हो सकता।
यह सच छानबीन में और आयोग की जांच में भी साफ हो गया था कि राजीव गांधी की हत्या लिट्टे के षड्यंत्न का हिस्सा थी और जिन्हें सजा मिली वे किसी न किसी रूप में उसमें संलिप्त थे। स्वयं लिट्टे ने स्वीकार किया कि राजीव गांधी की हत्या उसने ही कराई है। क्या आतंकवाद से इस तरह लड़ा जाएगा?
उच्चतम न्यायालय ने निचली अदालत द्वारा दोषी ठहराए गए 19 अन्य लोगों को दोषमुक्त करार दिया था। जाहिर है, जिनको फांसी एवं उम्रकैद की सजा सुनाई गई उनके खिलाफ पुख्ता प्रमाण हैं। इसलिए तमिलनाडु की पार्टियों के आगे भारत के पूर्व प्रधानमंत्नी की हत्या के मामले में देश नहीं झुक सकता। केंद्र सरकार को इस मामले में कठोर रुख अपनाना चाहिए।