29 वर्ष पूर्व आज का दिन जिसे भी याद होगा, उसकी आंखों से कुछ बूंदें अवश्य टपक जाएंगी, चाहे वह किसी भी दल या विचार का हो. राजीव गांधी का व्यक्तित्व ऐसा था जिसमें निजी बैर का कोई स्थान नहीं था. मुझे याद है रात पौने 11 बजे अपने अखबार के काम निपटाकर घर लौटा और रेडियो लगाया तो पहली खबर यही थी कि राजीव गांधी श्रीपेरंबदूर में आत्मघाती हमले में मारे गए. इस घटना ने पूरे देश को सन्न कर दिया.
कोई भी कल्पना नहीं कर सकता था कि राजीव गांधी जैसे विनम्र, शालीन एवं व्यवहारकुशल व्यक्ति के साथ ऐसा हो सकता है. हालांकि कुछ ही घंटों में यह साफ होने लगा कि उनकी हत्या उन तमिल टाइगर के आतंकवादियों ने की है जिनकी भलाई के लिए श्रीलंका से शांति समझौता करके तमिलों को उनका अधिकार दिलाने तथा वहां शांति स्थापना एवं चुनाव कराने का उन्होंने दायित्व लिया था.
वास्तव में राजीव गांधी के जीवन के अनेक पहलुओं पर खूब चर्चा होती है किंतु उनकी हत्या के कारणों पर बात करने से लोग बचते हैं. अनेक आलोचक बिना सोचे-विचारे कहते हैं कि राजीव गांधी ने श्रीलंका में टांग फंसाकर एवं शांति सेना भेजकर गलत किया. क्या गलत किया? श्रीलंका की तमिल समस्या से भारत कब अलग रहा? राजीव गांधी ने भारत के दूरगामी हित में, श्रीलंकाई तमिलों को गरिमापूर्ण जीवन दिलाने और पड़ोसी श्रीलंका में शांति स्थापित करने के नेक इरादे से वहां हस्तक्षेप किया था. उससे भारत का कद बढ़ा था.
राजीव गांधी ने दृढ़ संकल्प के साथ हस्तक्षेप किया, भारत के दबाव में जयवर्धने को झुकना पड़ा, शांति वार्ता होने लगी और अंतत: भारत की मध्यस्थता में 29 जुलाई 1987 कों श्रीलंका सरकार, लिट्टे और भारत के बीच शांति समझौता हो गया. वास्तव में श्रीलंका शांति समझौता राजीव गांधी और भारत की बहुत बड़ी कूटनीतिक विजय थी. उसमें सफलता के सूत्न निहित थे.
अगर प्रभाकरण ने विश्वासघात नहीं किया होता तथा बाद में राजीव गांधी को अपने आत्मघाती दस्ते से उड़ाया नहीं होता तो लिट्टे भी बचा रहता और प्रभाकरण भी. एक निश्छल और भारत की भलाई चाहने वाला तथा राजनीति में विरोधियों को सम्मान देने वाला नेता हमसे नहीं बिछुड़ता.