राजेश कुमार यादव का ब्लॉग: मुंशी प्रेमचंद का साहित्य समाज के आईने की तरह है

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: July 31, 2020 11:48 AM2020-07-31T11:48:21+5:302020-07-31T11:48:21+5:30

Rajesh Kumar Yadav's blog: Munshi Premchand's literature is like a mirror of society. | राजेश कुमार यादव का ब्लॉग: मुंशी प्रेमचंद का साहित्य समाज के आईने की तरह है

राजेश कुमार यादव का ब्लॉग: मुंशी प्रेमचंद का साहित्य समाज के आईने की तरह है

Highlightsप्रेमचंद सांप्रदायिकता, भ्रष्टाचार, जमींदारी, कर्जखोरी, गरीबी पर आजीवन लिखते रहे1980 में उनके उपन्यास पर बना टीवी धारावाहिक निर्मला भी बहुत लोकप्रिय हुआ था.

हिंदी कथा-साहित्य को तिलस्मी कहानियों के झुरमुट से निकालकर जीवन के यथार्थ की ओर मोड़कर ले जाने वाले कथाकार मुंशी प्रेमचंद, जिनके साहित्य में गांव की मिट्टी की सोंधी गंध, गंगा-जमुनी तहजीब की भाषा, समरसतावादी सामाजिक ढांचे की छुअन महसूस होती है, की आज जयंती है.

हिंदी साहित्य में प्रेमचंद का कद काफी ऊंचा है और उनका लेखन कार्य एक ऐसी विरासत है, जिसके बिना हिंदी के विकास को अधूरा ही माना जाएगा. मुंशी प्रेमचंद एक संवेदनशील लेखक, सचेत नागरिक, कुशल वक्ता और बहुत ही सुलङो हुए संपादक थे. प्रेमचंद ने हिंदी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया, जिसने एक पूरी सदी के साहित्य का मार्गदर्शन किया. उनकी लेखनी इतनी समृद्ध थी कि इससे कई पीढ़ियां प्रभावित हुईं और उन्होंने साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की भी नींव रखी. उन्होंने अपनी रचनाओं में जन साधारण की भावनाओं, परिस्थितियों और उनकी समस्याओं का मार्मिक चित्नण किया.

कथा सम्राट प्रेमचंद का कहना था कि  साहित्यकार देशभक्ति और राजनीति के पीछे चलने वाली सच्चाई नहीं बल्कि उसके आगे मशाल दिखाती हुई चलने वाली सच्चाई है. यह बात उनके साहित्य में उजागर भी हुई है. प्रेमचंद ने साहित्य को सच्चाई के धरातल पर उतारा. उन्होंने जीवन और कालखंड की सच्चाई को पन्ने पर उतारा. वे सांप्रदायिकता, भ्रष्टाचार, जमींदारी, कर्जखोरी, गरीबी पर आजीवन लिखते रहे.

1936 में प्रगतिशील लेखक संघ के पहले सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए उन्होंने कहा, ‘लेखक स्वभाव से प्रगतिशील होता है और जो ऐसा नहीं है वह लेखक नहीं है.’ लेखनी के शुरुआती दिनों में जब उन्होंने सरकारी सेवा करते हुए कहानी लिखना शुरू किया, तब वह अपना नाम  नवाब राय लिखा करते थे. लेकिन जब सरकार (ब्रिटिश) ने उनका पहला कहानी-संग्रह, ‘सोजे वतन’ जब्त किया, तब उन्हें नवाब राय नाम छोड़ना पड़ा.

प्रेमचंद के नाम के साथ मुंशी विशेषण जुड़ने का प्रामाणिक कारण यह है कि ‘हंस’ नामक पत्रिका प्रेमचंद एवं कन्हैयालाल मुंशी के सह संपादन में निकलती थी, जिसकी प्रतियों पर कन्हैयालाल मुंशी और प्रेमचंद का नाम इस प्रकार छपा होता था- संपादक- मुंशी, प्रेमचंद. परंतु कालांतर में पाठकों ने मुंशी तथा  प्रेमचंद  को एक समझ लिया और  प्रेमचंद - मुंशी प्रेमचंद बन गए. प्रेमचंद ने हंस, माधुरी, जागरण  आदि पत्न-पत्रिकाओं का संपादन करते हुए व तत्कालीन अन्य सहगामी साहित्यिक पत्रिकाओं  चांद, मर्यादा, स्वदेश आदि में अपनी साहित्यिक व सामाजिक चिंताओं को लेखों या निबंधों के माध्यम से अभिव्यक्त किया.

साहित्य की बात करते हुए प्रेमचंद लिखते हैं- जो धन और संपत्ति चाहते हैं, साहित्य में उनके लिए स्थान नहीं है. केवल वे, जो यह विश्वास करते हैं कि सेवामय जीवन ही श्रेष्ठ जीवन है, जो साहित्य के भक्त हैं और जिन्होंने अपने हृदय को समाज की पीड़ा और प्रेम की शक्ति से भर लिया है, उन्हीं के लिए साहित्य में स्थान है. वे ही समाज के ध्वज को लेकर आगे बढ़ने वाले सैनिक हैं.  

प्रेमचंद के कथा साहित्य की ताकत ही थी कि लगभग सभी प्रमुख भारतीय फिल्मकारों ने प्रेमचंद की कहानियों और उपन्यासों को केंद्र में रखकर फिल्में बनाईं. प्रेमचंद के निधन के दो साल बाद के. सुब्रमण्यम ने 1938 में सेवासदन उपन्यास पर फिल्म बनाई जिसमें सुब्बालक्ष्मी ने मुख्य भूमिका निभाई थी. 1963 में गोदान और 1966 में गबन उपन्यास पर लोकप्रिय फिल्में बनीं.

सत्यजित राय ने प्रेमचंद की दो कहानियों पर यादगार फिल्में बनाईं. 1977 में शतरंज के खिलाड़ी और 1981 में सद्गति. 1977 में मृणाल सेन ने भी प्रेमचंद की कहानी कफन पर आधारित ओका ऊरी कथा नाम से एक तेलुगु फिल्म बनाई, जिसको सर्वश्रेष्ठ तेलुगु फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला. 1980 में उनके उपन्यास पर बना टीवी धारावाहिक निर्मला भी बहुत लोकप्रिय हुआ था.

Web Title: Rajesh Kumar Yadav's blog: Munshi Premchand's literature is like a mirror of society.

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