राजेश बादल का ब्लॉग: मोदी मंत्रिमंडल में विस्तार, भाजपा को मिल सकता है इस सर्जरी का फायदा
By राजेश बादल | Published: July 9, 2021 11:16 AM2021-07-09T11:16:34+5:302021-07-09T11:17:06+5:30
कोरोना महामारी, रोजगार सहित पश्चिम बंगाल चुनाव में हार आदि मुद्दों के बाद मंत्रिमंडल में फेरबदल की अटकलें लगाई जा रही थीं. इसका फायदा आने वाले दिनों में भाजपा को मिल सकता है.
बुधवार को मंत्रिमंडल में बड़े फेरबदल के जरिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सर्जरी का फायदा भाजपा को भविष्य में अर्थात आने वाले चुनाव में मिल सकता है. दल के भीतर पनपने लगे असंतोष को रोकने की कवायद भी आप इसे कह सकते हैं.
दरअसल इस फेरबदल की नींव तो बंगाल विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद ही पड़ गई थी. मेरी जानकारी के मुताबिक प्रधानमंत्री को करीब दो महीने पहले मंत्रियों के कामकाज और सरकार की छवि के बारे में एक रिपोर्ट सौंपी गई थी. यह रिपोर्ट मोदी के कुछ भरोसेमंद गैरराजनीतिक सूत्रों ने ही तैयार की थी.
इसमें कुछ बातें खरी-खरी और कही गई थीं. मसलन गंभीर चेतावनी यह थी कि वर्तमान मंत्रिमंडल परिणाम देने वाला नहीं है. इसके अधिकतर लोग हर काम के लिए प्रधानमंत्री के इशारे का इंतजार करते हैं. कोरोना काल में स्वास्थ्य और रोजगार के मसले पर केंद्र सरकार की बहुत बदनामी और किरकिरी हुई है.
स्वास्थ्य मंत्री तब तक सक्रिय नहीं हुए, जब तक प्रधानमंत्री कार्यालय से नहीं कहा गया. स्वास्थ्य मंत्री अपने निजी संपर्क संसार में कहने लगे थे कि वे एक परिचित को अस्पताल में बिस्तर तक नहीं दिला सकते. इसी तरह रोजगार के मुद्दे पर भी सरकार कठघरे में खड़ी थी.
रोजगार मंत्री के पास कोई आपात योजना नहीं थी. शिक्षा तंत्र भी पूरी तरह फ्लॉप रहा. विरोधाभासी फैसलों को रोकने वाला कोई तंत्र नहीं था. यह तो हुई इस सर्जरी में अयोग्य साबित हुए मंत्रियों को हटाने की बात. इसके अलावा एक श्रेणी ऐसे नेताओं की थी, जो सरकार में शामिल रहते हुए नतीजे तो नहीं दे पा रहे थे, लेकिन पार्टी के प्रति पूरे निष्ठावान बने रहे.
उनकी योग्यता का उच्चतम शिखर यही था. ऐसे लोगों को भी कुछ शोभा के पद दिए गए और कुछ को अभी आने वाले दिनों में दिए जाएंगे.
दूसरी बात यह रही कि कई राज्यों के आगामी विधानसभा चुनाव और अगले लोकसभा चुनाव की तैयारियों को ध्यान में रखकर काबिल और प्रशासनिक पकड़ रखने वाले लोगों की जरूरत सरकार को थी.
इसके मद्देनजर नए चेहरों को अवसर देने का प्रयास किया गया है. शपथ समारोह से पहले प्रधानमंत्री ने इन चेहरों के साथ बैठक में स्पष्ट कर दिया है कि सरकार को अब तेजी से काम करना होगा और कुछ संवेदनशील मामलों को छोड़कर मंत्री अपने विभाग चलाने के लिए स्वतंत्र हैं.
असल में यह धारणा बन गई थी कि मंत्रियों को आजादी नहीं है और पीएमओ की मंजूरी के बिना पत्ता भी नहीं खड़कता.
अंतिम खास बात सियासी है. बंगाल में हार से पार्टी और सरकार की छवि बहुत खराब हुई है. बिना विचारे दूसरी पार्टी से नेताओं को आयात करने से भाजपा के निष्ठावान और समर्पित कार्यकर्ताओं को ठेस लगी है. यह स्थिति स्थानीय स्तर पर ठीक नहीं है.
इसके अलावा उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और जिन प्रदेशों में चुनाव होने जा रहे हैं, उनमें सहयोगियों को संतुष्ट करने तथा जातीय और क्षेत्री संतुलन बनाने का प्रयास किया गया है. चिराग के चाचा पारस को कैबिनेट मंत्री बनाया जाना बताता है कि छोटी पार्टियों में टूटफूट की आशंका बनी रहेगी.