सावधान! समंदर पार संकेतों के संदेश गंभीर हैं

By राजेश बादल | Published: September 11, 2018 05:21 AM2018-09-11T05:21:12+5:302018-09-11T05:21:12+5:30

श्रीलंका, मालदीव और पाकिस्तान के बाद नेपाल भी बेगानी राह चल पड़ा है। 

Rajesh badal Blog: Attention! Foreign Messages are very serious | सावधान! समंदर पार संकेतों के संदेश गंभीर हैं

सावधान! समंदर पार संकेतों के संदेश गंभीर हैं

राजेश बादल

नेपाल से भी झटका। भारतीय विदेश नीति के नियंताओं ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि भारत के जुड़वा भाई जैसा यह देश भी कुट्टी की राह पर चल पड़ेगा। अपनी भौगोलिक स्थिति तो वह नहीं बदल सकता लेकिन अब हम अपनी दोस्ती पर गर्व करने की स्थिति में संभवत: नहीं रहे। नेपाल के लोग जिसे अपना बड़ा घर मानते हैं, वहां आकर नेपाल की सेना हमारी सेना के साथ अभ्यास करने तक के लिए तैयार नहीं है। श्रीलंका, मालदीव और पाकिस्तान के बाद नेपाल भी बेगानी राह चल पड़ा है। 

31 जुलाई 1950 को नेपाल के साथ हुई शांति सहयोग संधि को आज याद करने का कोई अर्थ नहीं है। लेकिन जब आप दोनों देशों के संबंधों में आई दरार में झांकने का प्रयास करेंगे तो यकीनन इस ऐतिहासिक दस्तावेज के बाद 68 साल के सफर की पड़ताल करनी होगी। सदियों से धार्मिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से नेपाल हिंदुस्तान के साथ कुछ इस तरह घुल-मिल गया है कि कभी भी नेपाल का नाम लेते ही परदेस का भाव नहीं जगता। हर भारतीय काठमांडू और पशुपतिनाथ जाना चाहता है। नेपाल का हर नागरिक बद्रीनाथ और केदारनाथ धाम की यात्र करके अपने को धन्य समझता है। शांति संधि के बाद दोनों राष्ट्रों के रिश्तों को औपचारिक गहराई मिली। दोनों देशों ने विदेश और रक्षा नीति में गाढ़े सहयोग का वादा किया। 

इस समझौते की पहली परीक्षा दो साल के भीतर ही हो गई, जब चीन की मदद से वहां की कम्युनिस्ट पार्टी ने तख्तापलट का षड्यंत्न किया। इसे नाकाम करने के लिए मिलिटरी मिशन भेजा गया। मिशन की अगुवाई मेजर जनरल रैंक के एक अधिकारी ने की थी। बीस आला फौजी अफसर भी साथ गए और नेपाल में उस विद्रोह को कुचल दिया गया। इसके बाद नेपाल चीन से आशंकित हो गया। संधि के मुताबिक नेपाल अपनी सेना को ताकतवर बनाने के लिए भारत से सैनिक साजो-सामान खरीद सकता था, जिस पर कोई टैक्स नहीं था। 

नेपाल और भारत दोनों के लिए यह एक चेतावनी थी। भारत के लिए इसलिए कि ठीक इन्हीं दिनों तेलंगाना इलाके में भी ऐसी ही कार्रवाई का सामना करना पड़ा था। इसके बारे में भारत सरकार के पास ठोस सबूत थे कि चीन की मदद से वहां हिंसक क्रांति की तैयारियां चल रही थीं। उन दिनों गुलजारीलाल नंदा गृह मंत्रलय का जिम्मा संभाल रहे थे। उनके निर्देश पर सुरक्षा बलों ने त्वरित कार्रवाई की और इस विद्रोह की कोशिश को विफल कर दिया गया। इस ऑपरेशन के बारे में गुलजारीलाल नंदा ने आकाशवाणी पर राष्ट्र के नाम एक आपात संदेश भी प्रसारित किया था। अफसोस! दोनों देशों ने इस पर ध्यान नहीं दिया। चीन की गुपचुप कोशिशें चलती रहीं। हम बेखबर रहे। 

हालांकि नेपाल शांति और दोस्ती की संधि के मुताबिक भारत से हथियार लेता रहा था। मगर उसमें एक प्रावधान यह भी था कि अगर नेपाल चाहे तो भारत से चर्चा के बाद अन्य देशों से भी हथियार खरीद सकता है। दस बरस पहले अमेरिका से नेपाल ने हथियार खरीदे थे लेकिन नेपाल की सेना ने यह तथ्य कभी खुलकर नहीं बताया। वैसे नेपाल की सेना के साथ एक शानदार परंपरा और रही है, जो भारत  की किसी देश के साथ नहीं है। यह परंपरा एक दूसरे के सेनाध्यक्षों को अपने देश में सर्वोच्च सम्मान देने की है। हमारे सेनाध्यक्ष नेपाल की फौज के मानद जनरल होते हैं और नेपाल के सेनाध्यक्ष हमारे यहां के। मगर हाल के बरसों से इस परंपरा में भी शिथिलता आई है।  

खतरा अनेक स्तरों पर बढ़ गया है? नेपाली गोरखे भारतीय सेना का एक मजबूत हिस्सा रहे हैं। वे भारतीय सेना की कमजोरियों, रणनीतिक कौशल, युद्धक तरीकों से अच्छी तरह वाकिफ हैं। चीन के लिए नेपाल की सेना में सेंध लगाने से अनेक फायदे हो सकते हैं। दूसरी बात, नेपाल ने बिम्सटेक देशों की पहली जॉइंट मिलिटरी एक्सरसाइज में शामिल होना मंजूर किया था। दस सितंबर से यह अभ्यास पुणो में हो रहा है। अभ्यास में श्रीलंका, बांग्लादेश, भूटान, म्यांमार और थाईलैंड शामिल हो रहे हैं। नेपाल के ठीक एक दिन पहले मना करने से भारत की अपने अन्य पड़ोसियों के बीच किरकिरी होगी। 

अन्य छोटे देश नेपाल के रवैये को भारत विरोधी मान सकते हैं। म्यांमार और भूटान इस दृष्टि से बेहद संवेदनशील हैं। ये देश यह भी जानते हैं कि सांस्कृतिक नजरिए से भारत के सर्वाधिक करीब नेपाल रहा है। जब नेपाल चीन के प्रभाव में आ गया तो अन्य देशों को भारत किस तरह संरक्षण दे पाएगा? यह सवाल आने वाले दिनों में इन देशों की विदेश नीति में झलकेगा। कह सकते हैं कि सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने एक साथ दो मोर्चो पर लड़ने का बयान देकर भारत की नींद लंबे समय तक उड़ा दी है। चीन की भारत को चारों दिशाओं से घेरने की योजना नेपाल को अपने खेमे में शामिल करने के साथ ही काफी हद तक पूरी हो चुकी है। क्या हिंदुस्तान के हम चुनावप्रेमी लोग अब इतिहास के गड़े मुर्दे उखाड़कर भारतीय हितों की हिफाजत कर सकेंगे?

Web Title: Rajesh badal Blog: Attention! Foreign Messages are very serious

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