पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान में भी बदहवासी
By राजेश बादल | Published: February 19, 2019 05:23 AM2019-02-19T05:23:30+5:302019-02-19T05:23:30+5:30
पाकिस्तान के अखबारों और टेलीविजन की मानें तो उनका देश ऐसे दलदल में फंस गया है, जिससे निकलने की कोई सूरत नहीं दिखती. इस आलेख में पाकिस्तानी मीडिया से निकले सुरों का विश्लेषण.
पाकिस्तान के लोग घबराए हुए हैं. जिस इमरान खान को उन्होंने लोकतंत्न की मजबूती के लिए गद्दी पर बिठाया था, वह तो और भी कमजोर निकला. आईएसआई और फौज ने उस पर शिकंजा कस दिया है. 22 करोड़ की आबादी वाला यह मुल्क अपने आप को एक बार फिर ठगा सा महसूस कर रहा है. आर्थिक बदहाली और महंगाई का रूप दिनोंदिन विकराल हो रहा है. सऊदी अरब की मदद का बड़ा हिस्सा सेना ने हड़प लिया है. जनहित में उसका इस्तेमाल नहीं हो रहा है. पाकिस्तान के अखबारों और टेलीविजन की मानें तो उनका देश ऐसे दलदल में फंस गया है, जिससे निकलने की कोई सूरत नहीं दिखती. इस आलेख में पाकिस्तानी मीडिया से निकले सुरों का विश्लेषण.
पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर आत्मघाती हमले के बाद पाकिस्तान का मीडिया करीब-करीब एक सुर से हुकूमत को कोस रहा है. सरकारी टेलीविजन पीटीवी और कुछ अपवाद छोड़ दें तो कमोबेश सभी चैनल और स्थानीय समाचारपत्न हमले का विरोध अथवा आलोचना करते दिखाई दे रहे हैं. हालांकि वे पाकिस्तान का हाथ होने पर दबी जबान से चर्चा करते हैं, लेकिन जैश-ए-मोहम्मद की भूमिका और इसके मुखिया मसूद अजहर की करतूतों पर खुलकर सवाल उठा रहे हैं. इन बहसों में कहा जा रहा है कि एक पाकिस्तानी के कारण पाकिस्तान की जनता खतरे में पड़ गई है. अभी तक ऐसे हमलों से पाकिस्तान पल्ला झाड़ लेता था. मगर इस कांड में तो बाकायदा जैश-ए-मोहम्मद ने वीडियो जारी कर जिम्मेदारी ली है. इससे दो बातें साफ हैं. एक तो यह कि मसूद अजहर का संगठन पाकिस्तान से खुलकर ऑपरेट कर रहा है. दूसरा भारतीय नौजवानों को पाकिस्तान के आतंकवादी शिविरों में ट्रेनिंग दी जा रही है. इमरान खान इससे बच नहीं सकते.
सवाल जायज हैं. क्या कोई पाकिस्तान को बताएगा कि कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियों को पाक के आम आदमी का समर्थन नहीं है. हालिया चुनाव में हाफिज सईद की जमात उद दावा पार्टी के सफाए से यह पता चल जाता है. इससे पहले कट्टरपंथियों ने जब-जब भी लोगों के वोट पाने के प्रयास किए, वे नकार दिए गए. स्पष्ट है कि उनका जनाधार नहीं है. फौज और आईएसआई को यह समझ लेना चाहिए. आम पाकिस्तानी समझ गए हैं कि भारत से लड़कर कश्मीर नहीं हासिल कर सकते. फिर अनंतकाल तक अपने देश को भिखारी बनाकर रखने का क्या तुक है? दूसरा सवाल पाकिस्तानी मीडिया में यह है कि क्या वाकई हिंदुस्तान का नजरिया पाकिस्तान के प्रति शत्नुतापूर्ण रहा है? बहुमत कहता है कि पाकिस्तान ने ही हमेशा लड़ाई छेड़ी है. चाहे 1948 हो, 1965 हो, 1971 हो या फिर कारिगल. वे कहते हैं हिंदुस्तान ने कभी भी जंग की पहल नहीं की. उसका रवैया सदाशयतापूर्ण रहा है. वहां के राजनीतिक जानकार कहते हैं कि हर बार पाक को मुंह की खानी पड़ी है, फिर भी हम सीखते नहीं, फौज व आईएसआई घुट्टी पिलाती हैं, हम कौम बर्बाद होते देख रहे हैं.
तीसरा सवाल बड़ा तीखा है. डीआईएन चैनल पर कुछ दिनों पहले चर्चा में अतिथि मेहमानों के प्रश्न थे, इस मुल्क ने हमें क्या दिया? पड़ोसी इंडिया, अफगानिस्तान, ईरान यहां तक कि अपने ही हिस्से रहे बांग्लादेश से नहीं बनती. चीन हमें जकड़ रहा है. आर्थिक बदहाली हमें खा रही है. देश पर करीब-करीब एक लाख मिलियन डॉलर विदेशी कर्ज है. अब तो सरकारी तौर पर कहा जाने लगा है कि पर्याप्त बिजली देना मुमकिन नहीं है. गीजर से पानी गर्म करना लक्जरी आदत है. तीन दशक पहले पंखा ऐसी लक्जरी होते थे. अब फिर वही नौबत आने वाली है. हाथ से झलने वाले पंखे फिर काम आने लगे हैं. इमरान साब! पहले रोटी, पानी, रोजगार दो. यदि घर में खाने के लाले पड़े हों तो क्या हम स्वतंत्न विदेश नीति अपना सकते हैं? कभी नहीं. इसलिए इंडिया से दोस्ती के सिवा चारा नहीं.
मसूद अजहर पाकिस्तानियों को बोझ लगने लगा है. कई देशों में आतंकवादी वारदातों के लिए वह जिम्मेदार है. उसे 1995 में श्रीनगर से गिरफ्तार किया गया था. भारतीय विमान के अपहरण के बाद वाजपेयी सरकार ने 1999 में अपहरणकर्ताओं की शर्ते मानते हुए कंधार ले जाकर मसूद अजहर को छोड़ दिया था. पठानकोट हमले के बाद पाकिस्तान ने मसूद अजहर को कुछ समय के लिए हिरासत में लिया था. बाद में छोड़ दिया गया. पाकिस्तानी सिविल सोसायटी खुलकर बोल रही है कि मसूद अजहर और हाफिज सईद जैसों के कारण ही भारत से तीस साल से तनावपूर्ण संबंध हैं. इससे पहले लंबे समय तक दाऊद दोनों मुल्कों के बीच खराब रिश्तों की वजह रहा है. इसी दशक में दुर्दात आतंकवादी ओसामा बिन लादेन पाकिस्तान में बरसों छिपा रहा. इससे पाकिस्तान की संसार भर में बदनामी हुई है. इस तर्क पर अब कोई यकीन नहीं करता कि पाकिस्तान भी उग्रवाद का शिकार है. दरअसल पाकिस्तान अपनी जलाई आग में ही झुलसने लगा है. अब शायद ही कोई फायरब्रिगेड उसे बचा पाएगा.