रहीस सिंह का ब्लॉग: अफगानिस्तान की आड़ में अमेरिका का डर्टी गेम

By रहीस सिंह | Published: August 5, 2019 05:12 AM2019-08-05T05:12:19+5:302019-08-05T05:12:19+5:30

इसे क्या माना जाए? वैश्विक शक्तियों का डर्टी गेम अथवा अफगानिस्तान की किस्मत? क्या नहीं लगता कि अमेरिका इतिहास के किसी खेल को दोहराना चाहता है जिसमें पाकिस्तान उसके मुख्य सिपहसालार की भूमिका में हो? 

Rahis Singh blog: America dirty game under the cover of Afghanistan | रहीस सिंह का ब्लॉग: अफगानिस्तान की आड़ में अमेरिका का डर्टी गेम

पाक पीएम इमरान खान के साथ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप। (फाइल फोटो)

पूरब में भारत तथा चीन और पश्चिम में फारस व मध्यसागरीय दुनिया के बीच एक जंक्शन के रूप में स्थापित अफगानिस्तान इतिहास की कई सदियों तक व्यापार के लिए ‘क्रॉस रोड्स’, तमाम संस्कृतियों एवं पड़ोसियों के ‘मीटिंग प्लेस’ के साथ-साथ प्रवास व आक्रमण के लिहाज से ‘फोकल प्वाइंट’ रहा है. इस दृष्टि से तो अफगानिस्तान वैश्विक धरोहर के रूप में तमाम दस्तावेजों में दर्ज होना चाहिए, लेकिन आधुनिक इतिहास के बहुत से पन्ने इसे ‘प्लेस ऑफ कॉन्फ्लिक्ट’ के रूप में पेश करते हैं.

कारण यह कि अफगानिस्तान कभी सोवियत संघ, कभी अमेरिका और कभी चीन की चालों का शिकार होता रहा. फलत: उसकी मौलिक विशेषताएं नेपथ्य में चली गईं और सामने आया यह वर्तमान स्वरूप जहां आतंकवाद और ध्वंस के नीचे दबी मानवता कराह रही है. इसे क्या माना जाए? वैश्विक शक्तियों का डर्टी गेम अथवा अफगानिस्तान की किस्मत? क्या नहीं लगता कि अमेरिका इतिहास के किसी खेल को दोहराना चाहता है जिसमें पाकिस्तान उसके मुख्य सिपहसालार की भूमिका में हो? 

पिछले दिनों पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान जब अमेरिकी यात्र पर गए तो दोनों राष्ट्रों के बीच बात होनी थी अफगानिस्तान पर, लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प प्रेस को संबोधित करते समय जम्मू-कश्मीर तक पहुंच गए, तभी समझ आ गया था कि अमेरिका कोई नई चाल चलने की तैयारी में है क्योंकि ट्रम्प ने ऐसा अनजाने में नहीं किया था बल्कि सोची समझी रणनीति के तहत कहा था. इस रणनीति के कुछ बिंदु इस प्रकार हो सकते हैं.

प्रथम- ट्रम्प यह संदेश तो नहीं देना चाह रहे हैं कि दक्षिण एशिया में अशांति और आतंकवाद की वजह जम्मू-कश्मीर मुद्दा है! द्वितीय- पाक इस समय आर्थिक संकट से गुजर रहा है इसलिए उसे अमेरिकी सिपहसालार बनाना आसान है बशर्ते उसका जनप्रिय मुद्दा उठा दिया जाए.

तृतीय- अफगानिस्तान संकट को किसी और मुद्दे में विस्थापित कर नया ग्लोबल नैरेटिव तैयार करना जिसका सरोकार दक्षिण एशिया और भारत-पाक से हो. यही वजह है कि भारत के इनकार के बाद भी डोनाल्ड ट्रम्प मध्यस्थता संबंधी अपने प्रस्ताव को फिर से पेश करने में कोई संकोच करते नहीं दिखे.

सब जानते हैं कि तालिबान अमेरिकी दिमाग और पाकिस्तानी गर्भ की उपज है. इसलिए ट्रम्प प्रशासन को लगता है कि पाकिस्तान अफगान-तालिबान शांति वार्ता में निर्णायक भूमिका निभा सकता है. लेकिन ऐसा है नहीं. तालिबान सौदेबाजी से अब समर्पण की मुद्रा में नहीं आएगा. इसलिए संभव है कि अमेरिका ऐसी चालें चलेगा जो द. एशिया के हित में नहीं होंगी. 

Web Title: Rahis Singh blog: America dirty game under the cover of Afghanistan

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