आर के सिन्हा का ब्लॉग: याद रखना होगा बाबासाहब के उन अनाम साथियों को

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: April 14, 2022 03:27 PM2022-04-14T15:27:48+5:302022-04-14T15:29:22+5:30

बाबासाहब डॉ. भीमराव आंबेडकर के जीवन के अंतिम समय तक उनके करीबी सहयोगियों-शिष्यों में कुछ लोग ही उनके पास रहे. इनमें नानक चंद रत्तू, भगवानदास जैसे लोग शामिल हैं।

R K Sinha: Babasaheb Ambedkar jayantim need to remember his friends also | आर के सिन्हा का ब्लॉग: याद रखना होगा बाबासाहब के उन अनाम साथियों को

याद रखना होगा बाबासाहब के उन अनाम साथियों को

बाबासाहब डॉ. भीमराव आंबेडकर ने 27 सितंबर, 1951 को पंडित जवाहरलाल नेहरू की केंद्रीय कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था. दोनों में हिंदू कोड बिल पर गहरे मतभेद उभर आए थे. बाबासाहब ने अपने इस्तीफे की जानकारी संसद में दिए अपने भाषण में दी. वे दिन में तीन-चार बजे अपने सरकारी आवास वापस आए. 

वे इस्तीफे के अगले ही दिन अपने 22 पृथ्वीराज रोड के आवास को छोड़कर 26 अलीपुर रोड में शिफ्ट हो गए. कैबिनेट से बाहर होने के बाद बाबासाहब का सारा वक्त अध्ययन और लेखन में गुजरने लगा. बाबासाहब की 26 अलीपुर रोड में ही दिसंबर 1956 में मृत्यु हुई.

दरअसल 1951 से लेकर उनके जीवन के अंतिम समय तक उनके करीबी सहयोगियों-शिष्यों में कुछ लोग ही रहे. उन सबकी बाबासाहब के प्रति उनके विचारों को लेकर आस्था अटूट थी. भगवान दास भी उनमें से एक थे. बाबासाहब के विचारों को आमजन के बीच में ले जाने में भगवान दास का योगदान अतुलनीय रहा. वे बाबासाहब से उनके 26 अलीपुर रोड स्थित आवास में मिला करते थे. 

शिमला में 1927 में जन्मे भगवान दास एक बार बाबासाहब से मिलने दिल्ली आए तो फिर यहीं के होकर ही रह गए. उन्होंने बाबासाहब की रचनाओं और भाषणों का संपादन किया और उन पर पुस्तकें लिखीं. उनका ‘दस स्पोक आंबेडकर’ शीर्षक से चार खंडों में प्रकाशित ग्रंथ देश और विदेश में अकेला दस्तावेज है, जिनके जरिये बाबासाहब के विचार सामान्य लोगों और विद्वानों तक पहुंचे. भगवान दास का 83 साल की उम्र में 2010 में निधन हो गया.

बाबासाहब की निजी लाइब्रेरी में हजारों किताबें थीं. उस लाइब्रेरी को देखते थे देवी दयाल. वे बाबासाहब से 1943 से जुड़े रहे. बाबासाहब जहां कुछ भी बोलते तो देवी दयाल उसे नोट कर लिया करते थे. बाबासाहब के सान्निध्य का लाभ देवी दयाल को यह हुआ कि वे भी खूब पढ़ने लगे. वे बाबासाहब के बेहद प्रिय सहयोगी बन गए. उन्होंने आगे चलकर ‘डॉ. आंबेडकर की दिनचर्या’ नाम से एक महत्वपूर्ण किताब भी लिखी. उसमें अनेक महत्वपूर्ण जानकारियां हैं. देवी दयाल का 1987 में निधन हो गया.

नानक चंद रत्तू भी बाबासाहब के साथ छाया की तरह रहा करते थे. बाबासाहब 1942 में वायसराय की कार्यकारिणी के सदस्य के रूप में दिल्ली आ गए थे. उन्हें 22 पृथ्वीराज रोड पर सरकारी आवास मिला. बस तब ही लगभग 20 साल के रत्तू उनके साथ जुड़ गए.

रत्तू को बाबासाहब के समाज के कमजोर वर्गों के लिए कार्यों और संघर्षों की जानकारी थी. बाबासाहब ने उत्साही और ऊर्जा से लबरेज रत्तू को अपने पास रख लिया. बाबासाहब जो भी मैटर उन्हें डिक्टेट करते वह उसकी एक कॉर्बन कॉपी अवश्य रख लेते. वे नौकरी करने के साथ पढ़ भी रहे थे. 

बाबासाहब ने 1951 में नेहरूजी की कैबिनेट को छोड़ा, तब बाबासाहब ने रत्तूजी को अपने पास बुलाकर कहा कि वे चाहते हैं कि सरकारी आवास अगले दिन तक खाली कर दिया जाए. ये अभूतपूर्व स्थिति थी. रत्तू नए घर की तलाश में जुट गए. संयोग से बाबासाहब के एक मित्र ने उन्हें 26 अलीपुर रोड के अपने घर में शिफ्ट होने का प्रस्ताव रख दिया. 

बाबासाहब ने हामी भर दी. रत्तूजी ने अगले ही दिन बाबासाहब को नए घर में शिफ्ट करवा दिया. बाबासाहब की 1956 में सेहत बिगड़ने लगी. रत्तूजी उनकी दिन-रात सेवा करते.

बाबासाहब के निधन के बाद रत्तूजी सारे देश में जाने लगे, बाबासाहब के विचारों को पहुंचाने के लिए. अपनी सन 2002 में मृत्यु से पहले उन्होंने बाबासाहब के जीवन के अंतिम वर्षों पर एक किताब भी लिखी. बाबासाहब के इन सभी सहयोगियों को भी याद रखा जाना चाहिए.

Web Title: R K Sinha: Babasaheb Ambedkar jayantim need to remember his friends also

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