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पुण्य प्रसून वाजपेयी का ब्लॉग : जनता की गरीबी और सत्ता की रईसी

By पुण्य प्रसून बाजपेयी | Updated: November 1, 2018 08:56 IST

कमाल का लोकतंत्न है क्योंकि एक तरफ विकसित देशों की तर्ज पर सत्ता, कार्पोरेट और बहुराष्ट्रीय कंपनियां भी काम करने लगती हैं तो दूसरी तरफ नागरिकों के हक में आने वाले खनिज संसाधनों की लूट-उपभोग के बाद जो बचा खुचा गरीबों को बांटा जाता है।

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अगर लोकतंत्न का मतलब चुनाव है तो फिर गरीबी का मतलब चुनावी वादा होगा ही। अगर लोकतंत्न का मतलब सत्ता की लूट है तो फिर नागरिकों के पेट का निवाला छीन कर लोकतंत्न के रईस होने का राग होगा ही। और इसे समझने के लिए 2019 में चुनाव होने का इंतजार करने की जरूरत नहीं है। सिर्फ जमीनी सच को समझना होगा जिसे सरकार भी जानती है और दुनिया के 195 देश भी जानते हैं जो संयुक्त राष्ट्र के सदस्य हैं। यानी दुनिया भारत को बाजार इसलिए मानती है क्योंकि यहां की सत्ता कमीशन पर देश के खनिज संसाधनों की लूट के लिए तैयार रहती है।

सोशल इंडेक्स में भारत इतना नीचे है कि विकसित देशों का रिजेक्टेट माल भारत में खप जाता है। और भारत का बाजार इतना विकसित है कि दुनिया के विकसित देश जिन दवाइयों तक को जानलेवा मान कर अपने देश में बेचने पर पांबदी लगा देते हैं वह जानलेवा दवाई भी भारत के बाजार में खप जाती है। 

यानी कमाल का लोकतंत्न है क्योंकि एक तरफ विकसित देशों की तर्ज पर सत्ता, कार्पोरेट और बहुराष्ट्रीय कंपनियां भी काम करने लगती हैं तो दूसरी तरफ नागरिकों के हक में आने वाले खनिज संसाधनों की लूट-उपभोग के बाद जो बचा खुचा गरीबों को बांटा जाता है वह कल्याणकारी योजना का प्रतीक बना दिया जाता है। और चुनाव में सत्ता पर काबिज होने के लिए रुपया लुटाया जाता है। 

जमीनी हालात क्या हैं इसे समझने के लिए देश के उन्हीं तीन राज्यों को ही परख लें जहां चुनाव में देश के दो राष्ट्रीय राजनीतिक दल आमने-सामने हैं। दुनिया के मानचित्न में दक्षिण अफ्रीका का देश नामीबिया एक ऐसा देश है जहां सबसे ज्यादा भूखे हैं और यूएनडीपी की रिपोर्ट कहती है कि नामीबिया का एमपीआई यानी मल्टीनेशनल पॉवर्टी इंडेक्स यानी बहुआयामी गरीबी स्तर 0।181 है।

मध्य प्रदेश का भी लेबल 0।181 है। यानी जिस अवस्था में नामीबिया है उसी अवस्था में मध्य प्रदेश है। पर सच सिर्फ मध्य प्रदेश का ही त्नासदी दायक नहीं है बल्कि राजस्थान की पहचान दुनिया के दूसरे सबसे बीमार देश ग्वाटेमाला सरीखी है। यूएनडीपी रिपोर्ट के मुताबिक ग्वाटेमाला का एमपीआई 0।143 है और यही इंडेक्स राजस्थान का भी है। छत्तीसगढ़ भी कोई विकसित नहीं हो चला है जैसा दावा दशक से सत्ता में रहे रमन सिंह करते हैं। 

गरीबी को लेकर जो रेखा जिम्बाब्वे की है वही रेखा छत्तीसगढ़ की है। यानी रईस राजनीतिक लोकतंत्न की छांव में अलग- अलग प्रांतों में कैसे कैसे देश पनप रहे हैं या दुनिया के सबसे ज्यादा भूखे या गरीब देश सरीखे हालात हैं लेकिन सत्ता हमेशा रईस होती है। और रईसी का मतलब कैसे नागरिकों को ही गुलाम बनाकर सत्ता पाने के तौर तरीके अपनाए जाते हैं ये नागरिकों के आर्थिक सामाजिक हालात से समझा जा सकता है। ऑक्सफैम की रिपोर्ट कहती है कि भारत की राजनीति यूरोपीय देश को आर्थिक तौर पर टक्कर देती है। यानी जितनी रईसी दुनिया के टॉप 10 देशों की सत्ता की है उस रईसी को भी मात देने की स्थिति में हमारे देश के नेता और राजनीतिक दल हो जाते हैं। 

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