इमारतों के पुनर्निर्माण की राह में समस्याएं
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: September 8, 2018 07:06 PM2018-09-08T19:06:23+5:302018-09-08T19:06:23+5:30
भारत में शहरी पुनर्निर्माण विवादास्पद रहा है, क्योंकि यह गरीब और निम्न मध्यम वर्ग की आबादी को जबरन विस्थापित करता है और उसकी भूमि का उपयोग निजी शॉपिंग मॉल, कार्यालय भवनों, व्यापारिक प्रतिष्ठानों आदि के निर्माण के लिए करता है।
डॉ एस एस मंठा
पूर्व चेयरमैन, एआईसीटीई
भारत के प्रमुख शहरों में पुरानी इमारतों का पुनर्निर्माण पहले के मुकाबले बहुत तेजी से हो रहा है। यह भी एक तथ्य है कि कई इमारतों का जरूरत नहीं होते हुए भी पुनर्निर्माण किया जाता है ताकि छोटी कॉलोनियों को कांक्रीट की बहुमंजिला इमारतों में तब्दील करके तेजी से बड़ी मात्रा में पैसा बनाया जा सके।
अचल संपत्ति की कीमतें तेजी से बढ़ने के कारण कुछ कॉलोनियों के निवासी भी अनियंत्रित बाजार में, साख की जांच किए बिना ही बिल्डरों से संपर्क करते हैं।
करदाता नागरिक, जिनमें से अनेक वरिष्ठ नागरिक होते हैं, अपने जीवन की सांध्यबेला में शांतिपूर्ण जीवन जीने के इच्छुक होते हैं, लेकिन वे पाते हैं कि अचानक ही भ्रष्ट बिल्डरों द्वारा उनके आवास क्षेत्र में कटौती कर दी गई है।
एक बाजार, जो असंगठित अर्थव्यवस्था पर अत्यधिक निर्भर है, उन तरीकों का सहारा लेता है जो हमेशा सम्मानजनक नहीं होते हैं।
नकदी का लेन-देन बहुत ज्यादा होता है और इसके पहले कि निवासियों को अहसास हो, वे ठगे जा चुके होते हैं। पुनर्निर्माण, मौजूदा पुराने, निजी या सार्वजनिक आवासों को ध्वस्त कर उन्हें फिर से बनाने की प्रक्रिया है।
एक अच्छा बिल्डर सोसाइटी को नए फ्लैट सौंप सकता है और अतिरिक्त जगह में शहरों के संबंधित निकाय की अनुमति से निर्माण कार्य कर निर्धारित मुनाफा भी कमा सकता है। लेकिन अतीत में कई मामलों का इतना सुखद अंजाम नहीं रहा है।
भारत में शहरी पुनर्निर्माण विवादास्पद रहा है, क्योंकि यह गरीब और निम्न मध्यम वर्ग की आबादी को जबरन विस्थापित करता है और उसकी भूमि का उपयोग निजी शॉपिंग मॉल, कार्यालय भवनों, व्यापारिक प्रतिष्ठानों आदि के निर्माण के लिए करता है। कभी-कभी तो वहां संदिग्ध व्यवसाय भी चलाए जाते हैं।
सीधे शब्दों में कहें तो पुनर्निर्माण एक अवधारणा, एक विचार के साथ शुरू होता है और सोसाइटी को नए फ्लैट हैंडओवर करने पर समाप्त होता है। लेकिन बीच में इसके मिसिंग स्टेप्स चिंता का कारण बनते हैं।
सरकारी दिशा-निर्देशों का पालन नहीं करना, नए फ्लैटों का कब्जा मिलने में देरी, सदस्यों से बकाया वसूली, बिल्डर द्वारा बिना अनुमति के अनधिकृत निर्माण करना आदि चुनौतियां सामने आती हैं।
शहरों में कई पुनर्निर्माण योजनाएं इन्हीं जटिलताओं की वजह से दशकों तक अदालती पचड़े में फंसी रहती हैं। निवासियों को अपने अधिकारों की रक्षा के लिए सोसाइटी का गठन किए जाने संबंधी पर्याप्त जानकारी नहीं होने के कारण अक्सर उनके अधिकारों की रक्षा नहीं हो पाती।
बिल्डर लॉबी द्वारा जो एक आम धारणा बनाई जाती है, वह यह है कि इमारत के जीर्ण घोषित हुए बिना उसका पुनर्निर्माण नहीं किया जा सकता। फिर झूठी घटनाओं की पूरी एक श्रृंखला उन्हें जीर्ण घोषित कराने के लिए बनाई जाती है।
अधिकारियों के साथ मिलीभगत इस नापाक खेल को खतरनाक रूप से बिल्डरों के पक्ष में कर देती है। आजादी के पूर्व की इमारतें अक्सर बिल्डरों के निशाने पर रहती हैं।
कुछ संरचनात्मक लेखा परीक्षक(शायद मिलीभगत की वजह से) बिना किसी परीक्षण के ही अपनी राय दे देते हैं कि इमारत भूकंप प्रतिरोधी नहीं है। वे सभी वर्ष 2000 के आसपास बनाए भारतीय मानकों को अपना आधार बनाते हैं।
कोई भी भारतीय महानगर अब तक किसी गंभीर भूकंप का साक्षी नहीं बना है, हालांकि दिल्ली उच्च जोखिम वाले भूकंपीय जोन चार में स्थित है। श्रीनगर और गुवाहाटी सर्वोच्च जोखिम वाले जोन पांच में हैं, जबकि मुंबई, चेन्नई और कोलकाता जोन तीन में हैं।
क्या किसी ने यह जांचने की आवश्यकता महसूस की है कि मौजूदा डिजाइन मानकों की अस्सी साल पहले दो मंजिला भवनों के निर्माण के समय आवश्यकता थी भी या नहीं? क्या यह सच नहीं है कि उस समय संभवत: कुछ ब्रिटिश मानकों का उपयोग किया जाता था?
निश्चित रूप से वर्तमान मानक वर्ष 2000 के बाद की बहुमंजिला इमारतों के लिए आदर्श हो सकते हैं, लेकिन यह तय है कि उस जमाने में वे प्रचलन में नहीं थे। फिर उनका मूल्यांकन करते समय वर्तमान मानकों का प्रयोग करना कितनी समझदारी है?
अभी तक देश भर में निवासियों और डेवलपर्स दोनों के लिए इमारतों का पुनर्विकास एक कठिन काम बना हुआ है। डेवलपर्स के पास सिर्फ प्रमुख सात शहरों में ही सात लाख से अधिक मकान अनबिके पड़े हैं।
रेरा शासित बाजार ने कुछ पारदर्शिता लाई है लेकिन अभी भी यह विकास की प्रक्रिया में है। म्हाडा ने इस साल अप्रैल में सेल्फ रिडेवलपमेंट सेल का शुभारंभ किया है, जिससे निवासियों को बिना बिल्डर पर भरोसा किए अपने घरों का पुनर्निर्माण करना आसान हो सकता है। आगे बढ़ने का यह सही रास्ता प्रतीत होता है।