26 जनवरी का दिन एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में भारत के पुनरोदय का दिन है. भारत की जनता के लिए भारत की जनता का शासन और भारत की जनाकांक्षाओं का साकार प्रकटीकरण 26 जनवरी 1950 को राष्ट्रपति के रूप में डॉ. राजेंद्र प्रसाद का निर्वाचन और पदग्रहण संपन्न कर हुआ था.
गणतंत्र के रूप में भारत का उभरना राष्ट्र के अंतिम व्यक्ति की आकांक्षा को राष्ट्र की प्रथम आकांक्षा के रूप में देखा जाना चाहिए. राष्ट्र शासन से निर्मित नहीं होता अपितु जन से निर्मित होता है. इसको राष्ट्राध्यक्ष और शासनाध्यक्ष के रूप में भारत के दो प्रमुखों के बीच स्थिति के पार्थक्य से समझा जा सकता है.
शासन जन के लिए होता है ; जन शासित होने के लिए नहीं है. प्रत्येक व्यक्ति की समानता, बंधुता जन से राष्ट्र के बीच आरोहण की प्रक्रिया है. विविधताओं के बीच विभेद होते हुए भी सबमें बंधुत्व की स्थापना यह भारत के संवैधानिक गणतंत्न का उद्देश्य और भारतीय गणराज्य का लक्ष्य है.
भारतीय गणराज्य के 71 वर्ष हो गए. इन 71 वर्षो में विश्व के जाने कितने गणराज्य असफल हुए, जाने कितने एकीकृत राष्ट्र विभाजित हुए, पर भारत, जिसने अपने स्वतंत्रता आंदोलन के साथ ही एक जन एक राष्ट्र का भाव जन-जन में जागृत किया था, बंटवारे, विभेद, वैमनस्य के अनेक कुत्सित षड्यंत्रों को असफल सिद्ध करते हुए भारत के जन गण को सुख, समृद्धि, समानता और बंधुता दिलाते हुए विश्व मानवता के प्रति अपने दायित्वों को पूरा करते हुए राष्ट्र के रूप में उभरा है.
26 जनवरी जहां एक गणराज्य के रूप में भारत के प्रकटीभूत होने की स्मृति का दिन है, वहीं यह भारत में न्याय की सर्वोच्चता की स्थापना का भी अवसर है.
आज ही के दिन सर्वोच्च न्यायालय के प्रथम मुख्य न्यायाधीश ने भी शपथ ग्रहण किया था जो गणराज्य की सफलता का आधार, सबको न्याय की गारंटी को प्रतिबिंबित करता है.
आज 71 वर्ष के इस प्रौढ़ गणतंत्र में राष्ट्रीय जीवन के प्रति जिस विशिष्ट निष्ठा का निर्माण हुआ है, उसका स्मरण करना भारत के जन गण का कर्तव्य है. यह भारतीय गणराज्य की सफलता ही है कि दुनिया के महान और विशाल लोकतंत्र जहां सत्ता के अंतरण क्रम में संघर्ष का शिकार हो रहे हैं, प्राचीनतम लोकतंत्र और गणराज्य में राष्ट्र प्रमुखों की निष्ठा प्रश्नों के दायरों में आ रही है, वहीं भारत में राष्ट्र के सर्वोच्च पदों पर आसीन व्यक्तियों की नियति और निष्ठा असंदिग्ध रूप से प्रामाणिक रही है.
नीति को लेकर मतभेद है और होने भी चाहिए. मतभेदों से ही लक्ष्य प्राप्ति के विविध रास्ते खुलते हैं. भारतीय लोकतंत्र अपनी गणतांत्रिक पद्धति में मतभेदों के होते हुए भी एक निर्णय पर पहुंचकर उसको क्रियान्वित करने के लिए संकल्पबद्ध राष्ट्र के रूप में संपूर्ण विश्व में स्वीकृति प्राप्त कर चुका है.
इस बार का गणतंत्र दिवस हम एक वैश्विक महामारी से संघर्ष में प्राप्त विजय के मुहाने पर मना रहे हैं और यह अवसर अपने आप में भारतीय गणतंत्र के महान और उदात्त लक्ष्यों को स्पष्ट करता है. साथ ही भारत के जन गण के अंदर जीवन मूल्य के रूप में व्याप्त वसुधैव कुटुंबकम की भावना का प्रकटीकरण भी करता है.
भारतीय जन ने कोरोना की विश्वव्यापी महामारी को चुनौती के साथ एक अवसर के रूप में देखा, जो इस बात का प्रमाण है कि इस महान राष्ट्र और श्रेष्ठ गणराज्य की जीवन शक्ति जान और जहान दोनों के लिए सगुण सकारात्मक रूप से श्रेष्ठता को सृजित करने के लिए निरंतर यत्रशील है.
दुनिया कोरोना में भी जब रोजगार और व्यापार के अवसर देख रही है, कुछ राष्ट्रों ने इसे बाजार को प्राणवान बनाने के साधन के रूप में प्रस्तुत किया है, ऐसे में भारत ने ‘हम भी बचेंगे और दुनिया को भी बचाएंगे’ की एक ऐसी अवधारणा प्रस्तुत की है जो विश्व के इतिहास में दुर्लभ है.
दुनिया के 14 देशों को न केवल मुफ्त वैक्सीन देना अपितु उन तक पहुंचाना, अपने पड़ोसी देशों में वैक्सीन की इतनी खेप देना कि उनके हर नागरिक तक पहुंचे, यह एक उदाहरण है.
आज दुनिया के सभी कोनों से 21वीं शताब्दी के भारत के संदर्भ में जो एक सकारात्मक चित्र उभरा है वह स्वतंत्र, संप्रभुता संपन्न भारत गणराज्य को एक श्रेष्ठ राष्ट्र के रूप में आलोकित कर रहा है.
भारतीय गणराज्य ने भारत के लोगों को भारत की भाषा और बोली में सबको शिक्षा का एक ऐसा अभियान प्रारंभ किया है जो भाषा के आधार पर टूटे हुए राष्ट्रों को उनकी राष्ट्रीयता के पुनर्गठन के लिए सीख हो सकती है.
साथ ही दुनिया की उन तमाम विचारधाराओं को एक सशक्त भारतीय प्रतिउत्तर है जिन्होंने यह कल्पना की थी कि अपनी विभिन्नता और विरोधाभासों के बीच भारत असफल हो जाएगा, टूट जाएगा. संकट कश्मीर में हो, कन्याकुमारी का जन उस संकट को अपना मानकर खड़ा होता है.
भूकंप कच्छ के रण में आता है, अरुणाचल का व्यक्ति उसे अपना संकट मानकर अपने बंधुओं के साथ खड़ा होता है. यह भाव ही भारतीय गणराज्य की शक्ति है. यह भाव ही एक सफल राष्ट्र के रूप में हमारे उभरने का संकेत है.
इस भाव के साथ ही संपूर्ण विश्व मानवता के संकट में खड़े होने का हमारा स्वभाव ही हमें पूरी दुनिया में एक अलग विशिष्ट और श्रेष्ठ राष्ट्र के रूप में स्वीकृति दिलाता है. इस एकता और श्रेष्ठता के सघनीभूत संकल्प के प्रकटीकरण का प्रतीक दिन है भारत का गणतंत्र दिवस.