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ब्लॉग: अंतिम सांसें गिन रहा नक्सल आंदोलन

By प्रवीण दीक्षित | Updated: September 20, 2024 10:35 IST

भौगोलिक दृष्टि से नक्सल आंदोलन हालांकि पश्चिम बंगाल में सिलीगुड़ी के पास नक्सलबाड़ी से शुरू हुआ था, लेकिन पशुपति से तिरुपति तक लगभग सभी राज्यों में फैल गया और 2013 तक 110 से अधिक जिले इसकी चपेट में आ गए.

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ठळक मुद्दे21 सितंबर से 20 अक्तूबर, 2024 तक पूरे देश में सीपीआई (माओवादी) का 20वां स्थापना दिवस मनाने की अपीलप्रतिबंधित संगठन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने की अपीलयह संगठन सशस्त्र क्रांति के माध्यम से सत्ता पर कब्जा करने में दृढ़ विश्वास रखता है

गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत 2009 से प्रतिबंधित संगठन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने हाल ही में प्रकाशित 25 पन्नों की पुस्तिका के माध्यम से अपने कार्यकर्ताओं और आम जनता से अपील की है कि वे 21 सितंबर से 20 अक्तूबर, 2024 तक पूरे देश में सीपीआई (माओवादी) का 20वां स्थापना दिवस मनाएं. हालांकि चारु मजूमदार और कन्हाई चटर्जी द्वारा इसके गठन के बाद 1968 से ही नक्सल आंदोलन अस्तित्व में है, लेकिन इसने विभिन्न समूहों में अपनी गतिविधियों को विभाजित होते भी देखा है. 21 सितंबर 2004 को इन अलग-अलग समूहों ने मार्क्स, लेनिन और माओ के सिद्धांतों से प्रेरित होकर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) का गठन किया.

यह अमेरिका द्वारा समर्थित पूंजीवाद, सामंतवाद और उसके बचे हुए अवशेषों को खत्म करने के लिए सशस्त्र क्रांति के माध्यम से सत्ता पर कब्जा करने में दृढ़ विश्वास रखता है. यह ग्रामीण क्षेत्रों से इस क्रांति को शुरू करने और शहरी क्षेत्रों को घेरे में लेने की इच्छा रखता है. सीपीआई (माओवादी) के अनुसार, शहरी क्षेत्र सहानुभूति प्रदान करेंगे और जनआंदोलन को आगे बढ़ाएंगे. यह दावा करता है कि पिछले 20 वर्षों के दौरान इसने अर्धसैनिक और पुलिस बलों के खिलाफ घात लगाकर कई सफल हमले किए, जिसमें 3,090 कमांडो या पुलिसकर्मी मारे गए, 4,077 घायल हुए और 2,366 अत्याधुनिक हथियारों के साथ-साथ 1,19,682 हथियारों को लूट लिया.

खास बात यह है कि अपील में उन निर्दोष लोगों की जघन्य हत्याओं के बारे में कोई जिक्र नहीं है, जिन्हें वे पुलिस मुखबिर बताते हैं, भले ही वे अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के हों. यहां तक कि उनके कई पूर्व साथी, जिन्होंने हताश होकर आत्मसमर्पण कर दिया था, उन्हें भी बेरहमी से मार दिया गया.

वर्तमान में, देश में विभिन्न मासूम दिखने वाले नामों के तहत लगभग 227 ऐसे संगठन काम कर रहे हैं. इन्हें ए4 के रूप में वर्गीकृत किया गया है और इन्हें गैर-कम्युनिस्ट समाजवादी संगठन के रूप में जाना जाता है. इनके सदस्य सहानुभूति रखने वाले होते हैं और इनमें से कुछ चुनिंदा लोगों को विचारधारा के अनुसार ढाला जाता है और उसके बाद उन्हें ए3 स्तर पर पदोन्नत किया जाता है, जो सशस्त्र क्रांति में दृढ़ विश्वास रखने वाले कम्युनिस्ट संगठन हैं. इनमें से कई सहानुभूति रखने वालों ने केंद्रीय और कुछ राज्य विश्वविद्यालयों में छात्र आंदोलनों पर कब्जा कर लिया है. हाल के निर्देश के अनुसार, पार्टी भाजपा को अपना मुख्य दुश्मन मानती है और भाजपा को हराने के लिए, इसने अपने कैडर को विपक्षी दलों में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया है, जिन्हें द्वितीयक दुश्मन माना जाता है.

भौगोलिक दृष्टि से नक्सल आंदोलन हालांकि पश्चिम बंगाल में सिलीगुड़ी के पास नक्सलबाड़ी से शुरू हुआ था, लेकिन पशुपति से तिरुपति तक लगभग सभी राज्यों में फैल गया और 2013 तक 110 से अधिक जिले इसकी चपेट में आ गए. हालांकि, 2014 में केंद्र में अपनी सरकार बनने के बाद भाजपा ने ‘एक खिड़की सहायता’ सहित विभिन्न विकासात्मक उपायों की शुरुआत की, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी विकास गतिविधियां बिना किसी कठिनाई के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचें. इस योजना के तहत, निवास, ईबीसी आदि सहित आवश्यक प्रमाणपत्र सुनिश्चित किए जाते हैं, जिससे युवाओं को पेशेवर कौशल, रोजगार या अपना व्यवसाय शुरू करने में सुविधा होती है. गढ़चिरोली जिले के 10,000 से अधिक युवा लड़के और लड़कियां इस योजना का लाभ उठा चुके हैं और वे अत्यधिक संतुष्ट हैं.

कई राज्य सरकारों ने पूर्व कैडर के लिए ‘आत्मसमर्पण नीति’ तैयार की है और उनके लिए पुनर्वास उपाय प्रदान किए हैं. कई महत्वपूर्ण कैडर जिनमें महिलाएं भी शामिल हैं, जिन्हें नक्सलियों द्वारा बाल सैनिकों के रूप में पकड़ा गया था और जो महत्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में काम कर रहे थे, इस योजना का लाभ उठाने के लिए आगे आए हैं. इसने नक्सल आंदोलन को एक बड़ा झटका दिया है. इसके अलावा, स्थानीय अनुसूचित जनजाति के कर्मियों के सहयोग से खनन गतिविधियां शुरू की गई हैं जो कई लोगों को स्थायी रोजगार प्रदान कर रही हैं और इस प्रकार उनके जीवन को बदल रही हैं. भारत सरकार ने भी इनमें से कई क्षेत्रों को आकांक्षी जिले घोषित किया है और सड़कों और दूरसंचार सुविधाओं के अलावा बेहतर चिकित्सा और शैक्षिक सुविधाओं के माध्यम से स्थानीय लोगों की स्थिति को सुधारने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है.

भारत सरकार ने प्रभावित राज्यों के पुलिस बलों के बीच खुफिया जानकारी साझा करने, समन्वय करने, प्रशिक्षण देने के लिए कदम उठाए हैं. सरकार ने कानून लागू करने वाली एजेंसियों के मौजूदा बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए अतिरिक्त अर्धसैनिक बल और वित्त मुहैया कराया है. नतीजतन, प्रतिकूल रूप से प्रभावित जिलों की संख्या पहले के 110 से घटकर 34 रह गई है. दुर्गम भूभाग, सुदूर बस्तियों की दुर्गमता स्थानीय लोगों को नक्सलियों की अराजकता के नियंत्रण में रहने के लिए मजबूर कर रही है, जो इस क्षेत्र को ‘मुक्त क्षेत्र’ कहते हैं. यह जरूरी है कि कानून लागू करने वाली एजेंसियों द्वारा नई ड्रोन तकनीक को तेजी से अपनाया जाए ताकि सुरक्षा कर्मियों को होने वाले नुकसान को कम किया जा सके और स्थानीय लोगों को विद्रोही तत्वों को बेअसर करने में मदद मिल सके.

ऐसे प्रशासनिक उपायों के अलावा, सभी लोकतांत्रिक और स्वतंत्रता-प्रेमी राजनीतिक दलों, जिनमें विपक्ष में बैठे लोग भी शामिल हैं, के साथ-साथ मीडिया, शिक्षाविदों और पेशेवरों जैसे सामाजिक प्रभाव रखने वालों को यह एहसास होना जरूरी है कि सीपीआई (माओवादी) के कैडर का हृदय परिवर्तन नहीं होगा, जो सशस्त्र क्रांति के जरिये भारत को तोड़ने और अपनी तानाशाही स्थापित करने के लिए राजनीतिक सत्ता पर कब्जा करने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं. इस लोकतांत्रिक स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने के लिए महाराष्ट्र विधानमंडल में पेश किए गए सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक 2024 को भी सर्वसम्मति से पारित किए जाने की जरूरत है.

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