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विलक्षण व्यक्तित्व के धनी प्रणब मुखर्जी, अभिषेक मनु सिंघवी का ब्लॉग

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: September 1, 2020 15:14 IST

वे यूपीए सरकार-1 और 2 के लिए सबकुछ थे. प्रणब दा तीक्ष्ण बुद्धि के थे और उनकी याददाश्त बेजोड़ थी. इन गुणों के कारण  सटीक जानकारी  देते थे और और सटीक फैसले लेते थे.

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ठळक मुद्देमल्होत्रा ने प्रणब दा को आगे बढ़कर नेतृत्व करने वाला व्यक्ति, संकटमोचक, संदर्भ बिंदु और सरकारी की आत्मा एवं हृदय कहा था. भारतीय राजनीति में उनके जैसा राजनेता दुर्लभ है. जो कोई प्रणब दा के संपर्क में आया, वह उनका प्रशंसक बने बिना नहीं रहा. सार्वजनिक और राजनीतिक  जीवन के शुरुआती दौर में माधवराव सिंधिया के बाद मैं सबसे ज्यादा प्रणब दा के संपर्क में रहा.

प्रणब दा के बारे में वरिष्ठ पत्रकार इंदर मल्होत्रा ने एक लेख लिखा था. इस लेख में  उन्होंने बताया था कि प्रणब दा बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी कैसे थे और वह कांग्रेस के लिए कितने महत्वपूर्ण थे. मल्होत्रा ने प्रणब दा को आगे बढ़कर नेतृत्व करने वाला व्यक्ति, संकटमोचक, संदर्भ बिंदु और सरकारी की आत्मा एवं हृदय कहा था.

जिस व्यक्ति को अपने सबसे पास के स्कूल में जाने के लिए कई मील तक चलना पड़ा हो, और उसके बाद जिसने असाधारण उपलब्धियां हासिल की हों, उसके के लिए उपरोक्त विशेषण एकदम सटीक बैठते हैं. वे यूपीए सरकार-1 और 2 के लिए सबकुछ थे. प्रणब दा तीक्ष्ण बुद्धि के थे और उनकी याददाश्त बेजोड़ थी. इन गुणों के कारण  सटीक जानकारी  देते थे और और सटीक फैसले लेते थे.

भारतीय राजनीति में उनके जैसा राजनेता दुर्लभ है. जो कोई प्रणब दा के संपर्क में आया, वह उनका प्रशंसक बने बिना नहीं रहा. अपने सार्वजनिक और राजनीतिक  जीवन के शुरुआती दौर में माधवराव सिंधिया के बाद मैं सबसे ज्यादा प्रणब दा के संपर्क में रहा. सिंधिया मुझे प्रणब दा से मुलाकात करवाने के लिए गए थे.

पहली भेंट में ही मैं उनके अगाध ज्ञान और विलक्षण याददाश्त से बेहद प्रभावित हुआ. मैं प्रणब दा से कहा करता था कि राजनीतिक उपलब्धि के कारण मुझे कई सारी चीजें मसलन संवैधानिक कानून, वकालत, अध्ययन, शोध आदि से वंचित रहना पड़ा. वे सही अर्थों में विद्वान थे. शोध में उनकी गहरी दिलचस्पी थी. उनके कठोर अनुशासन की मिसाल मिलना कठिन है.

सुबह से लेकर रात को डायरी लिखने तक उनकी दिनचर्या पूरी तरह अनुशासित लेकिन निर्बाध रहती थी. चूंकि मुझे उनके बारे में काफी जानकारी है इसलिए मैं बताना चाहूंगा कि जिस दिन रात को उनके दिमाग में चोट आई, उस दिन उन्होंने सुबह और शाम मिलाकर 7 से 8 किलोमीटर की वॉकिंग पूरी की थी और रात 11 बजे सोने के पहले अपनी डायरी भी रोज की तरह लिखी थी. प्रणब दा की असली खासियत बिना किसी दिखावे के ठोस नतीजे देने की थी. उनके पास अनुभव का भंडार था. आर्थिक मुद्दों पर वह मध्य मार्गी थे. वह उदार अर्थव्यवस्था के पैरोकार थे.

प्रणब दा ने मन में कभी कोई शिकवा-शिकायत नहीं रखी और न ही मददगारों को वे कभी भूले. बदले की भावना उनमें कभी नहीं रही. उनकी कार्यशैली और किसी भी विषय को देखने का उनका नजरिया सबसे अलग था. अलग राजनीतिक विचारधारा रखने वाले लोग भी उनका भरोसा कर सकते थे, उनके साथ काम कर सकते थे, उनसे सहमति स्थापित कर सकते थे और असंभव लगने वाले समाधान को संभव कर सकते थे. किसी भी व्यक्ति के आकलन के लिए चार महत्वपूर्ण मापदंड होते हैं. हर मापदंड पर प्रणब दा खरे उतरते थे. वह बेहद प्रतिभाशाली थे.

उनके जैसा ज्ञानी बहुत कम मिलेगा. विभिन्न विषयों पर जटिल नीतियां आसानी से तय करना उनकी खूबी थी.  प्रणब दा सदाबहार थे और जहां तक मुझे ज्ञात है वह कभी नतीजे देने में विफल नहीं रहे. दूसरी बात यह रही कि उनकी विचारधारा स्पष्ट थी. उसमें बदलाव नहीं आया. मध्यमार्गी होने के बावजूद उनका हलका सा झुकाव वामपंथ की ओर था. आर्थिक और सामाजिक  मुद्दों पर उनका नजरिया संतुलित रहा लेकिन भरत जैसी अर्थव्यवस्था को बदलते वक्त उन्होंने समाजवादी दृष्टिकोण को नहीं छोड़ा. तीसरी बात उनके मिजाज को लेकर है.

कई लोग उन्हें गर्म मिजाज का व्यक्ति बताते थे.  मगर कम समय और ज्यादा काम चलते ऐसा होना स्वाभाविक था. उनके पास राजनीतिक गप्पबाजी के लिए समय नहीं था. लेकिन विमान में कोलकाता या अन्य कहीं जाते हुए राहत के क्षणों में आप उन्हें सरल हृदय का अगाध ज्ञानी पाते थे. मुझे एक से ज्यादा बात उनके साथ यात्रा करने का मौका मिला. पुराने दिनों की यादों को वह ताजा कर दिया करते थे. चौथी अंतिम बात, वह अपने सिद्धांतों के  प्रति गंभीर व ईमानदार थे. इंदिरा गांधी प्रणब दा की मेहनत और विश्लेषण क्षमता से प्रभावित हुई थीं.

उन्होंने प्रणब दा को  अपनी सरकार में वाणिज्य मंत्री बनाया था. उस वक्त प्रणब दा की उम्र 42 वर्ष थी. कांग्रेस में उनका निर्वासन (प्रणब दा ने इसके लिए जिम्मेदार लोगों के नाम बताए थे) खत्म होने के बाद राजीव गांधी ने उन्हें पार्टी का प्रवक्ता बनाया था. उन्होंने कई बात मुझसे कही थी कि दो कमजोरियों के कारण वह प्रधानमंत्री नहीं बन सके.

पहली कमजोरी यह थी कि हिंदी पर उनकी पकड़ नहीं थी और दूसरी यह कि उस समय तक वह लोकसभा के लिए निर्वाचित नहीं हुए थे. हालांकि बाद में वह लोकसभा के लिए चुने गए थे. मैं उनकी इन बातों से सहमत नहीं  था  परंतु वह पलक झपकाते हुए मुझे याद दिलाना नहीं भूलते थे कि पश्चिम बंगाल से कभी कोई राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री नहीं बनेगा. प्रणब दा जैसे दार्शनिक और विद्वान मार्गदर्शक को पाकर देश सौभाग्यशाली रहा.

टॅग्स :प्रणब मुख़र्जीमनमोहन सिंहसोनिया गाँधीकांग्रेसपश्चिम बंगाल
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