प्रमोद भार्गव का ब्लॉगः आदिवासियों की निजता में दखल का दुष्परिणाम

By प्रमोद भार्गव | Updated: November 26, 2018 05:07 IST2018-11-26T05:07:45+5:302018-11-26T05:07:45+5:30

वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक विलुप्ति के कगार पर खड़े सेंटेनलीज समुदाय के आदिवासियों की संख्या महज 40 है. हालांकि अखबार में यह संख्या 15 बताई गई है, जिनमें 12 पुरुष और 3 महिलाएं 10 झोंपड़ियों में रहते हैं.

Pramod Bhargava's blog: Due to interference in the privacy of tribals | प्रमोद भार्गव का ब्लॉगः आदिवासियों की निजता में दखल का दुष्परिणाम

प्रमोद भार्गव का ब्लॉगः आदिवासियों की निजता में दखल का दुष्परिणाम

अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के सेंटिनल द्वीप पर एक चीनी मूल के 27 वर्षीय अमेरिकी नागरिक जॉन एलन चाऊ  की हत्या कर दी गई.  इस वरदात के पीछे सेंटिनल आदिवासी समूह का हाथ है. अपनी मौत को लेकर एलन पूर्व से ही सशंकित थे और उन्होंने अपने परिजनों को लिखे पत्र में इस बारे में बताया भी था. वे इन आदिवासियों को बाइबिल का पाठ पढ़ाना चाहते थे. यह जानकारी अमेरिकी अखबार ‘वाशिंगटन पोस्ट’ ने दी है. 

वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक विलुप्ति के कगार पर खड़े सेंटेनलीज समुदाय के आदिवासियों की संख्या महज 40 है. हालांकि अखबार में यह संख्या 15 बताई गई है, जिनमें 12 पुरुष और 3 महिलाएं 10 झोंपड़ियों में रहते हैं. इस द्वीप के रहवासियों से किसी भी प्रकार का संपर्क साधना अवैध है तथा द्वीप के लोगों पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है. वैसे तो इस द्वीप पर जाना गैरकानूनी है, लेकिन इसी साल अगस्त में सरकार ने उत्तरी सेंटिनल द्वीप तथा अन्य 28 द्वीपों पर विदेशी पर्यटकों को जाने की अनुमति दे दी है.

यह अनुमति सीधे-सीधे पर्यटन को बढ़ावा देने और विदेशी मुद्रा कमाने के नजरिए से दी गई है. जबकि ये वनवासी समूह किसी भी पराए व्यक्ति का अपनी निजता में दखल बर्दाश्त नहीं करते हैं. ये लोग पिछले 60,000 साल से यहीं रह रहे हैं. इनका व्यवहार बेहद उग्र होता है. इसलिए अमेरिकी नागरिक का यहां जाने की कोशिश करना कतई उचित नहीं था.

लगभग इसी तर्ज पर एक ब्रिटिश पत्रकार ने इसी द्वीप समूह में रहने वाले जारवा आदिवासियों से अनधिकृत रूप से संपर्क साधकर फिल्म बनाई थी, जिसमें इनकी नग्नता को प्रमुख रूप से दिखाया गया था. हालांकि इस द्वीप के 5 नॉटिकल मील के व्यास में जाना मछली पकड़ना और सेंटिनल, आदिवासियों के फोटो खींचना व वीडियो बनाना अपराध के दायरे में है, इस कानून को तोड़ने पर तीन साल की सजा का प्रावधान है.        

जब किसी भी समाज की दशा और दिशा अर्थतंत्र तय करने लगते हैं तो मापदंड तय करने के तरीके बदलने लग जाते हैं. यही कारण है कि हम जिन्हें सभ्य और आधुनिक समाज का हिस्सा मानते हैं, वे लोग प्राकृतिक अवस्था में रह रहे लोगों को इंसान मानने की बजाय जंगली जानवर ही मानते हैं. आधुनिक कहे जाने वाले समाज की यह एक ऐसी विडंबना है, जो सभ्यता के दायरे में कतई नहीं आती.

आधुनिक विकास और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए वन कानूनों में लगातार हो रहे बदलावों के चलते अंडमान में ही नहीं देश भर में जनजातियों की संख्या लगातार घट रही है. आहार और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी जरूरतों की कमी होती जा रही है. इन्हीं वजहों से जारवा आदिवासियों की संख्या घटकर महज 381 रह गई है. एक अन्य टापू पर रहने वाले ग्रेट अंडमानी जनजाति के लोगों की आबादी केवल 97 के करीब बची है.

एक तय परिवेश में रहने के कारण इन आदिवासियों की त्वचा बेहद संवेदनशील हो गई है. लिहाजा यदि ये बाहरी लोगों के संपर्क में लंबे समय तक रहते हैं तो रोगी हो जाते हैं और उपचार के अभाव में दम तोड़ देते हैं.

Web Title: Pramod Bhargava's blog: Due to interference in the privacy of tribals

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे