प्रमोद भार्गव का ब्लॉगः पुस्तक संस्कृति विकसित करें

By प्रमोद भार्गव | Published: January 6, 2019 08:07 PM2019-01-06T20:07:44+5:302019-01-06T20:07:44+5:30

हिंदी पुस्तकों को ज्यादा से ज्यादा पाठकों तक कैसे पहुंचाया जाए, यह प्रश्न अपनी जगह मौजूद रहेगा. दरअसल बड़ी संख्या में हिंदी भाषी होने के बावजूद अधिकांश लोगों में पुस्तक पढ़ने की आदत नहीं है.

Pramod Bhargava's blog: Develop book culture | प्रमोद भार्गव का ब्लॉगः पुस्तक संस्कृति विकसित करें

फाइल फोटो

हर साल की तरह इस बार भी भारत पुस्तक न्यास द्वारा दिल्ली में विश्व पुस्तक मेला आयोजित है. मेले की मुख्य थीम ‘दिव्यांगजनों की पठन आवश्यकताएं’ है. मेले की थीम ऐसे विषय पर रखी जाती है, जिससे समाज में जागरूकता आए. इससे पहले थीम के विषय पर्यावरण, महिला सशक्तिकरण और भारत की सांस्कृतिक विरासत जैसे रहे हैं. मेले में अमेरिका समेत 20 देश और यूनेस्को जैसी कई अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं भाग ले रही हैं. करीब 800 प्रकाशक भाग लेंगे. 

इसके बावजूद हिंदी पुस्तकों को ज्यादा से ज्यादा पाठकों तक कैसे पहुंचाया जाए, यह प्रश्न अपनी जगह मौजूद रहेगा. दरअसल बड़ी संख्या में हिंदी भाषी होने के बावजूद अधिकांश लोगों में पुस्तक पढ़ने की आदत नहीं है. इस दृष्टि से पुस्तक पाठक तक पहुंचाने और पढ़ने की संस्कृति विकसित करने की जरूरत है. हालांकि बदलते परिवेश में जहां ऑनलाइन माध्यम पुस्तक को पाठक के संज्ञान में लाने में सफल हुए हैं, वहीं ऑनलाइन बिक्री भी बढ़ी है.

इसके इतर गीता प्रेस गोरखपुर ने दावा किया है कि उनकी प्रतिदिन 61,000 पुस्तकें बिकती हैं. इससे यह पता चलता है कि हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं के खरीददारों की कमी नहीं है, बशर्ते पुस्तकें धर्म और अध्यात्म से जुड़ी हों. यही वजह है कि इस समय देश में पौराणिक विषयों पर लिखी पुस्तकों की बिक्री में तेजी आई हुई है.  

पुस्तक मेले का उद्देश्य जहां विविध विषयों की पुस्तकों को बिक्री के लिए एक जगह लाना है, वहीं पाठकों में पठनीयता भी विकसित करना है. इसीलिए पुस्तक जगत से जुड़ी सरकारी व अर्धसरकारी संस्थाएं और प्रकाशक संघ पिछले 62 साल से सक्रिय हैं. पठनीयता को बढ़ावा मिले, इसी दृष्टि से मेले में बड़ी संख्या में पुस्तकों का विमोचन और विचार-गोष्ठियों का आयोजन होता है.

इन आकर्षणों के बाद भी साहित्यिक पुस्तकों की बिक्री उतनी नहीं हो रही है, जितनी अपेक्षित है. इसलिए पूरा पुस्तक व्यवसाय सरकारी थोक व फुटकर खरीद पर टिका है. इस कारण पुस्तकों का मूल्य भी उत्तरोत्तर बढ़ता रहा है. लिहाजा सामाजिक बदलाव व संस्कृति से जुड़ी पुस्तकें आम आदमी की मित्र नहीं बन पा रही हैं. जबकि पुस्तकें ज्ञान-विज्ञान, इतिहास-पुरातत्व तथा संस्कृति व सभ्यता से जुड़ी होने के साथ पूर्व पीढ़ियों के अनुभव व उनके क्रियाकलापों से जुड़ी होती हैं.

Web Title: Pramod Bhargava's blog: Develop book culture

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