प्रमोद भार्गव का ब्लॉग: आयुर्वेद औषधियों के क्लिनिकल परीक्षण पर भी लगी हैं निगाहें

By प्रमोद भार्गव | Updated: May 8, 2020 11:57 IST2020-05-08T11:57:46+5:302020-05-08T11:57:46+5:30

फिलहाल गिलोय और पिपली के मिश्रण का मेदांता अस्पताल में कोविड-19 प्रभावित रोगियों पर उपचार शुरू हुआ है. यदि यह दवा कसौटी पर खरी उतरती है तो इसे कोविड-19 के उपचार की वर्तमान चिकित्सा व्यवस्था में शामिल किया जाएगा. इन दोनों दवाओं पर पूर्व में प्रामाणिक अध्ययन हो चुके हैं और दोनों ही पूर्ण रूप से सुरक्षित हैं.

Pramod Bhargava blog: The eyes are also on clinical trials of Ayurveda medicines | प्रमोद भार्गव का ब्लॉग: आयुर्वेद औषधियों के क्लिनिकल परीक्षण पर भी लगी हैं निगाहें

गिलोय। (Image Source: Pixabay)

भारत समेत दुनिया में महामारी का सबब बन चुके कोरोना संक्रमण से निपटने के उपाय तलाशने के लिए चिकित्सा विज्ञान अब आयुर्वेदिक औषधियों को परखने के लिए भी मजबूर हुआ है. आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की कसौटी पर चुनिंदा आयुर्वेदिक औषधियों की वैज्ञानिकता मेदांता अस्पताल में क्लिनिकल ट्रायल से परखी जाएगी. आयुर्वेदिक औषधियों पर यह पहला ट्रायल है.

यह जानकारी विश्व स्वास्थ्य संगठन में व्यावसायिक औषधि इकाई के तकनीकी अधिकारी एवं आयुष मंत्रलय में कोरोना राष्ट्रीय कार्यक्रम समन्वयक डॉ. गीता कृष्णन ने दी है. इसकी शुरुआत गिलोय, पिपली, अश्वगंधा और मुलेठी से की गई है. फिलहाल गिलोय और पिपली के मिश्रण का मेदांता अस्पताल में कोविड-19 प्रभावित रोगियों पर उपचार शुरू हुआ है. यदि यह दवा कसौटी पर खरी उतरती है तो इसे कोविड-19 के उपचार की वर्तमान चिकित्सा व्यवस्था में शामिल किया जाएगा. इन दोनों दवाओं पर पूर्व में प्रामाणिक अध्ययन हो चुके हैं और दोनों ही पूर्ण रूप से सुरक्षित हैं.

ये दोनों ही औषधियां भारत में प्रचुर मात्र में उपलब्ध हैं. मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ के जंगलों में इनकी प्राकृतिक रूप से भरपूर पैदावार होती है. डॉ. कृष्णन ने कहा है कि यूं तो इन पांरपरिक आयुर्वेदिक औषधियों का सदियों से असाध्य रोगों के उपचार में प्रयोग हो रहा है, लेकिन मंत्रलय अब इसके वैज्ञानिक प्रमाण जुटाने के लिए विभिन्न एलोपैथी अस्पतालों की मदद से क्लिनिकल ट्रायल कर रहा है. दरअसल इन औषधियों में प्रभावी रोग-निरोधक क्षमता देखी गई है. धरा पर प्राणियों की सृष्टि से पहले ही प्रकृति ने घटक-द्रव्ययुक्त वनस्पति जगत की सृष्टि कर दी थी, ताकि रोगग्रस्त होने पर उपचार के लिए मनुष्य इनका प्रयोग कर सके.

भारत के प्राचीन वैद्य धन्वंतरि और उनकी पीढ़ियों ने ऐसी अनेक वनस्पतियों की खोज कर उनके रोगी मनुष्य पर प्रयोग किए. इन प्रयोगों के निष्कर्ष श्लोकों में ढालने का उल्लेखनीय काम भी किया, जिससे इस खोजी विरासत का लोप न हो. इन्हीं श्लोकों का संग्रह ‘आयुर्वेद’ है. एक लाख श्लोकों की इस संहिता को ‘ब्रह्म-संहिता’ भी कहा जाता है. वनस्पतियों के इस कोष और उपचार विधियों का संकलन ‘अथर्ववेद’ है. अथर्ववेद के इसी सारभूत संपूर्ण आयुर्वेद का ज्ञान धन्वंतरि ने पहले दक्ष प्रजापति को दिया और फिर अश्विनी कुमारों को पारंगत किया. अश्विनी कुमारों ने ही वैद्यों के ज्ञान-वृद्धि की दृष्टि से ‘अश्विनी कुमार संहिता’ की रचना की. चरक ने ऋषि-मुनियों द्वारा रचित संहिताओं को परिमार्जित करके ‘चरक-संहिता’ की रचना की. यह आयुर्वेद का प्रामाणिक ग्रंथ माना जाता है.

इसी कालखंड में वाग्भट्ट ने धन्वंतरि से ज्ञान प्राप्त किया और ‘अष्टांग हृदय संहिता’ की रचना की. सुश्रुत संहिता तथा अष्टांग हृदय संहिता आयुर्वेद के प्रामाणिक ग्रंथों के रूप में आदि काल से हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं. आयुर्वेद व अन्य उपचार संहिताओं में स्पष्ट उल्लेख है कि प्रत्येक प्राणी का अस्तित्व पंच-तत्वों से निर्मित हैं. इन शास्त्रों में केवल मनुष्य ही नहीं पशुओं, पक्षियों और वृक्षों के उपचार की विधियां भी उल्लेखित हैं.

इतनी उत्कृष्ट चिकित्सा पद्धति होने के पश्चात भी इसका पतन क्यों हुआ? हमारे यहां संकट तब पैदा हुआ जब तांत्रिकों, सिद्धों और पाखंडियों ने इनमें कर्मकांड से जीवन की समृद्धि का घालमेल शुरू कर दिया. इसके तत्काल बाद एक और बड़ा संकट तब आया, जब भारत पर यूनानियों, शकों, हूणों के हमलों का सिलसिला शुरू हुआ. जो कुछ शेष था, उसे नेस्तनाबूद करने का काम अंग्रेजों ने किया. इस संक्रमण काल में आयुर्विज्ञान की ज्योति न केवल धुंधली हुई, बल्कि नष्टप्राय हो गई. नए शोध और मौलिक ग्रंथों का सृजन थम गया. इन आक्रमणों के कारण जो अराजकता, हिंसा और अशांति फैली, उसके चलते अनेक आयुर्वेदिक ग्रंथ छिन्न-भिन्न व लुप्त हो गए. आयुर्विज्ञान के जो केंद्र और शाखाएं थीं, वे पंडे-पुजारियों के हवाले हो गईं, नतीजतन भेषज और जड़ी-बूटियों के स्थान पर तंत्र-मंत्र के प्रयोग होने लग गए.

Web Title: Pramod Bhargava blog: The eyes are also on clinical trials of Ayurveda medicines

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