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प्रकाश बियाणी का ब्लॉग: उद्योग जगत को चाहिए स्थायी नीति का भरोसा

By Prakash Biyani | Updated: January 25, 2020 05:30 IST

अर्थव्यवस्था का पैमाना जीडीपी है जिसकी ग्रोथ लगातार गिर रही है. राजस्व वसूली घटी है. उद्योग जगत के पास पैसा है पर मांग की कमी के कारण वह इसे बिजनेस में निवेश नहीं कर रहा है.

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शनिवार को शेयर मार्केट बंद रहता है पर 1 फरवरी, 2020 शनिवार को बजट पेश होगा इसलिए शेयर ट्रेडिंग होगी. 2019 में बजट के दिन बीएसई सूचकांक 1200 अंक गिर गया था. इस बार बजट पर शेयर मार्केट कैसे रिएक्ट करेगा यह आज कोई नहीं कह सकता. उम्मीद है कि वित्त मंत्नी निर्मला सीतारमण इस बार बड़े फैसले लेंगी.

अर्थव्यवस्था का पैमाना जीडीपी है जिसकी ग्रोथ लगातार गिर रही है. राजस्व वसूली घटी है. उद्योग जगत के पास पैसा है पर मांग की कमी के कारण वह इसे बिजनेस में निवेश नहीं कर रहा है. बेरोजगारी बढ़ रही है जिसका हिडन असर सिटिजन अमेंडमेंट एक्ट(सीएए) और नेशनल रजिस्ट्री ऑफ सिटिजन्स (एनआरसी) के विरोध में देखा जा सकता है. इन्हें लेकर जो आंदोलन हो रहे हैं उसमें युवाओं की भागीदारी में रोजगार न मिलने का असंतोष भी छुपा हुआ है.

अर्थव्यवस्था में सुस्ती के ऐसे व्यापक प्रभाव के कारण वित्त मंत्नी के पास विकल्प बचता है कि सरकारी खर्च बढ़ाएं. कार्पोरेट टैक्स तो वे पहले ही घटा चुकी हैं, अब मध्यम वर्ग को आयकर में छूट की उम्मीद है. इन सबके साथ वित्तीय घाटा नियंत्नण में रखने के लिए वे ऑफ बजट आय बढ़ाने की कोशिश करेंगी. अपव्यय रोकेंगी. मसलन, घाटे में कारोबार कर रही एयर इंडिया या बीएसएनएल जैसी दर्जनों सरकारी कंपनियों को आईसीयू में जिंदा रखना फिजूलखर्ची है. मूर्खता है घाटे की घाटी में गले-गले तक डूबी सरकारी कंपनियों को जिंदा रखना. जब ये खुद संभलने और सुधरने को तैयार नहीं हैं तो सरकार हर साल इनकी फंडिंग क्यों करे?

विडंबना यह है कि इस साल विनिवेश से सरकार को 1.05 लाख करोड़ रुपये जुटाने थे पर 17 हजार करोड़ रुपये ही मिले हैं. वित्त मंत्नी को इस साल विनिवेश के लक्ष्य प्राप्त करने ही होंगे. यही नहीं, सरकारी रुग्ण कंपनियों का अतिरिक्त भूमि पर जो कब्जा है उसे बेचकर सरकार उनका कर्ज चुकाना और अपना राजस्व बढ़ाना चाहेगी. निस्संदेह, भूमि बेचना विवाद खड़े करेगा पर प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी के पास प्रचंड बहुमत है और आलोचना सहने और सुनने का साहस भी.

सरकार के पास एक और अदोहित स्रोत है- 50 लाख हेक्टेयर वेस्ट लैंड. पानी की कमी के कारण इस पर खेती नहीं होती पर सोलर पॉवर प्लांट लग सकते हैं. इस वेस्ट लैंड का औद्योगिक उपयोग भी हो सकता है. 1902 में जमशेदजी टाटा ने साकची को देश के पहले स्टील संयंत्न के लिए चिह्न्ति किया तब वहां केवल झाड़ियां और जंगल थे. दस साल बाद साकची का नाम जमशेदपुर हो गया जो आज देश का प्रगतिशील औद्योगिक नगर है. हमें यह इतिहास दोहराना चाहिए.वित्त मंत्नी ने साहस जुटाया तो ग्रामीण अर्थव्यवस्था की भी सर्जरी होगी.

मोदी सरकार ने पहले कार्यकाल में फसलों के न्यूनतम मूल्य बढ़ाए, किसानों को सीधे नगद राशि बांटी पर न उनकी क्र य शक्ति बढ़ी और न ही ग्रामीण अंचल में रोजगार बढ़ा. किसान देश की जरूरत से ज्यादा फसलोत्पादन कर रहे हैं पर हम उसे (सलीके से स्टोर करके) न सहेज रहे हैं और न ही वास्तविक मूल्य पर बेच रहे हैं. घरेलू मार्केट में महंगाई न बढ़े इसलिए सरकार कृषि उत्पादों के मूल्य नहीं बढ़ने देती तो ग्लोबल एग्रो मार्केट में भी हम मांग के अनुसार नहीं बल्कि अपनी सुविधा से कृषि उत्पाद बेचते हैं, फलत: किसानों को फसल का वाजिब मूल्य नहीं मिलता. किसान भी आयकर चुकाएं, यह जटिल और विवादास्पद मुद्दा है पर किसानों की आड़ लेकर फर्जी किसान मनी लॉन्ड्रिंग कर रहे हैं.

यह सवाल भी वर्षो से अनुत्तरित है कि बड़े और अमीर किसान आयकर क्यों नहीं देते? वित्त मंत्नी ने बजट पूर्व ही कह दिया है कि सरकार इन्फ्रास्ट्रक्चर पर भारी-भरकम खर्च करेगी. उम्मीद करें कि बजट में वे इस खर्च का रोड मैप पेश करेंगी. नेशनल हाइवेज अथॉरिटी ऑफ इंडिया के अनुसार अभी तो 100 से ज्यादा प्रोजेक्ट्स भूमि अधिग्रहण में विलंब के कारण लंबित हैं. भारतमाला परियोजना में सरकार ने 2022 तक 34,800 किमी सड़क बनाने का लक्ष्य तय किया है पर सितंबर 2019 तक केवल 9577 किमी सड़क निर्माण के ठेके दिए गए हैं. 2022 तक 175 गीगावॉट सौर और पवन ऊर्जा का लक्ष्य भी पूरा होने की उम्मीद नहीं है. इन्फ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में मोदी सरकार ने लैंड रिफॉर्म करना तो चाहा था पर अब यह एक बार फिर ठंडे बस्ते में चला गया है.

रियल एस्टेट सेक्टर को सरकार ने बजट पूर्व राहत दी है पर घर खरीदनेवाले अभी भी आश्वस्त नहीं हैं कि उन्हें वादे अनुसार बने मकान का पजेशन समय पर मिलेगा. वित्त मंत्नी को शेयर मार्केट के निवेशकों को ज्यादा राहत देने के बजाय उद्योग जगत को आश्वस्त करना चाहिए कि सरकार की रीति-नीति सुबह-शाम नहीं बदलेगी. इसी तरह जीडीपी के सालाना इनफॉर्मेशन रिटर्न से सरकार के पास डाटा का ढेर लग गया है. इसकी स्क्रूटिनी से राजस्व बढ़ने लगा है. वित्त मंत्नी आश्वस्त करें कि इस डाटा का टैक्स टेरर के लिए उपयोग नहीं होगा.

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