ब्लॉग: हिंदी को लेकर विवाद बनाना ठीक नहीं...हिंदी सबकी है

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: June 16, 2023 02:07 PM2023-06-16T14:07:21+5:302023-06-16T14:10:35+5:30

इस देश की राष्ट्रीय एकता के लिए यह जरूरी है कि हिंदी को लेकर कोई बावेला न मचाए. हिंदी सबकी है. हम सभी अपनी भाषा का सम्मान करें.

Political duplicity regarding Hindi | ब्लॉग: हिंदी को लेकर विवाद बनाना ठीक नहीं...हिंदी सबकी है

ब्लॉग: हिंदी को लेकर विवाद बनाना ठीक नहीं...हिंदी सबकी है

डॉ. साकेत सहाय

तमिलनाडु सरकार ने राजनीतिक लाभ एवं दुराग्रह के तहत भारत सरकार की एक प्रमुख बीमा कंपनी द्वारा संविधान सम्मत और सरकारी दिशानिर्देश के अनुरूप जारी परिपत्र का विरोध कर संघवाद की नीति के प्रति अवमानना प्रदर्शित की है जो कि देशहित में बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है.

केंद्र सरकार के कार्यालयों की भाषा नीति के संबंध में किसी राज्य सरकार का ऐसा हस्तक्षेप एवं विरोध एक राष्ट्र के लिए ठीक नहीं है. आखिर राज्य सरकारें भी तो अपनी राजभाषा से भिन्न भाषाभाषी  कर्मचारियों को राज्य की राजभाषा में प्रशिक्षित करती ही हैं. फिर इस कार्य में केंद्र सरकार का विरोध क्यों किया जा रहा है. इसके राजनीतिक निहितार्थ चाहे जो हों, पर इसे देशहित में कोई भी उचित नहीं ठहरा सकता.

दरअसल हिंदी की समस्या न राजनीतिक है न सामाजिक बल्कि लोगों को भड़का कर  स्वार्थ सिद्धि की है. यह भी सत्य है कि इस देश की ज्यादातर सरकारों ने हिंदी का दोहन ही किया है. हिंदी के बल पर सरकारें सत्ता में तो आती हैं, फिर उसे उसकी हालत पर छोड़ देती हैं. यह स्थापित सत्य है कि हिंदी सबकी है. यह केवल उत्तर भारत की भाषा नहीं है बल्कि संपूर्ण भारतवर्ष की भाषा है. हिंदी एवं भारतीय लोक भाषाओं में अद्भुत शाब्दिक समानता से इसे समझा जा सकता है. 

मराठी भाषी केशव पेठे  ने सन्‌ १८९३ में ‘राष्ट्रभाषा किंवा सर्व हिन्दुस्थानची एक भाषा करणे’ नामक पुस्तक में हिंदी को सर्वस्वीकृत राष्ट्रभाषा बनाने पर जोर दिया था.  भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में हिंदी को ‘राष्ट्रभाषा’ के नाम से प्रचारित किया गया था.  इसीलिए हिंदी प्रचार सभाओं के नाम राष्ट्रभाषा सभा पंजीकृत किए गए थे, जैसे राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा और महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा पुणे.

इस देश की राष्ट्रीय एकता के लिए यह जरूरी है कि हिंदी को लेकर कोई बावेला न मचाए.  हिंदी सबकी है. हम सभी अपनी भाषा का सम्मान करें. यह भी विचारणीय है कि हिंदी विरोध के नाम पर हम कहीं न कहीं अंग्रेजी भाषा का ही समर्थन करते हैं. जबकि भारत का विकास भारतीय भाषाओं में ही निहित है और हिंदी इसमें अग्रणी भूमिका में है.

Web Title: Political duplicity regarding Hindi

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