ब्लॉग: बड़ी अहमियत है राकेश अस्थाना होने की
By हरीश गुप्ता | Published: May 12, 2022 10:06 AM2022-05-12T10:06:15+5:302022-05-12T10:07:47+5:30
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक चतुर राजनीतिज्ञ हैं और उनकी कार्यशैली आजादी के बाद से अभी तक के सभी पूर्ववर्तियों से पूरी तरह से अलग है. उनके पास विश्वासपात्रों की एक लंबी सूची है लेकिन कोई मंडली नहीं है. यहां तक कि इन विश्वासपात्रों को भी काफी छानबीन के बाद पदों पर नियुक्त किया जाता है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक चतुर राजनीतिज्ञ हैं और उनकी कार्यशैली आजादी के बाद से अभी तक के सभी पूर्ववर्तियों से पूरी तरह से अलग है. उनके पास विश्वासपात्रों की एक लंबी सूची है लेकिन कोई मंडली नहीं है. यहां तक कि इन विश्वासपात्रों को भी काफी छानबीन के बाद पदों पर नियुक्त किया जाता है.
लोगों के परीक्षण की मोदी की अपनी एक शैली है. उनके पास विषय के हिसाब से विश्वासपात्र हैं और वे बहुत सोच-समझ कर चयन करते हैं. उदाहरण के लिए, अगर उनके पास मंत्रियों सहित विश्वासपात्र राजनीतिक कार्यकर्ताओं की एक टीम है तो यह बिल्कुल भी जरूरी नहीं है कि नौकरशाही या सरकार, विदेशी या अन्य मामलों में भी उन्हें विश्वास में लिया जाएगा.
यहां तक कि मंत्रिमंडल की मुक्त चर्चाओं, जिन्हें ‘मंथन’ कहा जाता है, में वे मंत्रियों को अपने मन की बात कहने की अनुमति देते हैं. लेकिन उनके मन की बात शायद ही कोई जानता है.
यही बात नौकरशाही और पुलिस पर भी लागू होती है. जब गुजरात के दिनों के उनके सबसे भरोसेमंद नौकरशाह ए.के. शर्मा को प्रधानमंत्री कार्यालय से हटा कर लघु, कुटीर एवं मध्यम उपक्रम (एमएसएमई) मंत्रालय में भेज दिया गया तो सभी को आश्चर्य हुआ था.
लेकिन एक दिन उन्होंने सरकार छोड़ दी और राजनीतिक भूमिका निभाने के लिए उन्हें यूपी भेज दिया गया. अब उन राजनीतिक विश्लेषकों की कमी नहीं है जो कहते हैं कि उन्हें योगी आदित्यनाथ के पंख कतरने के लिए भेजा गया है. उन्हें दो महत्वपूर्ण विभाग दिए गए हैं- बिजली और शहरी विकास.
इसलिए, जब गुजरात कैडर के मोदी के एक और वफादार आईपीएस अधिकारी राकेश अस्थाना सीबीआई निदेशक के पद से चूक गए, तो कई लोगों को लगा कि वे कृपापात्र नहीं रह गए हैं.
दिल्ली के पुलिस आयुक्त के रूप में नियुक्त किए जाने के बाद भी, कई लोगों ने महसूस किया कि यह एक बड़ी अवनति है. लेकिन जनता यह महसूस कर रही है कि अस्थाना के नेतृत्व में, जिनकी प्रधानमंत्री तक सीधी पहुंच है, सरकार में कोई भी मंत्री, चाहे वह कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, दिल्ली में पुलिस को अपनी धुन पर नाचने के लिए मजबूर नहीं कर सकता.
अस्थाना शायद पहले पुलिस आयुक्त हैं जिन्हें कानून और व्यवस्था से निपटने की पूरी छूट है. उदाहरण के लिए, स्थानीय भाजपा नेतृत्व चाहता था कि कई क्षेत्रों में पुलिस बल जेसीबी मशीनों का उपयोग करके बड़े पैमाने पर अतिक्रमण हटाने का अभियान चलाए. लेकिन अस्थाना ने पुलिस बल देने से साफ इनकार कर दिया और यह कहते हुए बेहद सावधानी बरती कि ये संवेदनशील इलाके हैं.
कांग्रेस बचाने की कोशिश पुनर्जीवित करने की नहीं!
1998 में, सोनिया गांधी कांग्रेस को पुनर्जीवित करने के मिशन पर थीं, जब सीडब्ल्यूसी ने सीताराम केसरी को हटा दिया और सोनिया गांधी को पार्टी अध्यक्ष के रूप में स्थापित किया.
उन्होंने छह साल के भीतर पांसा पलट दिया और दस साल तक डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में चलने वाली कांग्रेस की सरकार स्थापित की. लेकिन सोनिया गांधी जानती हैं कि आज का 2022 पहले का 1998 नहीं है.
आज की भाजपा तुलनात्मक रूप से युवा है और मोदी, शाह, जेपी नड्डा जैसे चौबीसों घंटे काम करने वाले नेताओं से भरी हुई है. इसके विपरीत, कांग्रेस के पास अंशकालिक राजनेता हैं जो मोदी को उनके मिशन ‘कांग्रेस-मुक्त भारत’ में मदद कर रहे हैं.
राहुल गांधी, किसी हद तक, अपनी कमियों और भाजपा को पर्याप्त गोला-बारूद प्रदान करने वाले असामयिक कार्यों के कारण मोदी की बराबरी करने में असमर्थ हैं.
सोनिया गांधी बहुत गहन विचार करती हैं, हर विवरण में जाती हैं और वरिष्ठों से सलाह लेने के बाद निर्णय लेने में विश्वास करती हैं. इसलिए उदयपुर का चिंतन शिविर एक ऐतिहासिक क्षण होगा.
लेकिन यह स्पष्ट रूप से सामने आ रहा है कि जब भी संगठनों के चुनाव होंगे तो एक गैर-गांधी को अगले कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में स्थापित किया जा सकता है. काठमांडू के नाइट क्लब के मामले के बाद, यह स्पष्ट है कि राहुल गांधी पार्टी की कमान नहीं संभाल सकते.
कांग्रेस के 100 बागी कतार में ?
राज्यों में चुनाव नजदीक आने के साथ ही कांग्रेस को तगड़ा झटका देने के लिए भाजपा दोहरी रणनीति बना रही है. एक तरफ वह राज्यों में कांग्रेस के नेताओं को हर स्तर पर पाला बदलने के लिए लुभा रही है, तो ‘असंतुष्ट वर्ग’ बनाने के लिए दिग्गजों से भी संपर्क कर रही है.
भाजपा के सूत्रों का कहना है कि वह चाहती है कि 100 नेताओं का असंतुष्ट वर्ग बनाया जाए. यह गैर-राजनीतिक मंच गांधी परिवार को शर्मिंदा करने के लिए महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाएगा.
पार्टी के पास संख्याबल होने के बावजूद राहुल गांधी के वफादार रिपुन बोरा जिस तरह से असम में अपनी राज्यसभा सीट हार गए, उससे पता चलता है कि सबकुछ ठीक-ठाक नहीं है.
गुजरात में कांग्रेसियों का पलायन एक नियमित बात हो गई है. एक शक्तिशाली पाटीदार नेता नरेश पटेल कांग्रेस में नहीं बल्कि भाजपा में शामिल हो सकते हैं.
भगवा पार्टी जून-जुलाई में शेष 55 राज्यसभा सीटों के लिए द्विवार्षिक चुनावों के दौरान कुछ राज्यों में कांग्रेस को झकझोर सकती है. भाजपा अब पंजाब, तेलंगाना और केरल में नेतृत्व करने या प्रमुख विपक्षी दल के रूप में उभरने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है.
वह 2023 में कांग्रेस को उखाड़ फेंकने के लिए राजस्थान और छत्तीसगढ़ में तैयारी कर रही है. कहा जाता है कि रवनीत सिंह बिट्टू, मनीष तिवारी, परनीत कौर समेत कई लोकसभा सांसद भाजपा के साथ नियमित संपर्क में हैं. महाराष्ट्र में भाजपा कुछ ईमानदार कांग्रेसी नेताओं को रिझाने की कोशिश कर रही है.