PM Narendra Modi: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सत्ता संरचना में बड़े बदलाव पर विचार कर रहे हैं और कुछ प्रमुख मंत्रालयों में फेरबदल भी कर सकते हैं. निश्चित रूप से वे नई प्रतिभाओं की तलाश में हैं. प्रधानमंत्री कार्यालय में प्रधान सचिव-2 के रूप में शक्तिकांत दास की नियुक्ति इस बात का संकेत है कि वित्तीय क्षेत्र में जो कुछ चल रहा है, उससे वे खुश नहीं हैं. सूत्रों का कहना है कि उनकी पदोन्नति से सत्ता संरचना में बेचैनी पैदा होना तय है. आर्थिक स्थिति से कहीं आगे, यह महसूस किया जाता है कि संबंधित मंत्रालयों द्वारा सही समय पर प्रशासनिक प्रतिक्रियाओं का अभाव है.
ऐसा कहा जाता है कि नौकरशाही की बाधाएं और लालफीताशाही अभी भी हावी है. कई मामलों में प्रशासनिक और नीतिगत पक्ष में समय पर पहल की कमी पाई गई. ट्रम्प प्रशासन ने सार्वजनिक रूप से कहा कि भारत में काम करना मुश्किल है क्योंकि हर कदम पर बाधाएं खड़ी की जा रही हैं और व्यापार करने में आसानी बहुत दूर की बात है.
इसलिए, बुनियादी ढांचे और प्रमुख वित्तीय क्षेत्र के कुछ मंत्रालयों में कदम उठाने की जरूरत है और इनमें कुछ बदलाव देखने को मिल सकते हैं. हालांकि ऐसे मामलों में ईमानदार व्यक्ति को ढूंढ़ना भी एक मुद्दा है. बजट सत्र का दूसरा चरण 4 अप्रैल को समाप्त हो जाएगा, इसलिए तब तक एक नया संगठनात्मक ढांचा भी स्थापित हो सकता है, बशर्ते कि इसमें और देरी न हो. सरकार के ढांचे में भी कुछ बदलाव होंगे, क्योंकि कुछ मंत्रियों को आगे आने वाली बड़ी चुनौतियों को देखते हुए पार्टी के काम के लिए भेजा जा सकता है.
आम तौर पर, मोदी चुनाव प्रचार के बाद शपथ ग्रहण समारोह के कुछ साल बाद ही कोई बड़ा फेरबदल करते हैं. लेकिन वे वैश्विक चुनौतियों के मद्देनजर नई पहल करने के लिए अलग सोच रखने वाली नई प्रतिभाओं को शामिल करना चाहते हैं. हो सकता है कि कुछ आश्चर्यजनक बातें भी सामने आएं.
भाजपा को आखिरकार महिला नेता मिली
मोदी सरकार 2014 से ही एक महिला नेता की तलाश में रही है. दिल्ली आने के बाद मोदी को पार्टी में कई प्रमुख महिला नेता विरासत में मिलीं. लेकिन, पिछले कुछ सालों में भाजपा को हमेशा एक ऐसी प्रमुख महिला नेता की जरूरत महसूस हुई जो संघ परिवार से जुड़ी हो. मोदी भी एक ऐसे नए नेता की तलाश में थे जो अपनी छाप छोड़ सके और आखिरकार उनकी तलाश रेखा गुप्ता पर खत्म होती दिख रही है.
वह पार्टी के आम लोगों से आती हैं और भगवा परिवार से भी गहराई से जुड़ी हुई हैं. दिलचस्प बात यह है कि रेखा गुप्ता को मुख्यमंत्री के तौर पर चुनने की कवायद शुरू होने से काफी पहले ही भाजपा संसदीय बोर्ड ने कैबिनेट मीटिंग के तुरंत बाद सीएम के नाम पर फैसला कर लिया था.
रेखा गुप्ता का उभरना इस बात का संकेत है कि पार्टी को उत्तर भारत में एक युवा, मुखर और शांत महिला नेता मिल गई है जो खालीपन को भर सकती है. जिस तरह से पीएम मोदी ने उन्हें चुना है, वह पूर्व केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के लिए चिंता का विषय हो सकता है, जिन्हें मीडिया के एक हिस्से में दिल्ली भाजपा के चेहरे के तौर पर भी पेश किया गया था. इसी तरह मीनाक्षी लेखी भी इस प्रमुख पद के लिए दौड़ में थीं.
हिमाचल से भाजपा सांसद कंगना रनौत भी अपनी छाप छोड़ने में विफल रहीं. लेकिन पहली बार विधायक बनीं रेखा गुप्ता, जो दो बार चुनाव हार चुकी हैं, अचानक ही उभरकर सामने आ गईं. दिल्ली देश का चेहरा है और राजधानी में ट्रिपल इंजन की सरकार है, इसलिए रेखा गुप्ता के पास कमाल करने का मौका है. लेकिन उन्हें अपनी काबिलियत भी साबित करनी होगी.
अंतिम समाजवादी राजवंश
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भले ही वंशवाद की राजनीति के सख्त खिलाफ रहे हों, लेकिन समय बदल गया है. ऐसा लगता है कि जेडीयू का झंडा बुलंद रखने के लिए वे अपने बेटे पर भरोसा कर सकते हैं. अगर ऐसा होता है तो मुलायम, लालू और कई अन्य के बाद वंशवाद की राजनीति में फंसने वाले समाजवादी नेताओं में वे आखिरी होंगे.
इसकी वजह नीतीश कुमार की लगातार खराब होती सेहत और पार्टी की एकजुटता हो सकती है क्योंकि पार्टी को एकजुट रखने के लिए कोई नेता नहीं है. पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बुलावे पर भी नीतीश खराब सेहत के कारण एनडीए की बैठक में शामिल होने दिल्ली नहीं आए थे. यह साफ है कि नीतीश कुमार के इकलौते बेटे निशांत कुमार राजनीति में उतरेंगे क्योंकि वे इस साल के आखिर में होने वाले विधानसभा चुनाव में अपने पिता की जीत के लिए खुलकर लड़ रहे हैं. हालांकि उन्होंने खुद इस बात का कोई संकेत नहीं दिया कि वे चुनावी मैदान में उतरेंगे या नहीं.
लेकिन अब वे मीडिया से बातचीत कर रहे हैं और राजनीतिक मुद्दों पर अपनी बात रख रहे हैं. इससे पहले वे अपने पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने में पूरी तरह से उदासीन थे. लेकिन अब जब सीएम के डिमेंशिया से पीड़ित होने के संदेह की खबरें आ रही हैं, निशांत कुमार ने खुद इस मुद्दे को हवा दे दी है,
जिन्होंने राज्य के लोगों से आगामी बिहार विधानसभा चुनावों में अपने पिता को फिर से सत्ता में लाने के लिए वोट देने का आग्रह किया है. उन्होंने इसके लिए उनकी ‘कड़ी मेहनत’ का हवाला दिया है. अब यह स्पष्ट है कि वह पार्टी के लिए प्रचार करेंगे और राजनीतिक कार्यों में शामिल होंगे.
आरएसएस की तारीफ
अब यह साफ हो गया है कि नए भाजपा अध्यक्ष पर भी आरएसएस की छाप होगी. हालांकि, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा की जगह आने वाले अध्यक्ष को पीएम मोदी के साथ मिलकर काम करना होगा, लेकिन यह भी साफ है कि उन्हें आरएसएस का आशीर्वाद भी चाहिए. ऐसी खबरें हैं कि नए अध्यक्ष मोदी के विश्वासपात्र हो सकते हैं.
हाल ही में यहां मराठी साहित्य सम्मेलन में जिस तरह से पीएम ने आरएसएस की तारीफ की, उससे किसी को संदेह नहीं रह गया कि मोदी मूल संगठन के साथ संबंध मजबूत कर रहे हैं. वह हाल ही में सार्वजनिक रूप से भी इस बात को कह रहे थे. 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद यह रिश्ता और मजबूत हुआ है. यह कोई रहस्य नहीं है कि आरएसएस व्यक्ति पूजा के खिलाफ रहा है और हमेशा पार्टी की सामूहिक कार्य संस्कृति पर जोर देता रहा है.