PM मोदी के मंत्रिमंडल में फेरबदल की अटकलें तेज, लोकसभा चुनाव से पहले हो सकता आखिरी बदलाव
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: September 7, 2018 05:47 AM2018-09-07T05:47:58+5:302018-09-07T05:47:58+5:30
एक साथ चुनावों के बारे में प्रधानमंत्री मोदी अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में जो भी कहें और भाजपा इसका जितना भी ढोल पीटे, लेकिन लोकसभा चुनाव अपने निर्धारित समय पर ही होंगे। भाजपा हाईकमान और प्रधानमंत्री कार्यालय भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों पर अपने राज्यों में किए गए कार्यो के बारे में एक के बाद दूसरा डाटा उपलब्ध कराने के लिए जोर डाल रहे हैं।
हरीश गुप्ता
राष्ट्रीय राजधानी के सत्ता के गलियारों में केंद्रीय मंत्रिमंडल में संभावित फेरबदल के बारे में अटकलें शुरू हो गई हैं। अगले आम चुनावों के पहले यह मोदी मंत्रिमंडल का आखिरी बदलाव हो सकता है। चूंकि मोदी-शाह टीम का ध्यान उत्तर प्रदेश की लोकसभा सीटों को बनाए रखने, पूवरेत्तर की सभी 25 सीटें हासिल करने और प. बंगाल की आधी सीटों तथा आंध्र प्रदेश में सेंध लगाने पर है, इसलिए मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व इन्हीं योजनाओं के अनुरूप होगा।
उत्तर प्रदेश से भाजपा के केवल तीन केंद्रीय मंत्री हैं- राजनाथ सिंह, मेनका गांधी और मुख्तार अब्बास नकवी। जबकि पूवरेत्तर से केवल एक राज्यमंत्री किरण रिजिजु हैं। खेल मंत्री सर्बानंद सोनोवाल को मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद असम का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। महाराष्ट्र से नौ मंत्रियों की बड़ी संख्या है, जबकि बिहार में सहयोगी दलों को हिस्सा नहीं मिलने से उनमें नाराजगी है। कम से कम पांच केंद्रीय मंत्री ऐसे हैं जिनके पास एक से अधिक पोर्टफोलियो हैं, जबकि अन्य के पास काम ही नहीं है।
शिवसेना न्याय की प्रतीक्षा कर रही है और जनता दल (यू) को मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व मिलने का इंतजार है, क्योंकि अब यह स्पष्ट है कि वह भाजपा के साथ गठबंधन में रहेगा। तेदेपा के मंत्रिमंडल और राजग से बाहर निकलने के बाद, भाजपा नेतृत्व आंध्र प्रदेश में अपने आधार का विस्तार करने के तरीकों पर काम कर रहा है।
बिहार में जातिगत समीकरणों को ध्यान में रखते हुए कुछ बदलावों की आवश्यकता हो सकती है। मोदी का ध्यान दलित वोट बैंक पर भी है। रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति और बेबी रानी मौर्य तथा सत्यदेव नारायण आर्य को राज्यपाल बनाने का मकसद भी यही था। इसको ध्यान में रखते हुए उत्तर प्रदेश में एक दलित नेता की तलाश की जा रही है। दो दलित नेता हैं- राम विलास पासवान (लोजपा-बिहार) और थावरचंद गहलोत (मध्य प्रदेश), लेकिन इनमें से कोई भी उत्तर प्रदेश से नहीं है। मायावती का मुकाबला करने के लिए मोदी को भाजपा के भीतर से ही किसी नेता की तलाश है।
मोदी-शाह की वॉर मशीन
एक साथ चुनावों के बारे में प्रधानमंत्री मोदी अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में जो भी कहें और भाजपा इसका जितना भी ढोल पीटे, लेकिन लोकसभा चुनाव अपने निर्धारित समय पर ही होंगे। भाजपा हाईकमान और प्रधानमंत्री कार्यालय भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों पर अपने राज्यों में किए गए कार्यो के बारे में एक के बाद दूसरा डाटा उपलब्ध कराने के लिए जोर डाल रहे हैं। मुख्यमंत्रियों सहित राज्यों के भाजपा नेता केंद्रीय नेतृत्व की चुनावों के संदर्भ में की जा रही मांगों को पूरा करने की कोशिश कर रहे हैं।
मुख्यमंत्रियों को विभिन्न केंद्रीय योजनाओं के अपने राज्यों के लाभार्थियों का गांव, ब्लॉक और जिलावार विस्तृत डाटा भेजने को कहा गया है। लाभार्थियों के आधार नंबर, उनके पते और मोबाइल नंबर (अगर हो तो) मांगे गए हैं। मोदी सरकार ने करीब 23 केंद्रीय योजनाओं को रिपैकेज्ड किया है और उनमें से उज्ज्वला, मनरेगा, जन धन खाता, डीबीटी जैसी कई योजनाएं फास्ट ट्रैक पर हैं।
हालांकि राज्य इसके पहले ही केंद्र सरकार को डाटा उपलब्ध करा चुके हैं, लेकिन भाजपा नेतृत्व एक अक्तूबर के पहले अपडेटेड डाटा चाहता है। इसके लिए राज्य नेतृत्व को एक विशेष प्रारूप भेजा गया है और उसी प्रारूप में उत्तर भी मांगे गए हैं। शायद, आंकड़ों को मोदी की मदद के लिए संकलित किया जा रहा है ताकि जब वे संबंधित क्षेत्रों में रैलियों को संबोधित करने का निर्णय लें तो अपने संबोधन में उस क्षेत्र के लाभार्थियों का उल्लेख कर सकें।
वे गांवों के किसी लाभार्थी परिवार के मालिक का उल्लेख कर उदाहरण दे सकते हैं कि ऐसे सैकड़ों लोग हैं जो उनकी योजना से लाभान्वित हुए हैं। राज्य नेतृत्व को ऐसे लाभार्थियों के आंकड़ों की सटीक तिथियों के बारे में एक चार्ट में जानकारी देने को कहा गया है कि वे कब लाभान्वित हुए। इस कवायद का दूसरा चरण जनवरी में शुरू होगा और 15 फरवरी को समाप्त होगा। इससे स्पष्ट संकेत मिलता है कि लोकसभा चुनाव समयपूर्व होने की कोई संभावना नहीं है। इस कवायद से यह भी स्पष्ट होता है कि सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी के बीच कोई अंतर नहीं रखा गया है। मोदी और शाह दोनों ही चुनाव जीतने के एकमात्र लक्ष्य को सामने रख दिन-रात काम कर रहे हैं।
कांग्रेस की रणनीति
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में जहां कांग्रेस के किसी भी बड़े नेता के चुनाव नहीं लड़ने की बात कही जा रही है, वहीं राजस्थान विधानसभा चुनाव में सभी बड़े नेता चुनाव लड़ सकते हैं। म.प्र. में न पीसीसी अध्यक्ष कमलनाथ और न कैम्पेन कमेटी के प्रमुख ज्योतिरादित्य सिंधिया चुनाव लड़ेंगे। दिग्विजय सिंह भी चुनाव नहीं लड़ेंगे। ये सभी वरिष्ठ नेता लोकसभा या राज्यसभा के सदस्य हैं और वे खुद चुनाव लड़ने के बजाय राज्य में पार्टी को जिताने के लिए काम करेंगे। लेकिन राजस्थान में रणनीति सभी नेताओं को चुनाव मैदान में उतारने की है, चाहे वे सचिन पायलट हों, अशोक गहलोत या सीपी जोशी। वे चुनाव लड़ेंगे क्योंकि उनमें से कोई भी संसद के किसी भी सदन का सदस्य नहीं है। माना जा रहा है कि सभी नेताओं को मैदान में उतारने से सही संकेत जाएगा।