पीयूष पांडे का ब्लॉग: कोरोना के नाम खुला खत

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: March 28, 2020 16:35 IST2020-03-28T16:35:18+5:302020-03-28T16:35:18+5:30

हमसे बहुत भूल हुई कि हमने तुम्हें एक पिद्दी सा वायरस माना. लेकिन ऐसी बातों का कोई इतना भी बुरा मानता है भला ! होली के महीने में बुरा न मानने का रिवाज है. हमें पहली बार अहसास हो रहा है कि चीनी माल इतना जबर्दस्त होता है.

Piyush Pandey's blog: Open letter to Corona | पीयूष पांडे का ब्लॉग: कोरोना के नाम खुला खत

लोकमत फाइल फोटो

Highlightsकोरोना वायरस तुम्हारा इतना जलवा है कि आते ही ‘नोवेल’ अवॉर्ड मिल चुका है.कोरोना सर, तुम्हारे चक्कर में हमारे सालों साल पुराने मुहावरों का अर्थ गड्डमड्ड हो रहा है.

पीयूष पांडे

कोरोना जी,

हमसे बहुत भूल हुई कि हमने तुम्हें एक पिद्दी सा वायरस माना. लेकिन ऐसी बातों का कोई इतना भी बुरा मानता है भला ! होली के महीने में बुरा न मानने का रिवाज है. हमें पहली बार अहसास हो रहा है कि चीनी माल इतना जबर्दस्त होता है. वरना, होली पर लाई चीनी पिचकारी कभी दूसरी होली पर नहीं चली. दिवाली पर खरीदी चीनी झालरें कभी दूसरी दिवाली पर नहीं जलीं.

कोरोना सर, तुम्हारे चक्कर में हमारे सालों साल पुराने मुहावरों का अर्थ गड्डमड्ड हो रहा है. अभी तक हम कहते थे कि फलां आदमी हमारे पीछे हाथ धोकर पड़ गया यानी पीछा नहीं छोड़ रहा. लेकिन, अब तुम हमारे पीछे पड़े हो और घड़ी-घड़ी हाथ हम लोगों को धोने पड़ रहे हैं. डर ऐसा कि कई लोग दिन में इतनी बार हाथ धो रहे हैं, जितनी बार वो पहले पूरे हफ्ते में नहीं धोते थे. ‘गले लगना’ वाला मुहावरा तो जान लेने का अर्थ ले चुका है. ‘अतिथि देवो भव:’ का ‘अर्थ अतिथि दुश्मन भव:’ हो लिया है. दो हफ्ते पहले तक हम बच्चों को समझाते थे कि मोबाइल और इंटरनेट छोड़कर घर से बाहर जाया करो. अब हम समझा रहे हैं कि घर में चुपचाप बैठो और चाहे जितना मोबाइल देखो. जिस तरह वोटर नेताओं को गंभीरता से नहीं लेता, बच्चे हमें सीरियसली नहीं ले रहे.

कोरोनाजी, जिस तरह हिंदुस्तानी जेलों में नियम होते हुए भी दबंग कैदी बिना रोकटोक जेल में घूमता है, वैसे ही तुम बिना वीजा कई देशों में घूम रहे हो. दुनिया के शेयर बाजार चंद दिनों पहले तक हंस रहे थे, वो अब कोरोना-कोरोना करते हुए जार-जार रो रहे हैं. हम जानते हैं कि वायरस समाज में अब तुम्हें हीरो की तरह देखा जा रहा होगा. हीरो और विलेन सिर्फनजरिये का ही तो फर्क है कोरोना भाई.

तुम्हारा इतना जलवा है कि आते ही ‘नोवेल’ अवॉर्ड मिल चुका है. लेकिन अब बस करो. तुमसे लड़ाई के चक्कर में हम उन वायरस से लड़ना भूल जाएंगे, जो बरसों से हमारे समाज का रक्त चूस रहे हैं. गरीबी, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, सांप्रदायिकता जैसे सारे वायरस तुम्हारे आगे बौने पड़ गए हैं.

Web Title: Piyush Pandey's blog: Open letter to Corona

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