पीयूष पांडे का ब्लॉग: लॉकडाउन बनाम ‘राम राज्य’ की परिकल्पना

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: May 9, 2020 11:07 AM2020-05-09T11:07:52+5:302020-05-09T11:07:52+5:30

लॉकडाउन में घर में भी ‘राम राज्य’ है. जो बच्चे एक महीने पहले तक बर्गर-पिज्जा के बगैर मानते नहीं थे, आजकल लौकी-तौरई बिना चूं चपड़ के खा रहे हैं. पहले हर दसवें दिन फिल्म न दिखाने पर घरवाले धरने की ऐसे धमकी देते थे, जैसे वो दिल्ली के मुख्यमंत्री हों. पत्नी इसलिए खुश है कि पति के रूप में एक नए बर्तन मांजक को उसने तैयार किया है.

Piyush Pandey blog: Lockdown vs 'Ram Rajya' hypothesis | पीयूष पांडे का ब्लॉग: लॉकडाउन बनाम ‘राम राज्य’ की परिकल्पना

लॉकडाउन में दिल्ली स्थित इंडिया गेट। (फाइल फोटो)

इस देश में ‘राम राज्य’ की परिकल्पना करते-करते कई नेता स्वर्ग सिधार गए लेकिन ‘राम राज्य’ उसी तरह स्वप्न बना रहा, जिस तरह लेफ्ट पार्टियों के लिए अपना प्रधानमंत्री बनाना स्वप्न बना रहा है. ‘राम राज्य’ की इस परियोजना पर काम उसी तरह अटका रहा, जिस तरह सरकार बदलते ही पुरानी सरकार की परियोजनाओं का काम अटक जाता है. ‘राम राज्य’ का विज्ञापन भले कई सरकारों के राज में चला हो लेकिन ये सर्विस कभी मार्केट में नहीं आ पाई.

जिस तरह कभी-कभी कोई पुरानी डिब्बाबंद फिल्म दोबारा रिलीज होने पर सुपरहिट हो जाती है, उसी तरह लॉकडाउन में ऐसा लग रहा है कि ‘राम राज्य’ आ सकता है. आप देखिए कि जिस गंगा-यमुना की गंदगी साफ करते-करते कई अधिकारियों के घर रिश्वत से भर गए लेकिन गंगा-यमुना साफ नहीं हुईं, वो नदियां लॉकडाउन में चकाचक हो ली हैं.

दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद समेत देश के तमाम शहर अभी तक प्रदूषण की वजह से सुर्खियों में रहते थे, लेकिन अब वहां चुटकुला चल रहा है कि कहीं शुद्ध हवा न सह पाने के चलते लोगों के फेफड़े न बैठ जाएं. चंद दिनों पहले तक रात में चोर-उचक्के सड़कों पर खुलेआम घूमा करते थे, आजकल नीलगाय-हिरन वगैरह घूम रहे हैं.

‘राम राज्य’ में चोर और चोरी के लिए कोई जगह नहीं थी, तो वो ही हाल आज है. चोरों का पूरा मार्केट ऐसे ठप पड़ा है, जैसे अमेरिका की अर्थव्यवस्था ठप है. लोग भी ज्यादा लड़-झगड़ नहीं रहे. कोर्ट कह रहा है कि अपराध कम हो गया है. कोई टेंडर-वेंडर निकल नहीं रहा तो रिश्वत का बाजार ठंडा पड़ा है.

लॉकडाउन में घर में भी ‘राम राज्य’ है. जो बच्चे एक महीने पहले तक बर्गर-पिज्जा के बगैर मानते नहीं थे, आजकल लौकी-तौरई बिना चूं चपड़ के खा रहे हैं. पहले हर दसवें दिन फिल्म न दिखाने पर घरवाले धरने की ऐसे धमकी देते थे, जैसे वो दिल्ली के मुख्यमंत्री हों. पत्नी इसलिए खुश है कि पति के रूप में एक नए बर्तन मांजक को उसने तैयार किया है.

इस आधुनिक ‘राम राज्य’ में सिर्फ एक बाधा है. वो है नशेबाज. हालांकि, लॉकडाउन में कुछ शराबियों ने शराब त्याग उसी तरह चाय की राह पकड़ ली थी, जिस तरह टिकट न मिलने पर कई नेता समाजसेवा की राह पकड़ लेते हैं. लेकिन, कोरोना काल में राजस्व के लिए सरकार को सबसे पहले शराब बेचने का ख्याल आया और शराबियों ने एक-दूसरे की खोपड़ी पर चढ़कर शराब खरीदी. वैसे, नशा सिर्फ शराब में नहीं होता. लेकिन तमाम नशों में सबसे खतरनाक होता है सत्ता का नशा. उम्मीद कीजिए कि हमारे नेता इस नशे से दूर रहेंगे.

Web Title: Piyush Pandey blog: Lockdown vs 'Ram Rajya' hypothesis

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