पीयूष पांडे का ब्लॉग: कोरोना काल की अपनी-अपनी परेशानियां
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: April 18, 2020 08:31 AM2020-04-18T08:31:15+5:302020-04-18T08:31:15+5:30
प्रेमी परेशान है कि लॉकडाउन में प्रेमिका का चक्कर कहीं पड़ोस के उस लड़के के साथ न चल जाए, जो उसे लगातार सैनिटाइजर की आपूर्ति कर रहा है. हिंदुस्तान में प्रति आशिक कन्या का अनुपात पहले से कम है, और ऐसे में लॉकडाउन के चलते कहीं कुछ प्रेमियों का प्रेम छिन गया तो वे बेकाबू आशिक हो सकते हैं.
कोरोना काल में हर बंदा परेशान है. जिनके पेट भरे हैं, वो आराम से परेशान हैं. कई लोग दिन भर आराम करते-करते इतना थक जाते हैं कि जब कभी कुछ करने बैठते हैं तो थकान के चलते फिर आराम करने बैठ जाते हैं. अजीब-अजीब सी परेशानियां हैं. पत्नी पति से परेशान है कि दिन भर चाय की फरमाइश करता रहता है, टेलीविजन पर न्यूज देखता है और फिर कोरोना से जुड़ी भयंकर खबरों का खतरा बताकर डराता है.
जिस तरह सदन में बहुमत न होने पर इस्तीफा देना पड़ता है, उसी तरह खाना बनाने का हुनर न आने के चलते कई पति लड़ाई-झगड़े से इस्तीफा दे चुके हैं. वे पत्नी से परेशान हैं कि लॉकडाउन में बर्तन मंजवा डाले, जाले साफ करा दिए और पोंछे का दबाव बनाया जा रहा है. बच्चों को लगता है कि उन्हें मां-बाप जब तब न सिर्फ टोकते हैं, बल्कि घर से नहीं निकलते देते.
प्रेमी परेशान है कि लॉकडाउन में प्रेमिका का चक्कर कहीं पड़ोस के उस लड़के के साथ न चल जाए, जो उसे लगातार सैनिटाइजर की आपूर्ति कर रहा है. हिंदुस्तान में प्रति आशिक कन्या का अनुपात पहले से कम है, और ऐसे में लॉकडाउन के चलते कहीं कुछ प्रेमियों का प्रेम छिन गया तो वे बेकाबू आशिक हो सकते हैं.
कारोबारी परेशान हैं कि धंधा चौपट है. विपक्ष परेशान है कि कोई दूसरा मुद्दा ही नहीं, जिस पर सरकार को घेरा जाए. कई अनुभवी बयानवीर इसलिए परेशान हैं, क्योंकि उन्हें बयान देने का मौका नहीं मिल रहा. पहले वो एक बयान देते थे, और फिर दिन भर न्यूज चैनल वाले उस बयान की आत्मा निचोड़ लेते थे. कई चिरकुट नेता सिर्फ बयानबाजी कर कालांतर में राष्ट्रीय स्तर के नेता हुए हैं, इसलिए बयानवीर हर मौके पर बयान देते थे. लेकिन, कोरोना ने बयानबाजी की दुकान ठप कर रखी है.
कई एंकर परेशान हैं कि चीखने का रियाज कायदे से नहीं हो पा रहा, क्योंकि ज्यादातर बहस में डॉक्टर, पुलिसवाले और कोरोना संकट का सामना कर रहे लोग होते हैं. फिर, नेताओं के फालतू बयान नहीं हैं तो चिल्लाने में वो मजा भी नहीं आता. चैनल के संपादक परेशान हैं कि स्टॉक में कई भूत-प्रेत वाली एक्सक्लूसिव स्टोरी रखी थीं, लेकिन पिद्दी से कोरोना ने सब पुरानी कर दी.
मेरा मानना है कि भूत अगर होते हैं तो वो भी परेशान होंगे, क्योंकि बंदा घर से सब्जी लेने तो निकल नहीं रहा, पीपल के पेड़ के नीचे या किसी दूसरी भुतहा जगह क्या करने जाएगा? फिर, घर में बंद रहते हुए कई लोगों के बाल-दाढ़ी इतनी बढ़ गई हैं कि वो खुद भूत जैसे नजर आ रहे हैं. भूतों का ऐसे लोगों से आमना-सामना आइडेंटिटी क्राइसिस को बढ़ा सकता है. सरकार परेशान है कि ये कैसा विकट संकट है? अभी तक सरकारों के लिए बड़े संकट वो ही होते थे, जब विधायक-सांसद विद्रोह कर सरकार गिराने की कोशिश करें.
कोरोना संकट ने सबकी परेशानी बढ़ा दी है. इतनी परेशानियों के बीच शहरों में फंसे मजदूरों की परेशानी यकीकन दर्द पैदा करती है.