पेगासस स्पाईवेयर: हम अपना सुरक्षा तंत्र क्यों नहीं सुधारना चाहते? राजेश बादल का ब्लॉग

By राजेश बादल | Published: July 20, 2021 06:41 PM2021-07-20T18:41:02+5:302021-07-20T18:42:32+5:30

संचार मंत्री अश्विनी वैष्णव ने पेगासस सॉफ्टवेयर के जरिये भारतीयों की जासूसी करने संबंधी खबरों को सिरे से खारिज करते हुए कहा था कि संसद के मॉनसून सत्र से ठीक पहले लगाये गए ये आरोप भारतीय लोकतंत्र की छवि को धूमिल करने का प्रयास हैं.

Pegasus spyware why don't we want to improve our security system Rajesh Badal's blog | पेगासस स्पाईवेयर: हम अपना सुरक्षा तंत्र क्यों नहीं सुधारना चाहते? राजेश बादल का ब्लॉग

आज भी ताजा खुलासे के बाद हमारे अपने तंत्र पर सवाल उठ रहे हैं.

Highlightsलोकसभा में पेगासस जासूसी मामला छाया रहा. गृह मंत्री अमित शाह के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं. ‘जासूसी’ का विषय संसद में और उसके बाहर बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया है.

दो बरस पहले नवंबर महीने में पेगासस के जरिए भारत में जासूसी पर चिंताएं प्रकट की गई थीं. यानी ठीक उन्हीं दिनों हमें पता लग गया था, जब यह असंवैधानिक और आपराधिक कृत्य किया जा रहा था.

यही नहीं, संसद में यह मामला उठा था. राज्यसभा में 28 नवंबर 2019 को कांग्रेस ने इस पर सरकार से सफाई मांगी थी. तत्कालीन इलेक्ट्रॉनिकी तथा सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सदन में उत्तर दिया था. उस समय भी जासूसी की इन खबरों का आकार विकराल था और आज भी ताजा खुलासे के बाद हमारे अपने तंत्र पर सवाल उठ रहे हैं.

अंतर इतना है कि उस समय अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव नहीं हुए थे. इजराइली सॉफ्टवेयर पेगासस बनाने वाली कंपनी एनएसओ कहती है कि उक्त सॉफ्टवेयर सिर्फ लोकतांत्रिक मुल्कों को उनके राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए मुहैया कराया गया है. इसका मकसद सिर्फ अपराधियों, कानून तोड़ने वालों, उग्रवादी संगठनों तथा माफिया गिरोहों से निपटने में किया जाना है.

कंपनी के इस मासूम तर्क पर क्या कहा जाए. जिस दिन इस सॉफ्टवेयर का जन्म हुआ होगा, उस दिन से ही स्पष्ट है कि यह नकारात्मक हथियार है और हुकूमतें इसका दुरुपयोग विरोधियों से निपटने में करेंगी. समीकरण समझने हों तो कहा जा सकता है कि अमेरिका और इजराइल के रिश्ते छिपे हुए नहीं हैं. सूचनाएं उस दौर की हैं, जब डोनाल्ड ट्रम्प गद्दी पर विराजमान थे और हिंदुस्तान के बड़े प्रिय थे.

वाशिंगटन पोस्ट, गार्जियन तथा इस खुलासे में शामिल संस्थानों के वे कट्टर आलोचक रहे हैं. इन संस्थानों की उनसे कभी नहीं बनी. ट्रम्प अगले चुनाव के लिए अत्यंत गंभीर मुद्रा में नजर आते हैं तो जो बाइडेन को क्या करना चाहिए? मैं इसका यह अर्थ लगाने के लिए आजाद हूं कि ट्रम्प के प्रिय राष्ट्रों की सरकारें बदनाम और अलोकप्रिय हो जाएं और फिर अगले चुनाव तक डोनाल्ड ट्रम्प को सहायता नहीं दे सकें.

यह भी इस खुलासे का एक अपवित्र उद्देश्य हो सकता है. ऐसे में उस दौर की सूचनाएं उजागर करने का अर्थ यह है कि पेगासस जासूसी प्रसंग का अंतरराष्ट्रीय फलक बहुत विकराल है. भारत के नजरिए से यह खुलासा वाकई चिंता में डालने वाला है. यहां के अनगिनत लोगों की जिंदगी के राज फोन से उजागर होते हैं तो उसके लिए कौन जिम्मेदार है?

आम आदमी इजराइल के किसी जासूसी सॉफ्टवेयर का निशाना बन जाए तो नागरिकों  के पास मुकाबले के लिए कोई संसाधन और तकनीकी काबिलियत नहीं है. मान लीजिए अगर वह सक्षम भी हो तो इस अपराध से लड़ाई उसे क्यों लड़ना चाहिए. खास तौर पर उस हाल में जबकि उसने अपने बेहद ताकतवर हथियार यानी वोट के माध्यम से मौलिक अधिकार की रक्षा के लिए अपनी सरकार को ही अधिकृत कर दिया हो. गंभीर मसला यह नहीं है कि सरकार उस पत्रकार, राजनेता, विचारक या किसी आलोचक के हक की हिफाजत कर पाएगी या नहीं.

विपक्ष का आरोप है कि  सरकारी तंत्र भी इस जुर्म में शरीक है. यदि ऐसा है तो इसकी क्या गारंटी है कि जिस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल सरकारी तंत्र ने अपने आलोचकों पर शिकंजा कसने के लिए किया है, कल उस सॉफ्टवेयर का निशाना भारतीय सुरक्षा से जुड़ी संवेदनशील सूचनाओं को समंदर पार भारत के शत्रु देशों तक पहुंचाने में नहीं होगा.

एक प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री, सेनाप्रमुख और परमाणु कार्यक्रमों से जुड़े विशेषज्ञों की जानकारियां भी सुरक्षित नहीं रहेंगी. व्यक्ति के तौर पर एक संपादक अपने मौलिक अधिकारों का कुचला जाना एक बार बर्दाश्त कर सकता है, लेकिन जिस दिन देश कुचला जाएगा, उस दिन कोई हुकूमत भी नहीं बचेगी. कहने में  हिचक नहीं कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इन दिनों जो साजिशें चल रही हैं.

उनका मुकाबला करने के लिए भारत की तैयारी अभी अत्यंत कच्ची और कमजोर है. इस तरह की जासूसी को भारतीय समाज ने कभी भी मान्यता नहीं दी है. जिस सरकार या व्यक्ति ने ऐसा किया, उसे इस हरकत से क्षति पहुंची है. लाभ कुछ नहीं हुआ. भारतीय संविधान इसकी अनुमति नहीं देता कि चुनी हुई सरकार लोगों की जीवन शैली, आस्था, लोक व्यवहार, गुप्त क्रियाओं, धार्मिक स्वतंत्रता और सामाजिक उत्सवों की खुफिया निगरानी करे. यह निहायत जंगली, अभद्र, अशालीन और अमर्यादित आचरण है. भारतीय समाज इसे जायज नहीं मानेगा.

वैसे भारतीय कानून इस बात की इजाजत तो देता है कि वह किसी की जासूसी अथवा फोन की रिकॉर्डिग कर सकता है. यदि कोई व्यक्ति या संस्था ऐसे अपराधों में लिप्त है, जो भारतीय अखंडता-एकता को नुकसान पहुंचा सकता है तो उसे उजागर करने से कौन रोकना चाहेगा. यदि कोई आतंकवादी षड्यंत्र का भंडाफोड़ होता है तो उस पर किसे ऐतराज हो सकता है.

भारत के वित्तीय, सामाजिक और राजनीतिक ढांचे को कोई ताकत क्षतिग्रस्त करना चाहे तो उसके खिलाफ सारा देश अपनी सरकार का साथ देगा. लेकिन संदेह की सुई उस तंत्र की ओर इशारा कर रही हो, जो हमारे हित संरक्षण के लिए बनाया गया है तो फिर अंजाम की कल्पना की जा सकती है. इसके बावजूद भारत में जासूसी षड्यंत्र के पीछे के इरादों की जानकारी अवाम को पाने का अधिकार है.

Web Title: Pegasus spyware why don't we want to improve our security system Rajesh Badal's blog

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