सांसद जब पढ़ेंगे नहीं तो संसद में गंभीर चर्चा कैसे कर पाएंगे?

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: December 2, 2025 03:43 IST2025-12-02T03:42:32+5:302025-12-02T03:43:05+5:30

Parliament winter session: सवाल पैदा होता है कि इतने समृद्ध पुस्तकालय का इस्तेमाल ज्यादातर सांसद क्यों नहीं करते हैं?

Parliament winter session MPs not read how will they be able serious discussions in Parliament | सांसद जब पढ़ेंगे नहीं तो संसद में गंभीर चर्चा कैसे कर पाएंगे?

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Highlightsहमारे ज्यादातर सांसदों की रुचि पढ़ने-लिखने में नहीं है.साठ हजार से ज्यादा वीडियो और चौबीस हजार से ज्यादा ऑडियो फाइल्स हैं. हमारे सांसद सामान्य लोग नहीं हैं.

Parliament winter session: ताजातरीन खबर यह है कि हमारे 90 प्रतिशत सांसद, संसद के पुस्तकालय का इस्तेमाल नहीं करते बल्कि यूं कहें कि उधर झांकने भी नहीं जाते हैं. बहुत थोड़े से सांसद हैं जो पुस्तकालय का रुख करते हैं और इनकी संख्या सांसदों की कुल संख्या का मुश्किल से 10 प्रतिशत है. यदि हम पहली लोकसभा से लेकर मौजूदा लोकसभा में पहुंचने वाले सांसदों की शैक्षणिक योग्यता देखें तो बहुत बदलाव आया है. अब कम से कम 76 प्रतिशत सांसद स्नातक या उससे अधिक योग्यता वाले हैं. इस आधार पर यदि कल्पना की जाए तो संसद के पुस्तकालय में भीड़ बढ़नी चाहिए थी लेकिन पुस्तकालय में उपस्थिति के जो आंकड़े सामने आए हैं, वे विपरीत हैं. यानी हमारे ज्यादातर सांसदों की रुचि पढ़ने-लिखने में नहीं है.

उन्हें इस बात से शायद गर्व भी नहीं होता होगा कि हमारी संसद के पुस्तकालय में 11 लाख से ज्यादा दस्तावेज सहेज कर रखे गए हैं. 34500 से ज्यादा पुस्तकें हैं जिनकी संख्या हर साल बढ़ती जाती है क्योंकि यह मान कर चला जाता है कि सांसदों के लिए नई पुस्तकें भी खरीदी जानी चाहिए. डिजिटल फॉर्मेट की बात करें तो एक करोड़ बीस लाख से ज्यादा जर्नल्स का एक्सेस है.

साठ हजार से ज्यादा वीडियो और चौबीस हजार से ज्यादा ऑडियो फाइल्स हैं. तो सवाल पैदा होता है कि इतने समृद्ध पुस्तकालय का इस्तेमाल ज्यादातर सांसद क्यों नहीं करते हैं? सामान्य रूप से तो यही कहा जा सकता है कि हर ओर पढ़ने की प्रवृत्ति कम हो रही है तो केवल सांसदों को दोष क्यों दें? मगर बात केवल इतनी सी नहीं है. हमारे सांसद सामान्य लोग नहीं हैं.

वे सामान्य लोगों के नेतृत्वकर्ता हैं. पढ़ने से न केवल जानकारी प्राप्त होती है बल्कि किसी भी विषय के विश्लेषण की प्रवृत्ति बेहतर होती है. वैचारिक तीक्ष्णता बढ़ती है. सांसद यदि इन गुणों में पारंगत नहीं होंगे तो वे देश के विकास के बारे में विश्लेषणात्मक चिंतन कैसे कर पाएंगे? सांसदों को वैचारिक रूप से समृद्ध करने के लिए ही तो इतने शानदार पुस्तकालय की कल्पना की गई होगी और उसे निरंतर उन्नत भी किया गया. संसद का पुस्तकालय पहले बहुत महत्वपूर्ण माना जाता था. आप किसी भी पुराने नेता के बारे में पढ़ें,

वे अपना कुछ वक्त संसद के पुस्तकालय में जरूर बिताते थे. संसद की बहस में जानकारियों की समृद्धता परिलक्षित होती थी मगर अब परिस्थितियां बदल रही हैं. संसद में गहन-गंभीर चर्चा का अभाव होता जा रहा है. गंभीर चर्चा का स्थान शोर-शराबे ने ले लिया है. यह स्थिति निश्चित ही दुर्भाग्यपूर्ण है. सांसदों को बताया जाना चाहिए कि वे पढ़ेंगे नहीं तो देश को विकास के रास्ते पर कैसे ले जा पाएंगे?   

Web Title: Parliament winter session MPs not read how will they be able serious discussions in Parliament

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