पंकज चतुर्वेदी का ब्लॉग: देश में दम तोड़ रही हैं नदियां
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: November 22, 2019 16:26 IST2019-11-22T16:26:20+5:302019-11-22T16:26:20+5:30
आंकड़ों के आधार पर हम पानी के मामले में पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा समृद्ध हैं, लेकिन चिंता का विषय यह है कि पूरे पानी का कोई 85 फीसदी बारिश के तीन महीनों में समुद्र की ओर बह जाता है और नदियां सूखी रह जाती हैं.

पंकज चतुर्वेदी का ब्लॉग: देश में दम तोड़ रही हैं नदियां
पंकज चतुर्वेदी
सभी को सुरक्षित पानी न मिल पाने, देश की जल-क्षमता और नदियों के आंकड़ों को एकसाथ रखें तो समझ आ जाएगा कि कमी पानी की नहीं, प्रबंधन की है. यह आंकड़ा वैसे बड़ा लुभावना लगता है कि देश का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 32-80 लाख वर्ग किलोमीटर है. भारतीय नदियों के मार्ग से हर साल 1913-6 अरब घनमीटर पानी बहता है जो सारी दुनिया की कुल नदियों का 4-445 प्रतिशत है.
आंकड़ों के आधार पर हम पानी के मामले में पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा समृद्ध हैं, लेकिन चिंता का विषय यह है कि पूरे पानी का कोई 85 फीसदी बारिश के तीन महीनों में समुद्र की ओर बह जाता है और नदियां सूखी रह जाती हैं. बढ़ती गर्मी, घटती बरसात और जल संसाधनों की नैसर्गिकता से लगातार छेड़छाड़ का ही परिणाम है कि बिहार की 90 प्रतिशत नदियों में पानी नहीं बचा.
गत तीन दशक के दौरान राज्य की 250 नदियों के लुप्त हो जाने की बात सरकारी महकमे स्वीकार करते हैं. झारखंड के हालात कुछ अलग नहीं हैं, यहां भी 141 नदियों के गुम हो जाने की बात फाइलों में तो दर्ज हैं लेकिन उनकी चिंता किसी को नहीं. राज्य की राजधानी रांची में करमा नदी देखते ही देखते अतिक्रमण के कारण मर गई. हरमू और जुमार नदियों को नाला तो बना ही दिया है. नदियों के बहते पानी की जगह जब भूजल की सप्लाई बढ़ी तो उसके साथ ही वाटर प्यूरीफायर या बोतलबंद पानी का धंधा बढ़ गया.
कहने को पानी कायनात की सबसे निर्मल देन है और इसके संपर्क में आकर सबकुछ पवित्र हो जाता है. विडंबना है कि आधुनिक विकास की कीमत चुका रहे नैसर्गिक परिवेश में पानी पर सबसे ज्यादा विपरीत असर पड़ा है. जलजनित बीमारियों से भयभीत समाज पानी को निर्मल रखने के प्रयासों की जगह बाजार के फेर में फंस कर खुद को ठंडा सा महसूस कर रहा है. आज दिल्ली ही नहीं पूरे देश को साफ-निरापद पेयजल की जरूरत है. इस पर सियासत या अपने व्यापारिक हित साधने से पहले जान लें कि भारत की परंपरा तो प्याऊ, कुएं बावड़ी और तालाब खुदवाने की रही है. हम पानी को स्नेत से शुरू करने के उपाय करने की जगह उससे कई लाख गुना महंगा बोतलबंद पानी को बढ़ावा दे रहे हैं।