पंकज चतुर्वेदी का ब्लॉग: खेतों की तरफ बढ़ता मरुस्थल

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: February 7, 2020 07:09 AM2020-02-07T07:09:03+5:302020-02-07T07:10:14+5:30

भारत की कुल 328.73 मिलियन हेक्टेयर जमीन में से 105़ 19 मिलियन हेक्टेयर जमीन बंजर हो चुकी है, जबकि 82.18 मिलियन हेक्टेयर जमीन रेगिस्तान में बदल रही है.

Pankaj Chaturvedi blog: Desert rising towards fields | पंकज चतुर्वेदी का ब्लॉग: खेतों की तरफ बढ़ता मरुस्थल

तस्वीर का इस्तेमाल केवल प्रतीकात्मक तौर पर किया गया है। (फाइल फोटो)

एक तरफ परिवेश में कार्बन की मात्र का बढ़ना, साथ में ओजोन परत में हुए छेद में दिनों-दिन विस्तार से उपजे पर्यावरणीय संकट का कुप्रभाव लगातार जलवायु परिवर्तन के रूप में तो सामने आ ही रहा है, जंगलों की कटाई व कुछ अन्य कारकों के चलते दुनिया में तेजी से पांव फैला रहे रेगिस्तान का खतरा धरती पर जीवन की उपस्थिति को दिनोंदिन कमजोर करता जा रहा है.

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की रपट कहती है कि दुनिया के कोई 100 देशों में उपजाऊ  या हरियाली वाली जमीन रेत के ढेर से ढक रही है और इसका असर एक अरब लोगों पर पड़ रहा है. भारत में रेगिस्तान के विस्तार को भूजल के मनमाने दुरुपयोग ने पंख दे दिए हैं.

इसरो का एक शोध बताता है कि थार रेगिस्तान अब राजस्थान से बाहर निकल कर कई राज्यों में जड़ जमा रहा है. हमारे 32 प्रतिशत भूभाग की उर्वर क्षमता कम हो रही है, जिसमें से महज 24 फीसदी ही थार के इर्द-गिर्द के हैं.

सन 1996 में थार का क्षेत्रफल एक लाख 96 हजार 150 वर्ग किमी था जो कि आज दो लाख आठ हजार 110 वर्ग किमी हो गया है.

भारत की कुल 328.73 मिलियन हेक्टेयर जमीन में से 105़ 19 मिलियन हेक्टेयर जमीन बंजर हो चुकी है, जबकि 82.18 मिलियन हेक्टेयर जमीन रेगिस्तान में बदल रही है.

यह हमारे लिए चिंता की बात है कि देश के एक-चौथाई हिस्से पर आने वाले सौ साल में मरुस्थल बनने का खतरा आसन्न है. हमारे यहां सबसे ज्यादा रेगिस्तान राजस्थान में है, कोई 23 मिलियन हेक्टेयर.

गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और जम्मू-कश्मीर की 13 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर रेगिस्तान है तो अब ओडिशा व आंध्र प्रदेश में रेतीली जमीन का विस्तार देखा जा रहा है.

अंधाधुंध सिंचाई व जम कर फसल लेने के दुष्परिणाम की बानगी पंजाब है, जहां दो लाख हेक्टेयर जमीन देखते ही देखते बंजर हो गई.

भारत के संदर्भ में यह स्पष्ट है कि हम वैश्विक प्रदूषण व जलवायु परिवर्तन के शिकार तो हो ही रहे हैं, साथ ही जमीन की बेतहाशा जुताई, मवेशियों द्वारा हरियाली की अति चराई, जंगलों का विनाश और सिंचाई की दोषपूर्ण परियोजनाएं भी इसका कारण हैं.

बारीकी से देखें तो इन कारकों का मूल बढ़ती आबादी है. हमारा देश आबादी नियंत्रण में तो सफल हो रहा है, लेकिन मौजूदा आबादी का पेट भरने के लिए हमारे खेत व मवेशी कम पड़ रहे हैं.

Web Title: Pankaj Chaturvedi blog: Desert rising towards fields

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