वप्पाला बालाचंद्रन ब्लॉग: इजराइल के साथ हमारे संबंधों का बहुत पुराना है इतिहास

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: September 12, 2023 12:46 PM2023-09-12T12:46:55+5:302023-09-12T12:47:51+5:30

दोनों देश प्राचीन काल से ही भारत-इजराइल सांस्कृतिक संबंधों के बारे में जानते थे विशेष रूप से 68 ईसवी के बाद से जब हजारों निर्वासित यहूदी केरल में कोडुंगल्लूर, जिसे तब मुजरिस कहा जाता था, पहुंचे थे।

Our relations with Israel have a very old history | वप्पाला बालाचंद्रन ब्लॉग: इजराइल के साथ हमारे संबंधों का बहुत पुराना है इतिहास

फोटो क्रेडिट- फाइल फोटो

वर्तमान में इजराइल के साथ हमारे संबंध सभी क्षेत्रों में अच्छे हैं, चाहे वह राजनयिक, वाणिज्यिक, तकनीकी क्षेत्र हो या सुरक्षा का क्षेत्र। वर्ष 1947 से 1992 के बीच ऐसा नहीं था जब तत्कालीन भू-राजनीतिक मजबूरियों ने हमें अपने संबंधों को केवल कांसुलर और व्यापार तक सीमित कर दिया था। 1992 में हमने इसे पूर्ण राजनयिक दर्जे तक बढ़ाया।

हालांकि इसका मतलब यह नहीं है कि हमने उस अवधि के दौरान इजराइल के साथ अपने मूल संबंधों की उपेक्षा की थी। फर्क सिर्फ इतना है कि तब यह खुफिया चैनलों के माध्यम से होता था।

दोनों देश प्राचीन काल से ही भारत-इजराइल सांस्कृतिक संबंधों के बारे में जानते थे विशेष रूप से 68 ईसवी के बाद से जब हजारों निर्वासित यहूदी केरल में कोडुंगल्लूर, जिसे तब मुजरिस कहा जाता था, पहुंचे थे।

1992 तक, हमारे संबंध मुख्यतः सुरक्षा-उन्मुख थे; फिर भी कभी-कभी इसका विस्तार कूटनीति और रक्षा क्षेत्र तक भी हुआ। 1980 के दशक में हमारे संबंधों को अधिक महत्व मिला जब हमें पश्चिमी देशों ने उच्च प्रौद्योगिकी सुरक्षा उपकरणों को देने से इंकार कर दिया, शायद हमारी स्वतंत्र विदेश नीति के कारण।

1984 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भी यह स्थिति बनी रही। हमें अपनी नई आतंकवाद-रोधी इकाइयों को सुसज्जित करना था, जिन्हें जल्दबाजी में तैयार किया गया था। मुझे याद है कि कैसे विस्फोटकों से लदे रिमोट नियंत्रित खिलौना विमानों का मुकाबला करने के लिए प्रौद्योगिकी देने के हमारे अनुरोध को पश्चिमी एजेंसियों ने खुफिया रिपोर्टों के बाद भी नजरअंदाज कर दिया था।

बिना राजनयिक संबंध के इजराइल ने इन सभी क्षेत्रों में काफी मदद की। 1992 तक उस रिश्ते में शामिल हममें से बहुत कम लोग अब जीवित हैं।

उस दौर के मोसाद के दो वरिष्ठ अधिकारियों ने काफी मदद की. पहले नहूम अदमोनी थे जो 1982 से 1989 के बीच मोसाद के प्रमुख थे। उपनिदेशक के रूप में अदमोनी ने 1960 के दशक में रॉ की स्थापना के बाद दिवंगत आर.एन. काव से मिलने के लिए भारत का दौरा किया था। मोसाद प्रमुख के रूप में उन्होंने 1988 में फिर से दौरा किया।

दूसरे थे शबताई शावित, जो 1989 से 1996 के दौरान मोसाद प्रमुख थे। 1989 में जब मैं उनसे मिला था तब शावित ने पदभार संभाला ही था। दुर्भाग्य से, 5 सितंबर 2023 को उनका निधन हो गया।

शावित का कार्यकाल विशेष रूप से तनावपूर्ण था क्योंकि उन्हें इजराइल और दुनिया को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण घटनाक्रमों का सामना करना पड़ा।

सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने अपना अनुभव ‘हेड ऑफ मोसाद : इन परस्यूट ऑफ ए सेफ एंड सिक्योर इजराइल’ में लिखा था, जो मूल रूप से हिब्रू में था और बाद में 2020 में अंग्रेजी में आया। इसमें उन्होंने ईरान में अपने गुप्त काम का विवरण दिया था। 

Web Title: Our relations with Israel have a very old history

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