स्कूली इमारतें ही नहीं, शिक्षा का ढांचा भी जर्जर

By विश्वनाथ सचदेव | Updated: August 2, 2025 07:09 IST2025-08-02T07:08:18+5:302025-08-02T07:09:32+5:30

सरकारी स्कूलों की जगह निजी स्कूलों को बढ़ावा देने की नीति को बदलना होगा, शिक्षा को प्राथमिकता देनी होगी.

Not only school buildings but structure of education is also dilapidated | स्कूली इमारतें ही नहीं, शिक्षा का ढांचा भी जर्जर

स्कूली इमारतें ही नहीं, शिक्षा का ढांचा भी जर्जर

देश में बहुत कुछ हो रहा है- कहीं पुल ढह रहे हैं, कहीं सड़कें नदियां बनी हुई हैं, कहीं विमान दुर्घटनाएं हो रही हैं, संसद में और सड़कों पर प्रदर्शन हो रहे हैं. सरकारी एजेंसियां छापेमारी में लगी हैं. मतदाता सूचियों को खंगाला जा रहा है. लाखों नाम जुड़ रहे हैं, लाखों काटे जा रहे हैं... इस सारे शोर-शराबे में हाल ही में राजस्थान के झालावाड़ में एक स्कूल की छत ढह जाने से सात बच्चों की जान चली गई.

जो छत गिरी, दो साल पहले ही लगभग तीन लाख रु. उसकी मरम्मत पर खर्च होने का दावा किया गया था! देश में नई शिक्षा नीति को लागू किया जा रहा है, उसे लेकर विवाद भी उठ रहे हैं. पर यह दुर्भाग्य ही है कि प्राथमिक शिक्षा की स्थिति हमारी वरीयता में कहीं नहीं दिखाई दे रही. शिक्षा का माध्यम क्या हो, कितनी भाषाएं देश के बच्चे सीख रहे हैं जैसे कुछ सवाल कहीं उठ भी रहे हैं तो वह भी अपने-अपने राजनीतिक हितों-स्वार्थों की खातिर ही.  

सवाल किसी झालावाड़ के सरकारी स्कूल की छत गिरने का ही नहीं है, देश के हर हिस्से में ऐसे स्कूल दिख जाएंगे जहां बच्चे दीवारें ढहने या छत गिरने के खतरे को झेलते हुए अपना भविष्य बनाने की शुरुआत कर रहे हैं. प्राप्त आंकड़ों के अनुसार आज देश में 74 हजार से अधिक स्कूल जर्जर अवस्था में हैं. आंकड़े यह भी बता रहे हैं कि देश में सरकारी स्कूल लगातार कम हो रहे हैं. अकेले मध्य प्रदेश में पिछले एक दशक में लगभग नब्बे हजार सरकारी स्कूल बंद हुए हैं. पर शिक्षा को लेकर जिस तरह की अराजकता  हमारे देश में पसरी है वह चिंताजनक है.

2011 की जनगणना के अनुसार भारत में साक्षरता की दर लगभग 74 प्रतिशत थी. पिछले दस-पंद्रह सालों में यह प्रतिशत निश्चित रूप से बढ़ा होगा. पर सवाल यह है कि यह साक्षरता है कैसी? इस संदर्भ में कार्यरत संस्था ‘असर’ की सन्‌ 2024 की रिपोर्ट के अनुसार कक्षा तीन में पढ़ने वाले 23.4 प्रतिशत छात्र कक्षा दो का पाठ नहीं पढ़ पा रहे. इस स्थिति को क्या नाम दिया जाए?

एक बात और. बताया जा रहा है कि देश के हजारों  स्कूल आज झालावाड़ जैसे स्कूल की तरह जर्जर अवस्था में हैं. किसी भी राजनीतिक दल ने इस बात पर चिंता व्यक्त क्यों नहीं की? सुना है, सात बच्चों की मौत की घटना के लिए स्कूल के चार अध्यापकों को निलंबित कर दिया गया है. यह कहां का न्याय है? निलंबित तो किसी सरपंच या उच्च अधिकारी को होना चाहिए अथवा उन्हें, जिन्हें हमने देश चलाने की जिम्मेदारी सौंपी है.

दो साल पहले ही उस स्कूल की छत की मरम्मत हुई थी, फिर छत ढही कैसे? यहां सवाल किसी स्कूल की छत ढहने का नहीं है, शिक्षा का सारा ढांचा ही जर्जर है. इस ढांचे की मरम्मत की आवश्यकता है. सरकारी स्कूलों की जगह निजी स्कूलों को बढ़ावा देने की नीति को बदलना होगा, शिक्षा को प्राथमिकता देनी होगी. कुछ अध्यापकों का निलंबन या मिड डे मील में मात्र चावल और नमक मिलने की शिकायत करने वाले किसी पत्रकार को ‘अपराधी’ बनाने से बात बनेगी नहीं. बात बुनियादी ईमानदारी की है. कब दिखेगी यह ईमानदारी?

Web Title: Not only school buildings but structure of education is also dilapidated

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