एन. के. सिंह का ब्लॉगः संविधान रक्षा में दीदी बनाम मोदी का टकराव
By एनके सिंह | Updated: February 10, 2019 12:06 IST2019-02-10T12:06:25+5:302019-02-10T12:06:25+5:30
सीबीआई सुप्रीम कोर्ट की नजरों में सन 2013 में ‘पिंजरे में बंद तोता’ था तो साल भर में ही गीता का ‘स्थितप्रज्ञ मुनि’ नहीं हो गया होगा.

एन. के. सिंह का ब्लॉगः संविधान रक्षा में दीदी बनाम मोदी का टकराव
सन 2014 के मई माह के पहले ही लगभग यह तय हो गया था कि देश में निजाम बदलेगा और नरेंद्र मोदी नए प्रधानमंत्नी होंगे. मतगणना के ठीक एक हफ्ते पहले यानी 9 मई को सुप्रीम कोर्ट हजारों करोड़ रुपए के घोटाले वाले शारदा चिट फंड मामले की जांच राज्य की एसआईटी से लेकर केंद्रीय जांच एजेंसी, सीबीआई को देने का आदेश देता है. पूरे प.बंगाल के शासन-तंत्न में भूकंप सा फैल जाता है.
मोदी 13 साल तक एकछत्न राज करने वाले मुख्यमंत्नी रहे थे और प्रतिकार और विरोधियों को राजनीतिक श्मशान तक ले जाने में सूबे की ‘हवाई चप्पलधारी’ मुख्यमंत्नी ममता बनर्जी को अपने से बड़ा प्रतिद्वंद्वी मिला था.
जाहिर है अगर सीबीआई सुप्रीम कोर्ट की नजरों में सन 2013 में ‘पिंजरे में बंद तोता’ था तो साल भर में ही गीता का ‘स्थितप्रज्ञ मुनि’ नहीं हो गया होगा.
यहां तक कि यह आदेश देते हुए भी अदालत ने कहा था ‘‘यह सच है कि इस प्रमुख जांच एजेंसी सीबीआई की स्वतंत्नता के बारे में भी बहुत कुछ कहा जा सकता है लेकिन जब तक इसकी विश्वसनीयता को प्रभावित करने के लिए इसके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं मिलते, यह प्रमुख जांच संस्था रहेगी.’’ बहरहाल ममता सरकार और उसके तमाम मंत्नी लीपापोती में इस शिद्दत से लगे कि स्थानीय एसआईटी द्वारा महत्वपूर्ण प्रारंभिक, मूल और आधारभूत साक्ष्य जैसे लैपटॉप और मोबाइल फोन भी आरोपियों को वापस कर दिए गए थे. इसी पुलिस अधिकारी राजीव कुमार के अधीन एसआईटी उस समय भी काम कर रही थी. लिहाजा सीबीआई को केस हाथ में लेने के पहले ही मालूम था कि राज्य पुलिस से सहयोग की अपेक्षा बालू से तेल निकालने जैसा होगा. और हुआ भी यही. हालांकि सन 2014 में यह केस सीबीआई को सौंप दिया गया था, राजीव कुमार ने हीला-हवाला करते हुए चार साल बाद मात्न कुछ कॉल डिटेल रिकॉर्ड (सीडीआर) सीबीआई को दिए. जो सीडीआर दिए भी, उनमें ‘किसने किसको कॉल किया’ गायब था.
लेकिन देश की सबसे मकबूल जांच एजेंसी को राज्य पुलिस के ये सब हथकंडे पहले से पता थे लिहाजा उसने पैंतरा बदला और सीधे मोबाइल सेवा देने वाली कंपनियों पर शिकंजा कसा. जाहिर है देश भर में सेवा देने वाली ये कंपनियां सीबीआई से पंगा नहीं ले सकती थीं लिहाजा तमाम सत्ताधारी नेताओं के मोबाइल के मूल सीडीआर सीबीआई के हाथ आ गए. इस मूल सीडीआर में प. बंगाल और बगल के असम सहित कई राज्यों के अनेक नेताओं द्वारा या उनको कम से कम तीन चिट फंड या संदिग्ध कंपनियों के लोगों द्वारा किए गए कॉल रिकॉर्ड थे.
इस बीच गवाहों के बयान से पता चला कि स्थानीय पुलिस और राज्य की एसआईटी पुलिस अधिकारी राजीव कुमार और राजनीतिक आकाओं के इशारे पर पूरे साक्ष्यों को मिटाने का काम कर रही है. इसी दौरान यह भी पता चला कि एक और ऐसी ही फर्जी कंपनी रोज वैली ने जनता के हजारों करोड़ रुपए मार लिए हैं और सत्ताधारी दल के लोगों को ही नहीं दूसरे राज्य में भी नेताओं को माहवारी देकर बचने की कोशिश कर रही है. सीबीआई से एसआईटी ने यह बात भी छुपाई कि रोज वैली के खिलाफ कोलकाता के दुर्गापुर थाने में एक मुकदमा दर्ज है. इस तथ्य की जानकारी न होने के कारण सीबीआई को मजबूरन इस कंपनी के खिलाफ एक मुकदमा ओडिशा में लिखवाना पड़ा.
अब राजनीतिक शतरंज की बिसात बिछ चुकी थी. केंद्र में शासन कर रहे लोगों को भी पता चल गया था कि विपक्ष और ममता के कौन से करीबी नेता फंसने जा रहे हैं. प.बंगाल और असम में अपना विस्तार कर रहे इस राष्ट्रीय दल के रणनीतिकारों ने करीब डेढ़ साल की मेहनत के बाद असम के एक कद्दावर नेता को ‘तोड़’ लिया. इस नेता का नाम भी उस लाल -डायरी में था जिसका जिक्र अपने बयान में कंपनी के मालिकों ने किया था. ममता के दाहिने हाथ माने जाने वाले एक व्यक्ति भी नाम हटाने की शर्त पर इस राष्ट्रीय दल के साथ हो गए. असम में सरकार बन गई. बहरहाल आज सीबीआई के किसी भी रिकॉर्ड में इन दोनों नेताओं के जो इस राष्ट्रीय दल के साथ हो गए हैं, नाम नहीं हैं. यानी रिवॉर्ड मिला.
लिहाजा ममता भी ‘संविधान की रक्षा’ के लिए लड़ रही हैं, सारा विपक्ष भी इसी संविधान की रक्षा में लगा हुआ है और मोदी सरकार ने भी अपने अटॉर्नी-जनरल के मार्फत सुप्रीम कोर्ट को बताया कि ममता बनर्जी संविधान की धज्जियां उड़ा रही हैं और केंद्र सरकार संविधान की रक्षा हर कीमत पर करेगी. उधर सुप्रीम कोर्ट भी हाल के अपने दो फैसलों में ‘संवैधानिक नैतिकता’ के सिद्धांत से बंधा होने की बात कह चुका है.
किस पर भरोसा करें. प.बंगाल और असम सहित कई राज्यों के ठगे गए एक करोड़ भोले लोग करीब आठ साल से अपना पैसा मांग रहे हैं उसी संविधान की दुहाई देकर. हमारा जन-प्रतिनिधि सरकार बनाता है हमारे भरोसे को जीत कर (क्योंकि सब एक से हैं तो उन्हीं में से एक को चुनना होता है). उस ठगे हुए भोले व्यक्ति को नहीं मालूम होता कि उसी के ठगे गए पैसे को इस्तेमाल करके भरोसा पैदा किया जाता है राजनीतिक वर्ग द्वारा. फिर वह वर्ग सत्ता में आने के बाद किसी चिट फंड के मालिक को पकड़ता है और फिर उसे बचाने के लिए सौदा करता है या पकड़वाने के लिए ब्लैकमेल करता है.