निरंकार सिंह का ब्लॉग: अंतरिक्ष में जीवन की नई संभावनाएं
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: August 13, 2019 09:59 AM2019-08-13T09:59:59+5:302019-08-13T09:59:59+5:30
जियोफिजिकल रिसर्च जर्नल में प्रकाशित हुए नए अध्ययन के अनुसार, बर्फीले ग्रहों की भूमध्य रेखाओं के पास के क्षेत्रों में रहने योग्य तापमान भी मौजूद हो सकता है. कनाडा के टोरंटो यूनिवर्सिटी में खगोल और भौतिक विज्ञानी एडिव पैराडाइस ने बताया कि हमारी खोज में कुछ ऐसे ग्रह मिले हैं जो बर्फीले हैं.
जीवन के लिए सबसे अनुकूल ग्रह हमारी पृथ्वी है. वैज्ञानिक लगातार अध्ययन कर अन्य ग्रहों पर भी जीवन की संभावनाएं तलाश रहे हैं. अब एक नए अध्ययन में दावा किया गया है कि पृथ्वी के आकार वाले बर्फीले ग्रहों पर भी कुछ क्षेत्र रहने योग्य हो सकते हैं.
अब तक वैज्ञानिक यह सोचते रहे हैं कि पृथ्वी जैसे आकार वाले जमे हुए ग्रहों पर जीवन मुमकिन ही नहीं हो सकता है क्योंकि इन ग्रहों पर मौजूद महासागर जमे हुए हैं और अत्यधिक ठंड जीवन की संभावनाओं को खत्म कर देती है. लेकिन नया अध्ययन हमारी उस सोच को चुनौती देता है जिसमें हमें यह लगता है कि अत्यधिक ठंडे और गर्म ग्रहों में जीवन संभव ही नहीं हो सकता.
जियोफिजिकल रिसर्च जर्नल में प्रकाशित हुए नए अध्ययन के अनुसार, बर्फीले ग्रहों की भूमध्य रेखाओं के पास के क्षेत्रों में रहने योग्य तापमान भी मौजूद हो सकता है. कनाडा के टोरंटो यूनिवर्सिटी में खगोल और भौतिक विज्ञानी एडिव पैराडाइस ने बताया कि हमारी खोज में कुछ ऐसे ग्रह मिले हैं जो बर्फीले हैं. परंपरागत रूप से इनको रहने योग्य नहीं माना जा सकता है, लेकिन नया अध्ययन हमें यह सुझाव देता है कि शायद वे ग्रह रहने योग्य हो सकते हैं. शोधकर्ताओं ने बताया कि ये रहने योग्य क्षेत्र एक तारे की विशिष्ट दूरी से प्रभावित होते हैं, जिसकी वजह से वहां का तापमान सामान्य और पानी तरल अवस्था में मौजूद हो सकता है.
शोधकर्ताओं ने बताया कि हमारी पृथ्वी भी दो से तीन बार हिम युग (आइस एज) से गुजरी, लेकिन फिर भी यहां जीवन बच गया. हिम युग में भी सूक्ष्म जीव बचे रहे. अध्ययन के प्रमुख लेखक पैराडाइस ने बताया कि पृथ्वी अपने हिमयुग के दौरान भी रहने योग्य थी. यहां जीवन हिमयुग से पहले पनपा था.
यह हिमयुग और उसके बाद भी बरकरार रहा. वैज्ञानिकों ने बर्फीले ग्रहों में रहने योग्य कारणों का अध्ययन करने के लिए कम्प्यूटर प्रोग्राम का सहारा लिया, जिसमें सूर्य की रोशनी की मौजूदगी और क्षेत्रों के आकार के आधार पर मॉडल बनाए गए. सबसे खास चीज जिस पर वैज्ञानिकों ने ध्यान दिया, वह कार्बन डाईआक्साइड थी. क्योंकि कार्बन डाईआक्साइड की वजह से ही ग्रहों में गर्मी रहती है और जलवायु परिवर्तन भी होता है.
इसके बिना ग्रहों के महासागर जम जाते हैं, वे बेजान हो जाते हैं. जब वायुमंडलीय कार्बन डाईआक्साइड का स्तर कम हो जाता है तो ग्रह स्नोबॉल यानी बर्फीले हो जाते हैं. लेकिन जब इन ग्रहों पर सूर्य का प्रकाश पड़ता है तो इनकी भूमध्य रेखाओं के आसपास के क्षेत्रों में बर्फ के पानी बनने की संभावना प्रबल हो जाती है.