डॉ. शिवाकांत बाजपेयी का ब्लॉग: पहाड़ों में पर्यटन को बढ़ावा देने की नई पहल
By डॉ शिवाकान्त बाजपेयी | Published: September 7, 2019 11:20 AM2019-09-07T11:20:03+5:302019-09-07T11:20:03+5:30
पहाड़ी पर्यटन एवं ट्रैकिंग प्रेमियों तथा दुनिया भर के पर्वतारोहियों के लिए इसमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण नाम कंचनजंघा का है जो दुनिया की तीसरी सबसे ऊंची चोटी है. निश्चित रूप से पर्यटन मंत्नालय ने यह फैसला देश में विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए ही किया है.
पिछले माह लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्नी के भाषण में घरेलू पर्यटन को बढ़ावा देने की बात जब से सुनने में आई है, तब से पर्यटन के क्षेत्न में एक अलग ढंग की सक्रियता और उत्सुकता देखने को मिल रही है. सक्रिय तो पर्यटन एवं संस्कृति मंत्नालय भी हो गया है और उत्सुकता पर्यटन के क्षेत्न में कार्यरत कर्मचारियों, एजेंसियों के साथ-साथ पहाड़ों में यायावरी करने वालों में भी बढ़ गई है, क्योंकि पहाड़ों पर पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार ने हाल ही में हिमालय की 100 से अधिक चोटियों पर पर्वतारोहण की स्वीकृति प्रदान कर दी है. इसके पहले इन चोटियों पर जाने के लिए गृह मंत्नालय और रक्षा मंत्नालय से अनुमति प्राप्त करना आवश्यक होता था क्योंकि ये पर्वत चोटियां हिमाचल, सिक्किम, उत्तराखंड जैसे सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण एवं संवेदनशील राज्यों में स्थित हैं. इनमें जम्मू-कश्मीर की पहाड़ियां भी हैं.
पहाड़ी पर्यटन एवं ट्रैकिंग प्रेमियों तथा दुनिया भर के पर्वतारोहियों के लिए इसमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण नाम कंचनजंघा का है जो दुनिया की तीसरी सबसे ऊंची चोटी है. निश्चित रूप से पर्यटन मंत्नालय ने यह फैसला देश में विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए ही किया है. वैसे भी एवरेस्ट पर पर्वतारोहियों की बढ़ती संख्या के चलते नेपाल सरकार ने अनेक प्रतिबंध लगाने शुरू कर दिए हैं इसलिए पर्वतारोहियों को एक अन्य विकल्प भी मिल जाएगा.
जल, जंगल, जमीन और पहाड़ों से समृद्ध भारत के अनेक क्षेत्न पर्यटन की दृष्टि से आज भी अनजान और अछूते हैं इसीलिए सरकार की नजर प्राकृतिक सुषमा से संपन्न पहाड़ों पर पड़ी है. आधुनिक दुनिया से लगभग उपेक्षित, कटे रहने वाले इन क्षेत्नों के भीतरी इलाकों में तो आज भी मूलभूत सुविधाओं का अभाव है, किंतु सरकार के इस कदम से इन आंतरिक क्षेत्नों में भी बुनियादी सुविधाओं के साथ-साथ प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रोजगार सृजन तथा विकास की उम्मीद की जा सकती है. सरकार द्वारा नेक-नीयत से उठाए जा रहे इस कदम में पर्यावरण संतुलन, स्थानीय रीति-रिवाजों और परंपराओं को अक्षुण्ण रखने की चुनौती भी होगी.
यहां यह भी ध्यान देने की बात है उत्तरपूर्वी राज्यों विशेषकर तिब्बत का जनजातीय एवं बौद्ध समुदाय पहाड़ों को पवित्न तथा अपने देवताओं का निवास स्थान मानता है. इसमें भी कंचनजंघा से तो सिक्किम के लोगों का भावनात्मक लगाव है और प्रतिवर्ष वे स्थानीय देवता कंचनजंघा को समर्पित त्यौहार पंग ल्हाबसोल मनाते हैं. केंद्र सरकार की इस पहल से ये लोग असहज महसूस कर रहे हैं जिसके चलते राज्य सरकार ने भी अपनी आपत्ति दर्ज कराकर इस पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है.
इन सबके बावजूद उम्मीद है कि भारत में रोमांच और कौतूहल से भरपूर पहाड़ी पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से की जा रही इस पहल का स्वागत पर्यटकों के साथ-साथ स्थानीय लोग भी करेंगे, क्योंकि अंतत: फायदा उन्हीं को होना है.