मोदी-शाह की अगुवाई में हिन्दी की नई वैश्विक पहचान, अकारण हो रहा हिन्दी विरोध
By विवेकानंद शांडिल | Published: December 30, 2023 09:52 PM2023-12-30T21:52:14+5:302023-12-30T21:52:14+5:30
हिन्दी के विरोधी यह समझें कि हिन्दी की प्रतिस्पर्धा किसी भारतीय भाषा से नहीं है और न ही इसे किसी पर थोपे जाने का प्रयास है। यदि हिन्दी ने भारत में अपने संपूर्णता को हासिल कर लिया, तो वह क्षण सही मायनों में हमारे सभी स्थानीय भाषाओं के उदय का शुभारंभ होगा।
हिन्दी भाषा को लेकर देश में इन दिनों हलचल काफ़ी बढ़ी हुई है। इसके कई कारण हैं। जैसे कि कुछ समय पहले द्रमुक नेता दयानिधि मारन ने हिन्दी को लेकर एक बेहद ही आपत्तिजनक बयान देते हुए कहा कि बिहार और उत्तर प्रदेश के हिन्दी भाषी लोग तमिलनाडु आकर शौचालय साफ़ करते हैं।
दयानिधि मारन का यह बयान न केवल बेहतर आजीविका की तलाश में दूसरे राज्यों की ओर पलायन करने वाले उत्तर प्रदेश और बिहार के मेहनतकश श्रमिकों के सम्मान और प्रतिष्ठा पर चोट है, बल्कि इससे सभी भारतीय भाषा प्रेमियों को एक गहरा आघात हुआ है। इस प्रकार की ओछी बयानबाज़ी के लिए दयानिधि मारन को पूरे देश की जनता से क्षमा माँगनी चाहिए।
वैसे तो यह स्वाभाविक है कि दयानिधि मारन का यह बयान पूरी तरह से एक निजी राजनीतिक स्वार्थ को साधन के लिए है, लेकिन इस प्रकार की बयानबाज़ी से पूरे भारत की एकता और अखंडता को एक बड़ा नुकसान पहुँच सकता है। इतिहास इसका गवाह है।
इसके अलावा, यहाँ मैं सांसद में हुए एक घटनाक्रम के बारे में भी विशेष रूप से रेखांकित करना चाहूँगा। दरअसल, संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान केंद्रीय आवास एवं शहरी मामले के मंत्री हरदीप पुरी से किसी सांसद ने हिन्दी में एक सवाल पूछा था। और, हरदीप पुरी उसका उत्तर अंग्रेज़ी में देना चाह रहे थे।
लेकिन, इस विषय में लोक सभा के अध्यक्ष ओम बिड़ला ने हस्तक्षेप करते हुए, हरदीप पुरी से कहा कि यदि उन्हें हिन्दी में देने में कठिनाई नहीं है, तो उन्हें प्रश्न का उत्तर हिन्दी में ही देना चाहिए।
इसके बाद हरदीप पुरी ने अपनी भाव-भंगिमा बदलते हुए, ओम बिड़ला से सभी सांसदों को ऐसा ही निर्देश देने की अपील की और उन्होंने पंजाबी में बोलना शुरू कर दिया।
हालांकि, ओम बिड़ला ने उनके इस रवैये को लेकर थोड़ी आपत्ति जताई और कहा, “आपको कई भाषाएं आती हैं। लेकिन यहां हिन्दी और अंग्रेजी के अतिरिक्त किसी अन्य भाषा में बोलने के लिए उन्हें पहले लिखकर देना होगा।”
बहरहाल, यदि आप अवलोकन करें, तो पाएंगे कि बीते कुछ वर्षों के दौरान एकाध सांसदों को छोड़ दें, तो सदन में अधिकांश सदस्य अपनी पूरी बहस, प्रश्न और उत्तर हिन्दी में ही करते हैं। यह वास्तव में हिन्दी के निरंतर बढ़ते आयामों का प्रतिबिम्ब है।
हिन्दी की इस अभूतपूर्व उपलब्धि का श्रेय मैं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जैसे दूरदर्शी नेताओं को देना चाहूंगा। जिन्होंने न केवल हिन्दी, बल्कि भारतीय इतिहास, परंपरा और विरासत के पक्षों को एक वैश्विक आयाम देने के लिए अथक प्रयास किया।
बहरहाल, वर्तमान समय में मोदी और शाह की अपनी पूरी कार्यशैली ही हिन्दी में है। लेकिन, विपक्षी नेताओं द्वारा हिन्दी को अपनाना यह दर्शाता है कि वे अब इस बात को पूरी तरह से समझ चुके हैं कि यदि उन्हें जनता से जुड़ना है, उन तक अपनी बात पहुँचानी है, तो उन्हें हिन्दी या किसी भारतीय भाषा में ही सोचना और बोलना होगा। अंग्रेज़ी वाली लाठशाही अब नहीं चलने वाली है।
क्योंकि, सदन के इतिहास में एक दौर ऐसा भी था जब कथित प्रगतिशील नेता हिन्दी बोलने वाले सदस्यों को अधिक महत्व नहीं देते थे। उन्हें सदैव कमतर आंका जाता था।
इन्हीं मुद्दों के बीच, आज हम “विश्व हिन्दी दिवस” की तैयारी कर रहे हैं। हर वर्ष 10 जनवरी से मनाए जाने वाले इस उत्सव का उद्देश्य हिन्दी के वैश्विक महत्वों और उपलब्धियों को उजागर करना और उसे एक नया आयाम देना है।
यह एक जगजाहिर तथ्य है कि हिन्दी केवल एक भाषा नहीं है, बल्कि यह हमारे सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहरों का एक अभिन्न अंग है। आज हिन्दी अपने पूरे वेग के साथ विश्व में अपना पैर पसारती जा रही है और यह श्रीलंका, मालदीव, सिंगापुर, थाईलैंड, चीन, जापान, ब्रिटेन, जर्मनी, भूटान, नेपाल, बांग्लादेश, म्यांमार, इंडोनेशिया, न्यूजीलैंड, दक्षिण अफ्रीका, मॉरिशस, यमन, युगांडा, कनाडा और फिजी जैसे अनगिनत देश में एक संपर्क भाषा के रूप में प्रतिष्ठित हो चुकी है, जो हमारे लिए गर्व का विषय है।
हालांकि, स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हिन्दी की यात्रा अत्यंत कठिन रही है और राजनीतिक कारणों की वजह से हमारी प्यारी हिन्दी, राष्ट्रभाषा का दर्ज़ा हासिल नहीं कर पायी।
लेकिन, बीते 9 वर्षों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की अगुवाई में हिन्दी ने वैश्विक स्तर पर एक नई ऊँचाई को हासिल किया है। आज के समय में हिन्दी का दायरा 132 से भी अधिक देशों में फैला हुआ है और संयुक्त राष्ट्र महासभा ने जब से अपने कार्यों और अनिवार्य संदेशों को हिन्दी में प्रेषित करने की घोषणा की, हम हिन्दी भाषियों के आत्मविश्वास ने एक नया आसमान छूना शुरू कर दिया।
आज के समय में हिन्दी को सामान्य जनामानस के अलावा, सरकारी विभागों, मण्डलों और समितियों में भी बढ़ावा देने के लिए गृह मंत्रालय के अंतर्गत राजभाषा विभाग द्वारा अथक प्रयास किये जा रहे हैं और इन प्रयासों के लिए मैं मोदी-शाह के साथ ही, भारतीय जनता पार्टी के सभी साथियों को धन्यवाद प्रेषित करता हूँ।
बहरहाल, भारत प्राचीन काल से ही विविध भाषाओं का देश रहा है और आज हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं। ‘हिन्दी’ ने हमारे इस लोकतांत्रिक व्यवस्था को एक-सूत्र में पिरोने का महान कार्य किया है। इसने हमारे विविध क्षेत्रीय भाषाओं और बोलियों के अलावा, कई वैश्विक भाषाओं के साथ घुल-मिल कर पूरे विश्व में अपनी एक अनूठी पहचान बनाई है।
हिन्दी ने हमारे स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान भी एक ‘संवाद भाषा’ के तौर पर समाज को पुनर्जागृत करने में एक उल्लेखनीय भूमिका निभायी। इतिहास साक्षी है कि हमारे देश में 'स्वराज' प्राप्ति और 'स्वभाषा' के आन्दोलन एकसाथ चले।
हालांकि, हिन्दी के प्रति सम्मान और इसके प्रसार को बढ़ावा कुछ लोगों को रास नहीं आता है। उन्हें लगता है कि हम आधुनिकता केवल अंग्रेज़ियत से हासिल कर सकते हैं। लेकिन, हमें यह समझना होगा कि किसी भी समाज में मौलिक और सृजनात्मक अभिव्यक्ति को केवल और केवल अपनी भाषा के माध्यम से ही विकसित किया जा सकता है। यह एक शाश्वत सत्य है कि हमारी अपनी मातृभाषा में भी हमारी उन्नति का मूल छिपा हुआ है।
हमारी भाषाएँ, हमारी बोलियाँ, हमारी अमूल्य विरासत हैं। यदि हमें आगे बढ़ना है, तो इसे हमें साथ लेकर चलना ही होगा। इसी संकल्प के साथ मोदी सरकार ने हिन्दी समेत सभी भारतीय भाषाओं के वैश्विक प्रचार-प्रसार के लिए आधुनिक तकनीक के माध्यम से सार्वजनिक, प्रशासन, शिक्षा और वैज्ञानिक प्रयोग के अनुकूल उपयोगी बनाने का प्रयास किया है।
हिन्दी के विरोधी यह समझें कि हिन्दी की प्रतिस्पर्धा किसी भारतीय भाषा से नहीं है और न ही इसे किसी पर थोपे जाने का प्रयास है। यदि हिन्दी ने भारत में अपने संपूर्णता को हासिल कर लिया, तो वह क्षण सही मायनों में हमारे सभी स्थानीय भाषाओं के उदय का शुभारंभ होगा।
हमें इस वास्तविकता को अच्छी तरह से समझना होगा कि आज जब हमने स्वंय को वर्ष 2047 तक एक वैश्विक महाशक्ति के रूप में स्थापित करने के लिए ‘पंच प्रण’ का संकल्प लिया है, तो ऐसे में यह निश्चित है कि हिन्दी हमारे पारंपरिक ज्ञान, ऐतिहासिक मूल्यों और आधुनिक प्रगति के बीच, एक महान सेतु की भूमिका निभाएगी। इसलिए हमें हिन्दी भाषा को अपनी पूरी शक्ति के साथ संरक्षित और संवर्धित करने की आवश्यकता है।